अमरूद के प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन (Major diseases of guava and their management)

अमरूद एक उष्णकटिबंधीय फल है जो विटामिन, खनिज और आहार फाइबर जैसे आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर है। यह अपने मीठे और अनोखे स्वाद के लिए जाना जाता है और इसे व्यापक रूप से ताजे फल के रूप में खाया जाता है या जूस, स्मूदी और जैम जैसे विभिन्न उत्पादों में उपयोग किया जाता है। हालांकि, किसी भी फल या पौधे की तरह, अमरूद भी कुछ बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो सकता है। यहां कुछ सामान्य बीमारियां हैं जो अमरूद के पौधों को प्रभावित कर सकती हैं और उनके प्रबंधन के उपाय बताए गए हैं।
अमरूद के रोगों को नियंत्रित कैसे करें? (How to control diseases of guava?)
एन्थ्रेक्नोज (धब्बा रोग) :
- एन्थ्रेक्नोज एक कवक रोग है जो पत्तियों, तनों और फलों सहित अमरूद के पौधे के विभिन्न भागों को प्रभावित करता है।
- एन्थ्रेक्नोज गर्म और आर्द्र मौसम में पनपता है और बारिश के छींटों, सिंचाई, या संक्रमित औजारों और उपकरणों के कारण फैल सकता है।
- संक्रमित पत्तियों पर गुलाबी रंग के बीजाणु समूह के साथ काले धब्बे दिखाई देते हैं।
- फलों पर गहरे केंद्रों के साथ धंसे हुए घाव दिखाई देते हैं।
नियंत्रण:
- अझॉक्साइस्ट्रोबिन 18.2% + डिफेनोकोनाझोल 11.11% एससी (देहात - सिम्पैक्ट) की 1 मिलीलीटर मात्रा का छिड़काव प्रति लीटर पानी की दर से करें।
- अझॉक्साइस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाझोल 18.3% डब्ल्यू/डब्ल्यू एससी (देहात-आजीटॉप) का प्रयोग 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से करें।
- प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम मैंकोजेब या 3 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड मिलाकर छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर फल आने तक 10 से 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव कर सकते हैं।
चूर्णिल आसिता (Powdery Mildew) :
- यह अमरूद सहित कई अन्य पौधों की प्रजातियों को प्रभावित करने वाला एक फफूंद रोग है।
- इस रोग की पहचान सफेद या आटे जैसी वृद्धि से होती है, जो संक्रमित पौधे के हिस्सों की सतह पर दिखती है।
- यह विशेष रूप से पत्तियों, टहनियों और फूलों पर दिखाई देती है।
- फसल में इस सफेद फफूंद की वृद्धि प्रकाश संश्लेषण क्रिया को रोकती है, जिससे फलों का विकास प्रभावित हो सकता है।
नियंत्रण:
- खेत में पड़े संक्रमित पौधों के अवशेषों को हटाकर नष्ट कर देना चाहिए।
- पत्तियों पर पानी ना डालें ताकि फफूंद का प्रसार ना हो सके।
- देहात साबू (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP) 300-600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- अझॉक्साइस्ट्रोबिन 18.2% + डिफेनोकोनाझोल 11.11% एससी (देहात - सिम्पैक्ट) की 1 मिलीलीटर मात्रा का छिड़काव प्रति लीटर पानी की दर से करें।
- अझॉक्साइस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाझोल 18.3% डब्ल्यू/डब्ल्यू एससी (देहात-आजीटॉप) का प्रयोग 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से करें।
रतुआ (Rust) :
- यह अमरूद में सबसे ज्यादा हानिकारक रोग है, जो अमरूद के पेड़ की पत्तियों, तनों और कभी-कभी फलों को प्रभावित करती है।
- इस रोग के कारण पौधों की ताकत कम हो जाती है,
- संक्रमण ज्यादा होने पर पत्तियां गिर जाती हैं और अमरूद के फलों का उत्पादन कम हो जाता है।
- रतुआ रोग पत्तियों पर जंग लगे नारंगी धब्बों के रूप में दिखाई देता है।
नियंत्रण:
- फसल चक्र अपनाएं।
- बीजों को अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में लगाएं, और बीजों को फफूंदनाशी से जरूर उपचारित करें।
- अझॉक्साइस्ट्रोबिन 18.2% + डिफेनोकोनाझोल 11.11% एससी (देहात - सिम्पैक्ट) की 1 मिलीलीटर मात्रा का छिड़काव प्रति लीटर पानी की दर से करें।
- अझॉक्साइस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाझोल 18.3% डब्ल्यू/डब्ल्यू एससी (देहात-आजीटॉप) का प्रयोग 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से करें।
उकठा रोग (Bacterial Wilt) :
- संक्रमित पेड़ों में तेजी से गिरावट देखी जाती है, पत्तियां भूरे रंग की हो जाती हैं और झड़ने लगती हैं।
- उकठा रोग के लक्षण मानसून के आगमन के साथ दिखने लगते हैं।
- रोग के शुरुआती लक्षण में पत्तियों का रंग हल्का पीला होने लगता है।
- अमरूद के पौधों की पत्तियां समय से पहले झड़ने लगती हैं और नए पत्ते या फूल नहीं बनते हैं और आखिर में सूख जाती हैं।
- प्रभावित शाखाओं कठोर, पथरीले और पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते हैं।
नियंत्रण:
- अमरूद की रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें।
- बुवाई करने से पहले बीजों या कलम को उपचारित जरूर करें।
- अमरूद के बाग में साफ-सफाई रखें।
- मुरझाए पेड़ों को उखाड़ कर जला देना चाहिए और उनके तने के चारों ओर खाई खोदनी चाहिए।
- पौधों के रोपाई के दौरान जड़ों में नुकसान पहुँचाना चाहिए क्योंकि जड़ों में संक्रमण को बढ़ा सकता है।
- रोग के शुरुआती अवस्था में कासु-बी (कासुगामाइसिन 3% एस.एल) दवा का इस्तेमाल 400-600 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से पौधों की ड्रेंचिंग करें।
फल सड़न रोग (Fruit Rot) :
- इस रोग का प्रकोप वर्षा के मौसम में सबसे अधिक होता है।
- अमरूद के प्रभावित पेड़ों के फल गिरने लगते हैं और पौधा शाखा के शीर्ष से मरने लगते हैं।
- रोग के कारण नई पत्तियां और फल शुरुआती अवस्था में ही मुरझा जाती हैं।
- बढ़ते हुए सिरे का हरा रंग गहरे भूरे रंग में बदल जाता है और काले परिगलित क्षेत्रों में फैल जाता है।
- इस रोग से सफेद फफूंद की वृद्धि होती है और पत्तियाँ झुलसने लगती हैं।
- धब्बे गहरे भूरे रंग के होते हैं, जो धंसे हुए और गोलाकार होते हैं।
- कई धब्बे मिलकर बड़े घाव बना लेते हैं और कच्चे फलों पर संक्रमित क्षेत्र कठोर हो जाता है।
- गंभीर संक्रमण की स्थिति में दरारें पड़ जाती हैं और बंद कलियाँ और फूल भी प्रभावित होते हैं, जिसके कारण वे झड़ जाते हैं।
नियंत्रण:
- अमरूद के बाग में हमेशा साफ-सफाई रखें।
- बुवाई करने से पहले बीजों या कलम को उपचारित जरूर करें।
- कॉपर ऑक्सीक्लोराइड दवा से मिट्टी को उपचारित करें।
- प्रभावित फलों को तोड़कर नष्ट कर दें।
- इंडोफिल Z-78 (जिनेब 75% WP) दवा को 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
क्या आप अमरूद की फसल में रोगों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: अमरूद के कौन-कौन से रोग हैं?
A: अमरूद की फसल में कई रोग लगते हैं जैसे: एन्थ्रेक्नोज, फल सड़न, मुरझान और पत्ती धब्बा मुख्य रूप से नुकसान पहुंचाते हैं। Q: फल गिरने का मुख्य कारण क्या है?
A: पौधों में फलों के गिरने का मुख्य कारण आमतौर पर तनाव कारकों जैसे पानी की कमी, पोषक तत्वों की कमी, कीट संक्रमण, बीमारी, अत्यधिक तापमान या अनुचित छंटाई के कारण होता है।
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