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बाजरा: फसल में धीमा विकास और कम पैदावार, दोनों से पाएं छुटकारा

बाजरा शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों का एक महत्वपूर्ण फसल है। बाजरा भोजन, चारा और पोषण की दृष्टि से भी एक परिपूर्ण अनाज है, इसके साथ ही सूखा सहन करने की बेहतर क्षमता रखने के कारण बाजरा अक्सर उन क्षेत्रों में उगाया जाता है जहाँ गर्मी के साथ ही पानी की सुविधा कम हो।

विभिन्न देशों के खेती प्रणाली में जैविक और अजैविक कारकों के प्रति फसलों की संवेदनशीलता उत्पादकता में गिरावट के प्रमुख कारण हो सकते हैं। वहीं क्योंकि भारत में मुख्यत: गर्मी और बरसात के मौसम में बाजरा की खेती की जाती है, तो फसल में खरपतवार जैसी समस्या भी फसल में बड़ा नुकसान करने के पक्ष में कार्य करती है। तो आइये जानते हैं, फसल में खपरपतवार से होने वाले नुकसान और इन्हें नियंत्रित करने के लिए अपनाए जाने वाले कुछ उपायों के बारे में।

बाजरा की फसल में खरपतवार से होने वाले नुकसान

बाजरा का शुरूआती विकास दर अन्य फसलों की अपेक्षा धीमा होता है, जिससे खरपरवार बाजरे की फसल पर पूरी तरह से हावी हो जाते हैं और खरपतवार नियंत्रण किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन जाती है।

  • खरपतवार फसल के लिए उपलब्ध पोषक तत्वों को अवशोषण करते हैं।

  • मुख्य फसल में पोषण की कमी के कारण फसल का विकास दर कम हो जाता है।

  • फसल की उपज और फसल की गुणवत्ता कम हो जाती है।

बाजरा में खरपतवार नियंत्रण

फसल में शाकनाशियों का चयन खेत में पाए जाने वाले विशिष्ट प्रकार के खरपतवारों (चौड़ी पत्ती/घास या सेज) के आधार पर किया जाना चाहिए।

  • फसल की बुवाई के बाद 2 से 3 दिनों के भीतर खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए एट्राज़ीन का 400-800 ग्राम मात्रा का छिड़काव प्रति एकड़ खेत के अनुसार करें। ध्यान रहें कि शाकनाशियों के प्रयोग के समय मिट्टी में इष्टतम नमी होनी चाहिए।

  • यदि खरपतवार में 2-3 पत्ते आ चुके हो, तो इस अवस्था में 1.2 लीटर 2,4-डी डाइमिथाइल एमाइन साल्ट 58% एसएल का छिड़काव प्रति एकड़ की दर से खरपतवार पर करें।

  • कुदाल का प्रयोग सबसे कारगर एवं असरदार तरीकों में से एक है, अतः समय-समय पर खेतों में हाथ से भी निराई गुड़ाई करें।

बाजरा की खेती से जुड़ी अन्य किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए अभी कॉल करें 1800 1036 110 पर और पाएं मुफ्त सलाह देहात कृषि विशेषज्ञों से।


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