आलू : ब्लैक हार्ट रोग से फसल हो रही है प्रभावित, ऐसे करें नियंत्रण

हमारे देश के लगभग सभी क्षेत्रों में आलू की खेती की जाती है। रोग रहित उच्च गुणवत्ता के आलू की बिक्री भी अच्छी कीमतों पर होती है। लेकिन कई बार कुछ रोगों के कारण आलू की खेती करने वाले किसानों को उचित मुनाफा नहीं मिल पाता है। इन रोगों में ब्लैक हार्ट रोग भी शामिल है। कुछ क्षेत्रों में इसे कृष्णकांत रोग के नाम से भी जाना जाता है। आइए इस रोग का कारण, लक्षण एवं इस पर नियंत्रण के तरीकों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
आलू की फसल को प्रभावित करने वाले ब्लैक हार्ट रोग का कारण
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कंद के विकास के समय पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण यह रोग उत्पन्न होता है।
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इसके अलावा भंडारण एवं ट्रांसपोर्ट (परिवहन) के समय 30-35 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान होने पर इस रोग के होने का खतरा अधिक हो जाता है।
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गोदाम या भंडार घर में पर्याप्त मात्रा में वायु संचार नहीं होने के कारण भी इस रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है।
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इसके अलावा खेत में जल जमाव या लम्बे समय तक खेत सूखा रहना भी इस रोग के कारणों में शामिल है।
ब्लैक हार्ट रोग के लक्षण
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इस रोग के होने पर आलू के कंद अंदर से धूसर, भूरे या काले रंग के हो जाते हैं।
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रोग बढ़ने पर कंद का प्रभावित हिस्सा सूख कर अलग हो जाता है। जिससे कंदों में गड्ढे बन जाते हैं।
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कंदों से सड़ने की गंध नहीं आती है।
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सामान्यतौर पर इस रोग से आकार में बड़े कंद अधिक प्रभावित होते हैं।
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रोग से प्रभावित कंदों की बुवाई करने पर अंकुरण में कठिनाई होती है और पौधे भी कमजोर होते हैं।
ब्लैक हार्ट रोग पर नियंत्रण के तरीके
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इस रोग से बचने के लिए मिट्टी वायु संचार बनाए रखना जरूरी है।
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कंदों के विकास के समय मिट्टी के तापमान को नियंत्रित रखने के लिए सिंचाई करें।
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खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। सिंचाई के समय जल जमाव की स्थिति न होने दें।
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30-35 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान में कंदों का भंडारण करने से बचें।
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भंडारण घर में वायु संचार की उचित व्यवस्था करें।
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आलू की बोरियों को लम्बे समय तक एक के ऊपर न रखें।
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आलू की फसल में चेचक रोग पर नियंत्रण की जानकारी यहां से प्राप्त करें।
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