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1 July
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अनार: खेती से पहले जानें कुछ महत्वपूर्ण बातें | Pomegranate Cultivation

फाइबर, विटामिन के, विटामिन बी, विटामिन सी, आयरन, पोटैशियम, जिंक, ओमेगा 6 फैटी एसिड, जैसे कई पोषक तत्वों से भरपूर अनार का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। इसके सेवन से हमारे शरीर में रक्त की कमी भी दूर होती है। भारत में अनार का उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात और राजस्थान शामिल है। हमारे देश में अनार के कुल उत्पादन का 50% केवल महाराष्ट्र से प्राप्त किया जाता है। इसके अलावा तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में भी अनार का उत्पादन किया जाता है। पूरे वर्ष इसकी मांग होने के कारण इसकी खेती करने वाले किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। यह एक बहुवर्षीय पौधा है। एक बार पौधों को लगा कर कई वर्षों तक फल प्राप्त किया जा सकता है। आइए अनार की खेती पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

अनार की खेती कैसे करें | How to Cultivate Pomegranate?

  • अनार की खेती के लिए जलवायु: इसकी खेती के लिए उपोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। फलों के बेहतर विकास के लिए गर्म एवं शुष्क जलवायु उपयुक्त है। अनार की खेती के लिए आदर्श तापमान सीमा 15 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच है। वातावरण में आर्द्रता अधिक होने से फलों के फटने एवं फफूंद जनित रोगों के होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • उपयुक्त मिट्टी: इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन बेहतर पैदावार के लिए इसकी खेती उचित जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी में करें। मिट्टी का पीएच स्तर 6. 5 से 7. 5 के बीच होना चाहिए।
  • पौधों की रोपाई का उपयुक्त समय: नए पौधों की रोपाई के लिए जुलाई से सितंबर का महीना सर्वोत्तम है। इस दौरान मिट्टी में नमी अधिक होने के कारण पौधे का अच्छा विकास होता है। इसके अलावा फरवरी से मार्च महीने में भी पौधों को लगाया जा सकता है। भारत के कुछ क्षेत्रों में अनार की खेती पूरे वर्ष की जा सकती है। यह एक बारहमासी फसल है, जिसे एक बार लगा कर करीब 20 वर्षों तक फल प्राप्त किया जा सकता है।
  • पौधों की रोपाई की विधि: अनार की खेती पौधों की रोपाई के द्वारा की जाती है। आप नर्सरी से इसके पौधे प्राप्त कर सकते हैं या किसी परिपक्व पौधे की कटिंग की रोपाई भी कर सकते हैं। अनार के पौधों की रोपाई कतारों में करें। सभी कतारों के बीच करीब 5 मीटर की दूरी रखें। पौधों से पौधों के बीच की दूरी भी 5 मीटर होनी चाहिए। पौधों की रोपाई के लिए खेत में 60 सेंटीमीटर चौड़े, 60 सेंटीमीटर लम्बे एवं 60 सेंटीमीटर गहरे गड्ढे तैयार करें। सभी गड्ढों में 20 किलोग्राम अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद, 1 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट मिला कर भरें। इसके बाद सभी गड्ढों में पौधों की रोपाई करें।
  • पौधों की सिंचाई: अनार के पौधे सूखे के प्रति सहनशील होते हैं। लेकिन उच्च वाले फलों का उत्पादन करने के लिए निश्चित अंतराल पर सिंचाई अवश्य करें। सिंचाई की आवृत्ति और मात्रा मिट्टी के प्रकार, जलवायु और विकास के चरण पर निर्भर करती है। सामान्य तौर पर, छोटे पौधों को परिपक्व पौधों की तुलना में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। पौधों के उचित विकास के लिए रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें। इसके बाद आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें। वर्षा होने पर पौधों को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। ठंड के मौसम में 12 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। अनार की खेती के लिए ड्रिप सिंचाई सिंचाई का सबसे कारगर तरीका है। यह पौधे के जड़ क्षेत्र में सीधे पानी पहुंचाता है।
  • खरपतवार प्रबंधन: खरपतवार नियंत्रण अनार की खेती का एक महत्वपूर्ण पहलू है। बागों में उगने वाले खरपतवार पोषक तत्वों को ग्रहण करने के साथ कीटों एवं रोगों के पनपने का कारण भी बनते हैं। खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए हाथों से निराई-गुड़ाई की जाती है। निराई-गुड़ाई के लिए आप खुरपी, कुदाल जैसे छोटे कृषि यंत्रों का सहारा भी ले सकते हैं। अनार के पौधों के चारों तरह मिट्टी की सतह को पुआल, पत्तियों या घास अदि से ढक कर मल्चिंग करें। इससे खरपतवारों पर नियंत्रण के साथ मिट्टी में नमी को भी लम्बे समय तक बनाए रखा जा सकता है। खरपतवारों की समस्या अधिक होने पर आप रासायनिक खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग भी कर सकते हैं।
  • रोग एवं कीट नियंत्रण: अनार के पौधों में चूर्णिल आसिता रोग, कैंकर, एन्थ्रेक्नोज, फल सड़न रोग, फलों का फटना, बैक्टीरियल ब्लाइट रोग, फल मक्खी, थ्रिप्स, मिली बग, नेमाटोड, जैसे रोग एवं कीटों का प्रकोप अधिक होता है। पौधों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने के लिए नियमित अंतराल पर फसल का निरीक्षण करें और किसी भी रोग या कीट के प्रकोप का लक्षण नजर आने पर उचित मात्रा में कीट नाशक या फफूंद नाशक दवाओं का प्रयोग करें। समस्या बढ़ने पर कृषि विशेषज्ञ से परामर्श करें।
  • फलों की तुड़ाई: भारत में अनार के फल की तुड़ाई का समय अनार की किस्म और बाग के स्थान पर निर्भर करता है। यह मौसम के आधार पर भी भिन्न हो सकता है। अनार के फल जब अपने विशिष्ट रंग के साथ पूरी तरह पक जाएं तब ही फलों की तुड़ाई करनी चाहिए। सामान्यतः पौधों में फल आने के करीब 120 से 130 दिनों बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। फलों को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए उसे डंठल के साथ किसी तेज धार वाले चाकू से काटें।

क्या आप अनार के पौधों के साथ किसी अन्य फसल की खेती भी करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। यदि आपको इस पोस्ट में दी गई जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं इसे अन्य किसानों के साथ शेयर करना न भूलें। जिससे अधिक से अधिक किसान मित्र इस जानकारी का लाभ उठाते हुए अनार की खेती के द्वारा अच्छा मुनाफा कमा सकें। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए ‘बागवानी फसलें’ चैनल को तुरंत फॉलो करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: अनार का पौधा कौन से महीने में लगाया जाता है?

A: भारत में अनार लगाने का सबसे अच्छा समय मानसून के मौसम के दौरान होता है। नए पौधों की रोपाई जून से सितंबर महीने तक की जा सकती है। अनार लगाने का आदर्श समय जुलाई या अगस्त में होता है। पौधों को लगाने का समय क्षेत्रों के अनुसार भिन्न हो सकता है।

Q: अनार के पेड़ में कौन सा खाद देना चाहिए?

A: अनार के पौधों के बेहतर विकास के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम की आवश्यकता होती है। खेत तैयार करते समय आप गोबर की खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं। इसके साथ ही प्रति एकड़ खेत में 4 किलोग्राम देहात स्टार्टर का भी प्रयोग करें।

Q: अनार कितने साल फल देता है?

A: अनार के पौधों के करीब 2-3 साल के अंदर फल देना शुरू कर देते हैं। उचित देखभाल के साथ हम लगभग 20 वर्षों तक फल प्राप्त कर सकते हैं।

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