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9 Aug
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बेल की खेती (Bael Farming)


बेल पोषक तत्वों और औषधीय गुणों के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह एक घरेलू फल वाला वृक्ष है, जिसे भारत में धार्मिक रूप से भी सम्मानित किया जाता है। बेल को बंगाली बेल, भारती बेल, सुनहरी सेब, और पवित्र फल जैसे नामों से जाना जाता है। इसके फल और पत्तियों का उपयोग दस्त, पेट दर्द, और पाचन समस्याओं के इलाज में किया जाता है। बेल एक पतझड़ वाला वृक्ष है जिसकी ऊंचाई 6-8 मीटर तक होती है, और इसके हरे-सफेद सुगंधित फूल होते हैं। यह हिमालय तलहटी, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, और अन्य क्षेत्रों में पाया जाता है।

कैसे करें बेल की खेती? (How to cultivate bael?)

  • मिट्टी: बेल एक सहनशील पेड़ है और इसे सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बालुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। बेल की खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6-8 होना चाहिए। बंजर एवं ऊसर भूमि जिसका पी.एच. मान 5 से 8.5 तक हो, उसमें भी बेल की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
  • जलवायु: बेल उपोष्ण जलवायु का पौधा है, लेकिन इसे उष्ण, शुष्क और अर्द्ध शुष्क जलवायु में भी उगाया जा सकता है। इसे 7 से 46 डिग्री सेल्सियस तापमान में उगाया जा सकता है। इसकी टहनियों पर कांटे होते हैं और मई-जून की गर्मी में इसकी पत्तियां झड़ जाती हैं, जिससे यह शुष्क जलवायु को सहन कर सकता है।
  • उन्नत किस्में: बेल की खेती में उन्नत किस्में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनमें नरेन्द्र बेल 5, पंत शिवानी, पंत अर्पणा, पंत उर्वशी, पंत सुजाता, सी.आई.एस.एच.बी. 1 और सी.आई.एस.एच.बी. 2 जैसी प्रमुख किस्में शामिल हैं। ये किस्में बेहतर उत्पादन, रोग प्रतिरोधक क्षमता और फल की गुणवत्ता में सुधार के लिए विकसित की गई हैं। इन किस्मों का चयन करने से किसानों को अधिक उपज और बेहतर फल प्राप्त हो सकते हैं, जिससे बेल की खेती को अधिक लाभकारी बनाया जा सकता है।
  • बुवाई का समय: बेल की बुवाई के लिए फरवरी से मार्च या जुलाई से अगस्त का समय सबसे उचित होता है।
  • पौधरोपण: अंकुरित पौधों को 8x8 मीटर की दूरी पर लगाएं और नए पौधों के बीच 10x10 मीटर का फासला रखें। बेल की बुवाई नर्सरी से मुख्य खेत में की जाती है। बेल के प्रजनन के लिए पैच और रिंग बडिंग विधियाँ सबसे उपयुक्त हैं, क्योंकि इसमें अधिक सफलता मिलती है। बीजों को 12-14 घंटे पानी में भिगोकर फिर हवा में सुखा लें, और बाद में पॉलीथिन बैग या नर्सरी बेड में उगाएं। मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए सूखे पत्तों से मल्चिंग करें और नर्सरी बेड पर बीजों की बुवाई करें। बीज 2-3 हफ्तों में अंकुरित हो जाएंगे। नर्सरी से लगाए गए पौधे बीजों से बेहतर होते हैं, क्योंकि नर्सरी में पौधों को पैच बडिंग और रूट कटिंग के जरिए तैयार किया जाता है। समय-समय पर पौधों की छंटाई करें और 4-6 टहनियों को उचित आकार में रखें। बेल पानी की कमी के प्रति संवेदनशील होती है, इसलिए इसकी देखभाल अच्छे से करें।
  • खाद और उर्वरक प्रबंधन: खाद और उर्वरक प्रबंधन में, हर साल प्रति पौधा 5 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 100 ग्राम यूरिया, 54 ग्राम डाई अमोनियम फास्फेट (DAP), और 83 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) डालना चाहिए। यदि बेल के पेड़ की उम्र 10 साल या उससे अधिक है, तो 1,087 ग्राम यूरिया, 1,389 ग्राम DAP, और 833 ग्राम MOP का उपयोग करें, साथ ही प्रति पौधा 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद भी डालें।
  • सिंचाई प्रबंधन: सिंचाई प्रबंधन के तहत, बेल की रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए। फल लगने के समय 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें और गर्मियों में 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। मार्च में फल बनने के समय पर्याप्त नमी बनाए रखें। 10-12 वर्ष से कम आयु के पौधों में, शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में 20-25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। ड्रिप सिंचाई पद्धति का उपयोग करने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
  • खरपतवार प्रबंधन: खरपतवार प्रबंधन के लिए, शुरुआती साल में गर्मी के मौसम में 2-3 बार और बारिश के मौसम में 1-2 बार गुड़ाई करनी चाहिए। समय-समय पर पौधों के आसपास 2-3 बार निराई-गुड़ाई करें ताकि पौधों को उचित पोषण मिल सके।
  • रोग एवं कीट: रोग और कीट प्रबंधन में, बेल का पेड़ कुछ रोगों और कीटों से प्रभावित हो सकता है। मुख्य रोगों में काले धब्बे रोग, कालर रॉट रोग, चूर्णिल आसिता, और मृदुरोमिल आसिता शामिल हैं। कीटों में फल मक्खी, पर्ण सुरर्गी, पर्ण भक्षी, पत्ते खाने वाली सुंडी, और बेल की तितली शामिल हैं। इन समस्याओं को समय पर नियंत्रण करना आवश्यक है ताकि पौधे स्वस्थ और उत्पादक बने रहें।
  • तुड़ाई: बेल के पौधे तीसरे वर्ष से फल देना प्रारम्भ कर देते हैं। फल पकने के लक्षण निम्नलिखित हैं: फल बाहर से कड़ा हो जाता है। फल का रंग गहरा हरा हो जाता है। फल का बाहरी आवरण हल्का पीला हो जाता है। फल पर भूरे धब्बे आ जाते हैं। तुड़ाई का सही समय सितंबर-अक्टूबर होता है।
  • उपज: बेल का पौधा रोपाई के तीसरे वर्ष से फल देना प्रारम्भ कर देता है और छठवें साल से पूरी तरह उत्पादन देने लगता है। एक विकसित पेड़ से 200-250 फल प्राप्त होते हैं, जिसका वजन लगभग 250-300 किलोग्राम तक हो सकता है। बेल की फसल का उत्पादन इसकी खेती करने के तरीके, सिंचाई, खाद, बीज आदि पर निर्भर करता है।

क्या आप बेल की खेती करना चाहते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: बेल का पेड़ कब लगाना चाहिए?

A: बेल का पेड़ लगभग सभी प्रकार की मिट्टी और जलवायु में लगाने के लिए सक्षम होता है इसकी बुवाई के लिए फरवरी से मार्च या फिर  जुलाई से अगस्त का महीना सबसे अच्छा होता है।

Q: भारत में बेल कहाँ पाया जाता है?

A: भारत में बेल हिमालय तलहटी, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, और अन्य क्षेत्रों में पाया जाता है।

Q: बेल का पेड़ कितने वर्ष में फल देता है?

A: नर्सरी में तैयार बेल के पौधे रोपण के तीसरे साल से फल देना शुरू कर देते हैं वहीँ बीजों द्वारा लगाए गए बेल के पेड़ों को 7 से 8 साल तक का वक़्त लगता है।

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