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बाजरा उगाने वाले किसानों के लिए रतुआ रोग बना चिंता का विषय
बाजरा उगाने वाले किसानों के लिए रतुआ रोग बना चिंता का विषय
रतुआ रोग बाजरा के फसल उगाने वाले किसानों के लिए चिंता का एक बड़ा विषय है। यह रोग पक्सीनिया नामक कवक के कारण होता है और देश के उत्तरी भागों में दिखता सामान्यतः बीज के विकास चरण के बाद दिखाई देता है। किसान यहां पर ध्यान दें कि फूल आने से पहले अगर संक्रमण हो, तो फसल को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। इसके अलावा यह रोग गिरते तापमान के साथ अधिक तेजी से फैलता है जिसके कारण सितम्बर से अक्टूबर के महीनों में बाजरा उगाने वाले किसानों को रतुआ रोग के रोकथाम के लिए सजग होकर सावधानी बरतनी चाहिए और निरंतर अपने खेत का निरीक्षण करते रहना चाहिए।
फसल में रोग के लक्षण पत्ती के दोनों ओर उभरे हुए हरे से पीले से सफेद धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। रोग जैसे-जैसे बढ़ता है, धब्बे हलके पड़ने लगते हैं और पीले रंग का हल्का घेरा विकसित करते हुए लाल-नारंगी जंग खाए हुए दाने जैसे बन जाते हैं। बाद में जैसे-जैसे दाने पुराने होते हैं उनका रंग और गहरा पड़ने लगता हैं । अधिक संक्रमण होने पर पत्तियाँ ऊपर से नीचे तक मुरझा जाती हैं और रोग तनों तक फैलता हुआ पौधों को जमीन पर गिरा देता है।
कैसे होता है रोग का फैलाव?
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इस रोग के फैलाव के लिए उपयुक्त तापमान रात के समय 15-20 C और दिन में 25-34 C अनुकूल होता है।
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पत्तियों में ओस जमा होने से भी रोग के फैलाव को बढ़ावा मिल जाता है।
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हवा के बहाव से भी यह बीजाणु खेत में लम्बी दूरी तय कर सकते हैं। इसके अलावा कई घास-खरपतवारों पर भी रतुआ रोग के लिए ज़िम्मेदार कवक के बीजाणु विकसित हो सकते हैं जो खरपतवार बाजरे की फसल में रोग फैलाने में मदद करते हैं।
कैसे करें प्रबंधन
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रोग के प्रतिरोधी प्रजातियों का रोपण करें।
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खेत से खरपतवारों को नष्ट कर दें।
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बैंगन के पौधे के पास बाजरा की फसल लगाने से बचें।
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रोग से बचाव के लिए सल्फर अथवा कॉपर जनित कवकनाशी का उपयोग किसी कृषि विशेषज्ञ के सुझाव से करें।
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