पोस्ट विवरण
सुने
बागवानी
औषधीय पौधे
कृषि ज्ञान
14 Aug
Follow

नीलगिरी की खेती (Eucalyptus Farming)


नीलगिरी (Nilgiri Ki Kheti), जिसे यूकेलिप्टस या सफेदा के नाम से भी जाना जाता है, एक सदाबहार और बहुउपयोगी वृक्ष है, जो औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसकी लंबाई 30 से 90 मीटर तक हो सकती है, और इसकी ताजी पत्तियों से निकाले गए तेल का उपयोग चिकित्सा, कीट नियंत्रण, और सुगंधित उत्पादों में किया जाता है। नीलगिरी की लकड़ी इमारत निर्माण, फर्नीचर, हार्ड बोर्ड, बॉक्स, और ईंधन के लिए भी उपयोगी है। यह पेड़ न केवल विभिन्न औद्योगिक उत्पादों में सहायक है, बल्कि पर्यावरण को शुद्ध करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कैसे करें नीलगिरी की खेती? (How to cultivate eucalyptus?)

  • मिट्टी: नीलगिरी की खेती के लिए गहरी, जैविक सामग्री से भरपूर, और अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। खराब, भारी, रेतीली, और अत्यधिक क्षारीय या लवणीय मिट्टी में नीलगिरी का विकास मुश्किल हो सकता है, हालांकि कुछ संकर प्रजातियां खारा और क्षारीय मिट्टी में भी उगाई जा सकती हैं। नीलगिरी पेड़ 6.0 से 7.5 पीएच रेंज वाली मिट्टी में सबसे अच्छा विकसित होते हैं।
  • जलवायु: नीलगिरी के पेड़ विभिन्न प्रकार की जलवायु परिस्थितियों में उगाए जा सकते हैं, लेकिन ये उष्णकटिबंधीय से समशीतोष्ण जलवायु क्षेत्रों में सबसे अच्छी खेती होती हैं। इन पेड़ों में उच्च स्तर का सूखा सहन करने की क्षमता होती है, इसलिए सूखे क्षेत्रों और बंजर भूमि में भी इन्हें लगाया जा सकता है। नीलगिरी को 0°C से 47°C तक के तापमान में आसानी से उगाया जा सकता है।
  • बुवाई का समय: नीलगिरी के पौधे लगाने का सबसे अच्छा समय मानसून के मौसम में होता है, जो जून से अक्टूबर तक होता है। यदि आपके पास पर्याप्त सिंचाई की सुविधा है, तो पौधों की रोपाई फरवरी में भी की जा सकती है। बुवाई बीजों या कलम विधि द्वारा की जा सकती है।
  • बुवाई: नीलगिरी के पौधों की रोपाई के लिए 1.5 x 1.5 मीटर की दूरी पर लगभग 1690 पौधे प्रति एकड़ खेत में लगाए जाते हैं, जबकि 2 x 2 मीटर की दूरी पर प्रति एकड़ लगभग 1200 पौधे लगाए जाते हैं। सघन रोपाई के लिए पौधे 2-2.5 मीटर की दूरी पर लगाना अच्छा रहता है। प्रारंभिक वर्षों में अंतर फसलें ली जा सकती हैं, जैसे हल्दी, अदरक या औषधीय पौधे, जिसके लिए 4m x 2m, 6m x 1.5m, या 8m x 1m की चौड़ी दूरी पर रोपाई की जा सकती है। नीलगिरी की खेती में 2 x 2 मीटर की दूरी सबसे सामान्य और प्रभावी होती है।
  • उन्नत किस्में: भारत में सफेदा की मुख्य रूप से 6 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनकी अधिकतम ऊंचाई 80 मीटर तक होती है। इनमें ऑब्लिव्का, डेलीगेटेंसिस, डायवर्सी कलर, निटेंस, ग्लोब्युल्स और नीलगिरी विमिनैलिस प्रमुख हैं।
  • खेत की तैयारी: खेत की तैयारी में पहले भूमि को खरपतवार और पहले से उगाई गई फसल की जड़ों से मुक्त करना आवश्यक है। इसके बाद, मिट्टी को अच्छी तरह से जुताई कर भुरभुरा करना चाहिए, और पेड़ लगाने से लगभग 3 महीने पहले यह प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए। मानसून के रोपण के लिए भूमि की अन्य तैयारी गतिविधियों जैसे रीडिंग, हैरो चलाएं और पाटा लगाना भी जल्दी पूरी की जानी चाहिए। नीलगिरी के पौधों के लिए 30 x 30 x 30 सेमी या 45 x 45 x 45 सेमी के गड्ढे खोदे जाते हैं, और पौधरोपण से पहले खेत की मिट्टी में वर्मी कम्पोस्ट या गोबर की खाद देनी चाहिए। व्यावसायिक वृक्षारोपण के लिए भूमि को खरपतवार और पराली से मुक्त रखना चाहिए।
  • उर्वरक प्रबंधन: पौधरोपण के समय वर्मी कम्पोस्ट या अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। प्रत्येक पौधे के लिए 150 ग्राम NPK उर्वरक का उपयोग करें और गड्ढों में 200 ग्राम एन.पी.के. डालें और सिंचाई कर दें। बुवाई के 3 से 5 महीने बाद मुख्य खेत में पौध रोपण करें। मानसून के दौरान पौधे रोपने के बाद नीम आधारित पोषक तत्वों के साथ 50 ग्राम फास्फेट और 250 ग्राम वर्मी कम्पोस्ट प्रति गड्ढा डालें। पहले वर्ष में प्रति पौधे 50 ग्राम NPK उर्वरक दें, और दूसरे वर्ष में 50 ग्राम NPK (17:17:17) लगाएं।
  • खरपतवार नियंत्रण : खरपतवार की रोकथाम के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें। शुरुआती समय में खेत को खरपतवार से मुक्त रखना जरूरी होता है। इसके लिए दो से तीन बार गुड़ाई की आवश्यकता होती है।
  • मल्चिंग : मल्चिंग से मिट्टी में नमी बनी रहती है और खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। गीली घास जैसी जैविक सामग्री का प्रयोग करें।
  • थिनिंग और प्रूनिंग : उच्च घनत्व वाले वृक्षारोपण में पतली और छंटाई की आवश्यकता होती है। पहले वर्ष के बाद यांत्रिक थिनिंग करें और अवांछित, कमजोर पौधों को हटा दें। छंटाई दूसरे वर्ष के अंत या तीसरे वर्ष की शुरुआत में करनी चाहिए। क्लोनों के लिए, कटाई के चरण तक छंटाई की आवश्यकता नहीं होती है।
  • सिंचाई प्रबंधन : यूकेलिप्टस पौधे सूखा सहन कर सकते हैं, लेकिन पौधरोपण के तुरंत बाद पानी देना चाहिए। बरसात के मौसम को छोड़कर प्रति वर्ष 5 बार पानी दें। ड्रिप सिंचाई से नमी बनाए रखें। सिंचाई की संख्या मिट्टी के प्रकार, मौसम की स्थिति और मिट्टी में नमी की मात्रा पर निर्भर करती है। गर्म शुष्क मौसम में पौधों को विशेष रूप से पानी दें।
  • रोग एवं कीट: नीलगिरी के पौधों को प्रभावित करने वाले प्रमुख रोग और कीट हैं: पित्त ततैया, पत्ता भृंग, जंग, ब्लाइट और नीलगिरी की जड़ सड़न। ये समस्याएँ नीलगिरी के बागानों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे लकड़ी की वृद्धि, उपज, और गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसके लिए आवश्यक है कि नियमित निगरानी, समय पर छंटाई, और उपयुक्त कीटनाशकों या फफूंदनाशक का उपयोग करके इन कीटों और रोगों को नियंत्रित करें।
  • फसल की कटाई: यूकेलिप्टस की बढ़वार आठवें वर्ष तक होती है। नौ से दस वर्ष बाद कटाई करें। बल्लियों के लिए कटाई तीन साल बाद की जा सकती है। सिट्रोनेला सामग्री के उच्च स्तर के लिए, पत्तियों की कटाई आवधिक अंतराल (6-12 महीने) पर करें।
  • उपज: पेड़ों की आपसी दूरी, सिंचाई, उर्वरक और किस्मों पर निर्भर करती है। 9-10 वर्ष के पेड़ से 5-6 क्विंटल लकड़ी प्राप्त होती है। दस साल पुराना पेड़ लगभग 2000 से 2500 रुपये में बिक जाता है। विभिन्न कारकों के आधार पर उपज भिन्न हो सकती है। 1x1 मीटर अंतर में 4 वर्षों में 25 टन प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है, जबकि 2x2 मीटर की दूरी में 8 सालों में प्रति एकड़ 40 से 50 टन लगभग उपज मिलती है।
  • नीलगिरी के लाभ (Benefits of Eucalyptus): नीलगिरी के पौधे कई महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करते हैं। इसकी इमारती लकड़ी उच्च गुणवत्ता वाली होती है, जिसका उपयोग जहाज निर्माण, खंभों, और सस्ते फर्नीचर में किया जाता है। नीलगिरी की पत्तियों से प्राप्त तेल गले, नाक, और सर्दी-खांसी के इलाज में उपयोगी है। इसके गोंद का उपयोग कागज और चमड़ा बनाने में होता है, जबकि छाल का उपयोग भी इसी प्रकार किया जाता है। नीलगिरी की लकड़ी को जलाऊ लकड़ी और उच्च गुणवत्ता के चारकोल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके पोल निर्माण और ट्रांसमिशन कार्यों में काम आते हैं। नीलगिरी का उपयोग ग्रामीण लघु उद्योगों, शहद उत्पादन, और कागज उद्योग में भी किया जाता है, जिससे इसकी मांग निरंतर बनी रहती है।

क्या आप नीलगिरी की खेती करना चाहते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: नीलगिरी की पहचान कैसे करें?

A: नीलगिरी के पेड़ की पहचान इसके पतले और बहुत लंबे आकार से की जा सकती है। इसकी लकड़ी सफेद रंग की होती है, जो मजबूत और टिकाऊ होती है। नीलगिरी की पत्तियां लंबी और नुकीली होती हैं, जिन पर छोटे-छोटे गांठ होती हैं, जिनसे औषधीय तेल प्राप्त किया जाता है। इसके फल सख्त होते हैं, जिनमें छोटे-छोटे बीज होते हैं। नीलगिरी के पल्लव पर सफेद रंग के सुंदर फूल खिलते हैं, जो इसकी पहचान को और भी विशेष बनाते हैं।

Q: नीलगिरी कहाँ पाया जाता है?

A: भारत में, नीलगिरी मुख्य रूप से दक्षिणी राज्यों में पाया जाता है। यह तमिलनाडु की नीलगिरी पहाड़ियों, बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, गोआ, महाराष्ट्र, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगता है। नीलगिरी की खेती इन क्षेत्रों के ठंडे और नम जलवायु में अधिक होती है।

Q: सफेद (नीलगिरी) का पेड़ कितने साल में तैयार हो जाता है?

A: सफेद (नीलगिरी) का पेड़ लगभग 8 से 10 वर्षों में तैयार हो जाता है। इस समय के बाद पेड़ से लकड़ी और तेल का उत्पादन किया जा सकता है, जो व्यावसायिक उपयोग के लिए उपयुक्त होता है। हालांकि, पेड़ की गुणवत्ता, जलवायु, और देखभाल के आधार पर यह समय थोड़ा बदल भी सकता है।

6 Likes
Like
Comment
Share
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ

फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ