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हींग की खेती | Asafoetida Cultivation
भारतीय व्यंजनों का ज़ायका बढ़ाने के लिए अक्सर हींग का तड़का लगाया जाता है। विश्व में भारत हींग का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इसके बावजूद हमारे देश में हींग की खेती नहीं होने के कारण इसे विदेशों से आयात करना पड़ता है। भारत में प्रति वर्ष अफगानिस्तान से 90%, उज़्बेकिस्तान से 8% और ईरान से 2% हींग का आयात किया जाता है। हमारे देश के कृषि वैज्ञानिक भारत में हींग की खेती की संभावनाओं पर कुछ वर्षों से रिसर्च कर रहे थे। करीब 2 वर्षो तक प्रयोगशाला में आयात किए बीज से हींग के पौधे तैयार किए गए और अब भारत के कुछ राज्यों में अब हींग की कुछ प्रजातियों की खेती की जाने लगी है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से हम हींग की खेती पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
भारत में हींग की खेती किन राज्यों में की जा रही है? In which states is Asafoetida being cultivated in India?
हींग मुख्य रूप से भारत के उप-हिमालयी क्षेत्रों में समुद्र तल से 900 से 1800 मीटर की ऊंचाई पर उगाई जाती है। इसके अलावा कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में भी इसकी खेती की जा रही है।
हींग की खेती करने वाले किसानों का अनुभव | Experience of farmers cultivating Asafoetida
15 अक्टूबर 2020 को सीएसआईआर- इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायो रिसर्च टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी) के निर्देशक डॉ. संजय कुमार के द्वारा हिमाचल प्रदेश के लाहौल घाटी में किसानों को हींग के 100 पौधे दिए गए। इन पौधों में अफगानी एवं ईरानी दोनों किस्में शामिल थी। किसानों ने अपने अनुभव के आधार पर बताया कि हींग की खेती के सफलता का अनुपात 30 से 40% ही है। समतल जगह पर पानी टिकने से कई पौधे सड़ गए। इसलिए पौधों को ढलान वाले स्थान पर लगाया है।
हींग की खेती कैसे करें? | How to cultivate Asafoetida?
- हींग की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु: इसकी खेती के लिए शुष्क एवं ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। हींग के पौधे न्यूनतम -5 डिग्री सेलसियल और अधिकतम करीब 35 डिग्री सेलसियल तक तापमान सहन कर सकते हैं। पौधों को खुली धूप की आवश्यकता होती है। ऐसे पहाड़ी क्षेत्र जहां सूर्य की रोशनी बिना रुकावट भूमि की सतह तक पहुंचती है, वहां इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
- उपयुक्त मिट्टी: इसकी जड़ें लम्बी होती हैं। इसलिए रेतीली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। इसके अलावा इसकी खेती कार्बनिक पदार्थ युक्त ढीली और भुरभुरी एवं उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है। मिट्टी का पीएच स्तर 7.0 से 8.5 के बीच होना चाहिए। भारी मिट्टी में जल जमाव की संभावना अधिक होती है। इसलिए पौधों की जड़ों को सड़ने से बचाने के लिए भारी मिट्टी में इसकी खेती न करें।
- खेती की तरीका: हींग की खेती बीज की बुवाई के द्वारा की जा सकती है। प्रति एकड़ खेत में इसकी खेती के लिए करीब 400 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इसके अलावा इसकी खेती नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की रोपाई के द्वारा भी की जाती है।
- पौधों की रोपाई की विधि: इसकी खेती पक्तियों में करनी चाहिए। सभी पक्तियों के बीच 39 इंच से 59 इंच की दूरी होनी चाहिए। वहीं पौधों से पौधों के बीच करीब 29 इंच से 39 इंच की दूरी होने चाहिए
- सिंचाई प्रबंधन: हींग के पौधों की जड़ें लंबी होती हैं। इसलिए इसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। पौधों की रोपाई के बाद 1 महीने तक 2-3 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें। इसके बाद सिंचाई के बीच के अंतराल को बढ़ा सकते हैं। खेत में जल जमाव होने पर पौधे नष्ट हो सकते हैं।
- खरपतवार प्रबंधन: हींग धीमी गति से बढ़ने वाली फसल है और खरपतवारों का मुकाबला नहीं कर सकती है। इसलिए खेत को खरपतवारों से मुक्त रखना आवश्यक है। खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए हाथों से निराई गुड़ाई करें। खरपतवारों की समस्या अधिक होने पर आप कृषि वैज्ञानिकों की या कृषि विशेषज्ञों की परामर्श के अनुसार रासायनिक खरपतवार नाशक का प्रयोग कर सकते हैं।
- रोग एवं कीट नियंत्रण: हींग के पौधों में भी कई तरह के रोगों एवं कीटों का प्रकोप हो सकता है। पौधों को विभिन्न रोगों एवं कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए संक्रमित पौधे के मलबे को हटाएं। रोगों एवं कीटों पर जैविक नियंत्रण के लिए नीम के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। संक्रमण अधिक होने पर कृषि विशेषज्ञों के सहाल के अनुसार रासायनिक कीटनाशक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं।
- फसल की कटाई: पौधों को तैयार होने में करीब 5 वर्षों का समय लगता है। हींग के पौधों की कटाई पौधों में फूल आने से पहले की जाती है।
क्या आपके क्षेत्र में हींग की खेती की जाती है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए ‘कृषि ज्ञान’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट में दी गई जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: हींग की खेती भारत में कहाँ होती है?
A: भारत के पश्चिमी क्षेत्र में खेती की जाती है, खासकर गुजरात और राजस्थान राज्यों में। इन क्षेत्रों में शुष्क जलवायु और मिट्टी की स्थिति हींग के पौधों की वृद्धि के लिए उपयुक्त है। राजस्थान में जोधपुर शहर अपने उच्च गुणवत्ता वाले हींग उत्पादन के लिए जाना जाता है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के कुछ गांव में भी अफगानी एवं ईरानी हींग की खेती की जा रही है।
Q: हींग के पेड़ से हींग कैसे निकलती है?
A: हींग के पेड़ से हींग प्राप्त नहीं किया जा सकता है, बल्कि पौधों की जड़ों से इसे टीआय किया जाता है। हींग के पौधे जब 5-6 वर्ष के हो जाते हैं तब जड़ों और तने की कटाई की जाती है। पौधों की जड़ों और तने से दूध की तरह राल निकलता है। इस राल को सूखाया जाता है और उसमें स्टार्च मिला कर उसे प्रोसेस किया जाता है। इसके बाद उसे छोटे-छोटे टुकड़े में करके इस्तेमाल किया जाता है।
Q: भारत में कौन सा राज्य हींग के लिए प्रसिद्ध है?
A: भारत में राजस्थान राज्य हींग के लिए प्रसिद्ध है। राजस्थान के जोधपुर शहर को "भारत की हींग राजधानी" के रूप में जाना जाता है और यह हींग के उत्पादन और व्यापार का एक प्रमुख केंद्र है। राजस्थान में शुष्क जलवायु और मिट्टी की स्थिति फेरुला पौधे की खेती के लिए आदर्श है, जो हींग का स्रोत है।
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