आलू: कंद पतंगा खेत के साथ भंडारण में भी फसल को पहुंचाता है नुकसान

आलू का कंद पतंगा फसल के प्रमुख कीटों में से एक है। यह कीट आलू के ही परिवार की अन्य फसलों जैसे टमाटर, तंबाकू, बैंगन, मिर्च आदि फसलों पर भी हमला करता है। यह कीट आलू के कंद में लंबे समय तक जीवित रह सकता है और भंडारण के दौरान भी अपनी जनसंख्या में तेजी से वृद्धि कर एक बड़ी समस्या बनकर उभरता है।
कंद पतंगा कीट शाम के समय सबसे अधिक सक्रिय होते हैं। कीट पत्तियों और मिट्टी से बाहर निकले कंदों पर समूह में अंडे देते हैं और लार्वा तनों, पत्तियों व कंदों पर सुरंग बनाकर उन पर भोजन करते हैं। लार्वा काले रंग के सिर के साथ सफेद शरीर वाले होते हैं एवं उनके सिर के पीछे गुलाबी रंग का क्षेत्र होता है। कीट वयस्क अवस्था में हरे हो जाते हैं और पंख निकलने पर भूरे रंग के पतंगे में परिवर्तित हो जाते हैं।
कंद में नुकसान के लक्षण
कीट के द्वारा आलू की फसल में क्षति और उपज में होने वाली आर्थिक सीमा निर्धारित नहीं की गई है। क्षति, क्षेत्र व कीट की स्थिति एवं उसके लिए अपनाए गए नियंत्रण के आधार पर विभिन्न हो सकती है। लार्वा से होने वाली क्षति पत्तियों में क्षिद्र या कमजोर तने से पहचानी जा सकती है, जो अधिक कमजोर होने से टूट जाते हैं। इसके अलावा कंदों में कीट के संक्रमण का पता तभी लगाया जा सकता है जब आलू के कंद को काटा जाए। कंदों में कीट सुरंग बना देते हैं और रोगजनकों के प्रवेश के लिए उचित प्रवेश द्वार मिल जाता है। कीट के कारण सबसे गंभीर आर्थिक क्षति तब होती है जब भंडारण में कंद संक्रमित होते हैं क्योंकि इस समय कीट की जनसंख्या तेजी से बढ़ती है और एक साथ ही सभी कंद क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
आलू में कंद पंतगें का नियंत्रण
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मौसम में देर से बोई गई फसल का उपयोग बीज के लिए न करें।
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बीज को बोने से पहले बीज उपचार अवश्य करें।
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कंद को 5 सेंटीमीटर की गहराई से नीचे बोएं।
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प्रति एकड़ 4 से 5 चिपचिपे ट्रैप का प्रयोग करें।
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भंडारण के लिए 9 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान का प्रयोग करें।
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रासायनिक नियंत्रण के लिए क्लोरपायरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी की 300 से 400 मिलीलीटर ग्राम मात्रा का प्रयोग प्रति एकड़ के अनुसार करें।
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