बैंगन में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग, इस तरह करें नियंत्रण! (Some major diseases of brinjal, control them in this way!)

बैंगन के पौधों में जीवाणु उखटा रोग, छोटी पत्ती रोग, फल सड़न रोग और आर्द्रगलन जैसे कई प्रमुख रोगों का प्रकोप देखने को मिलता है, जो पौधों की वृद्धि, फूलों और फलों को प्रभावित कर उत्पादन को कम कर देते हैं। इन रोगों का समय पर निदान और नियंत्रण बहुत आवश्यक है, अन्यथा पूरी फसल खराब हो सकती है। इन रोगों के लक्षण जैसे पत्तियों का पीला होना, फल सड़ना, पौधों का मुरझाना आदि को ध्यान में रखते हुए सही उपचार करना चाहिए। इस लेख में, बैंगन के प्रमुख रोगों के लक्षणों और नियंत्रण के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।
बैंगन की फसल को कौन से रोग नुकसान पहुंचाते हैं? (Which diseases damage the brinjal crop?)
छोटी पत्ती रोग (Little Leaf Disease): इस रोग के लक्षण पौधों में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। प्रभावित पौधों की पत्तियां सामान्य से छोटी और गुच्छेदार हो जाती हैं। पौधों की पोरियाँ (Nodes) भी छोटी हो जाती हैं, जिससे पौधे का विकास रुक जाता है। इस रोग के कारण पौधों में फूल और फलन कम हो जाता है या बिल्कुल नहीं होता। प्रारंभिक अवस्था में, पौधों में फल-फूल नहीं बनते, जिससे उपज में भारी कमी आती है। जब संक्रमण देर से होता है, तो फल विकृत हो जाते हैं और उनका आकार सिकुड़ जाता है। संक्रमित पौधों के फल अंदर से सड़े हुए होते हैं, जिससे उन्हें काटने योग्य नहीं रह जाता। यह रोग पत्ती हॉपर (leafhopper) कीट के द्वारा ही फैलता है।
नियंत्रण:
- फसल की नियमित निगरानी करें और कीट के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत उपचार करें। इससे रोग के प्रसार को रोका जा सकता है।
- रोगी पौधों को उखाड़ कर जला दें या गड्ढा खोदकर मिट्टी में दबा दें। इससे रोग के फैलने की संभावना कम होती है।
- पुराने बीज का उपयोग न करें। हमेशा शुद्ध और स्वस्थ बीज का चयन करें ताकि रोग का प्रसार न हो।
- प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग करें, जैसे कि परजीवी कीट, जो फुदका कीट की आबादी को नियंत्रित कर सकते हैं।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL (मीडिया) का 100 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- थियामेथोक्साम 25% डब्ल्यू.जी. (जैसे देहात एसीयर, धानुका-अरेवा) का प्रति एकड़ 40 से 80 ग्राम छिड़काव करें।
- फ्लक्समेटामाइड 10% ई.सी. (गोदरेज ग्रासिया) दवा को 160 एमएल प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- लैम्ब्डा-साइहलोथ्रिन 5% ईसी (सिजेंटा कराटे) दवा को 120 मि.ली. प्रति एकड़ बैगन के खेत में छिड़काव करें।
- फुदका कीट के नियंत्रण के लिए स्पाइरोमेसिफेन 240 एससी 22.9% डब्ल्यू/डब्ल्यू (बायर ओबेरॉन, सोलेमन) दवा को 160 मिली प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
जीवाणु उखटा रोग (Bacterial Wilt Disease): इस रोग के प्रमुख लक्षण पौधों की पत्तियों में मुरझाने और पौधे के विकास में रुकावट के रूप में दिखाई देते हैं। दिन के समय, तेज धूप में पौधे अधिक मुरझाते हैं, जबकि रात में पौधे थोड़े ठीक लगते हैं। आखिर में अगर उपचार नहीं किया गया, तो पौधा धीरे-धीरे सूख कर मर जाता है। इस रोग का प्रमुख संकेत यह है कि प्रभावित पौधों की पत्तियां धीरे-धीरे पीली होकर गिरने लगती हैं, और पौधे की संवहन प्रणाली (Vascular System) भी प्रभावित होती है।
नियंत्रण:
- प्रभावित पौधों को उखाड़ कर जला दें ताकि रोग का प्रसार न हो।
- रोपाई से पहले खेत की एक बार गहरी जुताई करें, जिससे मिट्टी में मौजूद फफूंद नष्ट हो जाए।
- बैंगन की फसल को बार-बार एक ही खेत में न लगाएं, ताकि मिट्टी में मौजूद रोगजनकों को नष्ट किया जा सके।
- 40 किलोग्राम सड़ी गोबर खाद में 1.5-2 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी मिलाकर खेत में डालें, ताकि मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार हो सके।
- बैंगन को बुवाई के पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।
- थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यू/डब्ल्यू (बायोस्टैड रोको) दवा को 2 से 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर ड्रिप सिंचाई या मिट्टी में भिगोकर उपचार करें।
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साफ़, देहात साबू) दवा को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर ड्रिप या मिट्टी में भिगोने से रोग नियंत्रण में मदद मिलती है।
- कासुगामाइसिन 3% एस.एल. (कासु-बी) दवा को 2 मिलीलीटर को प्रति लीटर पानी में मिलाकर ड्रिप या मिट्टी में मिलाने से रोग नियंत्रण में सहायता मिलती है।
- अधिक संक्रमण की स्थिति में, कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP (धानुका कोनिका) दवा को 300 ग्राम प्रति एकड़ पानी में मिलाकर ड्रिप या मिट्टी को भिगोकर उपचार करें।
आर्द्रगलन (डेम्पिंग ऑफ़):
यह रोग छोटे पौधों को प्रभावित करता है, जिससे बीज के अंकुरण में समस्या होती है। अंकुरित पौधों की पत्तियों और तनों पर काले धब्बे दिखने लगते हैं। तना और जड़ सड़ने लगती है, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और मुरझा कर गिर सकते हैं। प्रभावित पौधे अक्सर मिट्टी की सतह पर गीले और चिपचिपे दिखते हैं। पौधे का कॉलर क्षेत्र पानी से भीगा हुआ नजर आता है। जड़ें भी सड़ने लगती हैं और पौधे का विकास रुक जाता है।
नियंत्रण:
- मिट्टी में जल निकास ठीक से हो, ताकि पानी जमा न हो।
- लगातार एक ही खेत में नर्सरी तैयार न करें।
- बीज को 2 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी या 3 ग्राम कार्बेन्डाज़िम से उपचारित करें। 10 लीटर पानी में 100 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिलाकर घोल तैयार करें और रोपाई से पहले पौधों की जड़ों को 10 मिनट तक इसमें डुबोकर रखें।
- मेटालैक्सिल 4% + मैन्कोजेब 64% WP (रिडोमिल गोल्ड, मेटको) दवा को 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर बैगन की नर्सरी में छिड़काव करें।
- मेटालैक्सिल 35% WS (रिडोमेट 35, मैटेलिक) दवा 1.5 ग्राम एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: बैंगन की खेती कौन से महीने में की जाती है?
A: बैगन की खेती साल भर की जा सकती है, लेकिन भारत में इसे आमतौर पर जून से अक्टूबर के महीनों के बीच उगाया जाता है, जब मौसम और तापमान पौधों के विकास के लिए अनुकूल होते हैं।
Q: बैंगन कितने दिन में फल देने लगता है?
A: पौधों की रोपाई के लगभग 50 से 70 दिनों के बाद बैंगन में फल लगना शुरू हो जाते हैं। हालांकि, फलों के आने का समय पौधे की किस्म, जलवायु परिस्थितियों और खेती के तरीकों पर भी निर्भर करता है।
Q: बैंगन की ग्रोथ कैसे बढ़ाएं?
A: बैंगन के पौधों की अच्छी ग्रोथ के लिए जलजमाव से बचना चाहिए, क्योंकि इससे पौधों की जड़ें सड़ने का खतरा होता है। इसके अलावा, समय-समय पर उचित सिंचाई और संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। कीट और रोगों से बचाव के लिए सही समय पर छिड़काव करना भी जरूरी है, ताकि पौधों का विकास बिना किसी बाधा के हो सके।
Q: बैंगन में कौन-कौन से रोग लगते हैं?
A: बैगन में मुख्य रूप से जीवाणु उकठा रोग, छोटी पत्ती रोग, फलों का सड़न रोग, मोजैक वायरस और फोमोप्सिस अंगमारी जैसे प्रमुख रोग होते हैं, जो पौधों की ग्रोथ को प्रभावित कर सकते हैं और फलन को कम कर सकते हैं।
Q: बैंगन की पत्ती का छोटा होना क्या कारण है?
A: बैगन की पत्तियों का आकार छोटा होना छोटी पत्ती रोग का लक्षण हो सकता है, जो माइकोप्लाज्मा जनित रोग है और यह फुदका कीट के माध्यम से फैलता है। इस रोग के कारण पत्तियां गुच्छों जैसी दिखने लगती हैं, पौधों की पोरियाँ छोटी हो जाती हैं, और फलन रुक जाता है। उचित देखभाल और संक्रमित पौधों को हटाकर इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
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