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7 Oct
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आंवला की खेती | Amla Cultivation

आंवला अपने औषधीय गुणों और पौष्टिकता के लिए प्रसिद्ध है। विटामिन सी का प्रमुख स्रोत है, इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सा और सौंदर्य प्रसाधनों में इसका उपयोग प्रमुखता से किया जाता है। आंवला की खेती पूरे भारत में की जाती है, लेकिन इसे सफलतापूर्वक उगाने के लिए सही समय, जलवायु, मिट्टी, और उचित प्रबंधन तकनीकों की जानकारी होना आवश्यक है। इस पोस्ट में हम आंवला की खेती के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी प्राप्त करेंगे।

आंवला की खेती कैसे करें? | How to Cultivate Amla (Indian Gooseberry)

  • आंवला की खेती के लिए उपयुक्त समय: आंवला के पौधों की रोपाई वर्षा के मौसम में यानी जुलाई से सितंबर के बीच की जाती है। इस समय जमीन में पर्याप्त नमी होती है, जो पौधों की जड़ों की वृद्धि में सहायक होती है। अगर पौधों की रोपाई सर्दियों में की जाती है, तो उन्हें पर्याप्त नमी और तापमान नहीं मिल पाता, जिससे उनकी वृद्धि पर असर पड़ सकता है।
  • उपयुक्त जलवायु: यह पौधा उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह से पनपता है। इसके लिए औसत वार्षिक तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। अत्यधिक ठंड या अत्यधिक गर्मी आंवला के पौधों की वृद्धि और फल उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। आंवला के पौधे को थोड़ा सूखा सहने की क्षमता होती है।
  • उपयुक्त मिट्टी: यह पौधा विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है, लेकिन हल्की और जल निकासी युक्त दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0-8.0 के बीच होना चाहिए। अधिक क्षारीय या अम्लीय मिट्टी में पौधों की वृद्धि प्रभावित हो सकती है। की जड़ें गहराई में जाती हैं, इसलिए मिट्टी का भौतिक स्वरूप भी महत्वपूर्ण है।
  • बेहतरीन किस्में: आंवला की कई किस्में होती हैं। इसकी अच्छी पैदावार के लिए बनारसी, कृष्णा, चक्रधर, नरेंद्र आंवला 7, नरेंद्र आंवला 10, कंचन, आनंद 2, फ्रांसिस, बीएस 1, लखनिया, अन्ना आंवला, आदि किस्मों का चयन कर सकते हैं।
  • खेत तैयार करने की विधि: खेत तैयार करने से पहले मिट्टी की जांच करवा लेनी चाहिए, जिससे मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा का पता चल सके। खेत की पहली जुताई 8-10 इंच गहराई तक करनी चाहिए। इसके बाद 2-3 बार हलकी जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी एवं खेत को समतल बनाएं। खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध करें। पौधों की रोपाई के लिए खेत में गड्ढे तैयार करें। सभी गड्ढों की गहराई 18 इंच, लम्बाई 18 इंच और चौड़ाई भी 18 इंच होनी चाहिए।
  • पौधों की मात्रा: इसकी खेती पौधों की रोपाई के द्वारा की जाती है। पौधों की संख्या और उनके बीच की दूरी का निर्धारण पौधों की किस्म, मिट्टी की गुणवत्ता, और जलवायु के आधार पर किया जाता है। सामान्य तौर पर प्रति एकड़ खेत में 640 से 720 पौधे लगाए जा सकते हैं।
  • रोपाई की विधि: मुख्य खेत में 6-8 महीने के पौधों की रोपाई की जा सकती है। खेत में पहले से तैयार किए गए गड्ढों में पौधों की रोपाई करें। पौधों को लगाने के बाद गड्ढों को मिट्टी एवं गोबर की खाद के मिश्रण से भरें। रोपाई के बाद पौधों में हल्की सिंचाई करनी चाहिए, जिससे मिट्टी और पौधों के बीच का संपर्क बना रहे और पौधों को आवश्यक नमी मिल सके।
  • सिंचाई प्रबंधन: इसकी खेती में सिंचाई का बहुत महत्व है। इसके पौधे सूखा के प्रति सहनशील होते हैं। लेकिन पौधों के बेहतर विकास के लिए मिट्टी में नमी बनाए रखें। आवश्यकता से अधिक मात्रा में सिंचाई भी पौधों के लिए नुकसान दायक हो सकती है। वर्षा के मौसम में पौधों को  की आवश्यकता नहीं होती है। ठंड के मौसम में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। गर्मी के मौसम में सिंचाई के बीच के अंतराल को आवश्यकता के अनुसार कम कर दें। जड़ों को सड़ने से बचाने के लिए सिंचाई के समय खेत में जल जमाव न होने दें। पौधों के बेहतर विकास के लिए ड्रिप सिंचाई विधि को सबसे उपयुक्त माना जाता है।
  • खरपतवार नियंत्रण: आंवला की खेती में खरपतवार नियंत्रण एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। खरपतवार पौधों से पोषक तत्वों को ग्रहण कर लेते हैं। जिससे पौधों के विकास में बाधा आती है। खेत में खरपतवारों को पनपने से रोकने के लिए पौधों के चारो तरफ मल्चिंग करें। इसके अलावा निराई-गुड़ाई भी इस क्रम में सहायक है। समस्या बढ़ने पर रासायनिक खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग करें। लेकिन इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक और कृषि विशेषज्ञों के निर्देशों के अनुसार ही करना चाहिए।
  • रोग एवं कीट नियंत्रण: आंवला के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों एवं कीटों में चूर्णिल आसिता रोग, फल सड़न रोग, जड़ सड़न रोग, रस चूसक कीट, पत्ती खाने वाले कीट एवं तना छेदक कीटों का प्रकोप अधिक होता है। फपौधों में किसी भी तरह के रोग एवं कीटों के प्रकोप का लक्षण नजर आने पर उचित दवाओं का प्रयोग करें। रासायनिक दवाओं का प्रयोग कृषि विशेषज्ञों की परामर्श के अनुसार ही करें।
  • फलों की तुड़ाई: सामान्यत: आंवला के पौधे रोपाई के बाद 3-4 साल में फल देना शुरू कर देते हैं। जब फल पूरी तरह से परिपक्व हो जाए, तब फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए। फल को सावधानीपूर्वक तोड़ना चाहिए। जिससे फल एवं शाखाएं क्षतिग्रस्त न हो।

आपके किस किस्म की आंवला की खेती करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: आंवले का पेड़ कितने साल बाद फल देता है?

A: आंवले का पेड़ आमतौर पर रोपण के 3-4 साल बाद फल देना शुरू कर देता है। हालांकि, पौधे की विविधता, मिट्टी की गुणवत्ता और जलवायु परिस्थितियों के आधार पर उपज भिन्न हो सकती है। अच्छी उपज सुनिश्चित करने के लिए पौधे को उचित देखभाल और रखरखाव प्रदान करना महत्वपूर्ण है।

Q: आंवले का फल कौन से महीने में आता है?

A: आंवले के फल आमतौर पर गर्मी के मौसम में पकते हैं और फलों की तुड़ाई मई और जून के महीने में की जाती है। हालांकि, क्षेत्र और जलवायु परिस्थितियों के आधार पर सटीक महीना भिन्न हो सकता है।

Q: आंवले की सबसे अच्छी किस्म कौन सी है?

A: आंवले की कई किस्में हैं जो लोकप्रिय रूप से उगाई और खाई जाती हैं। आंवले की कुछ बेहतरीन किस्मों में फाइलेंथस एम्ब्लिका, चकैया किस्म, बनारसी किस्म और कृष्णा किस्म शामिल हैं। विविधता का चुनाव स्वाद, उपज और स्थानीय जलवायु परिस्थितियों के लिए उपयुक्तता जैसे कारकों पर निर्भर हो सकता है।

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