बबूल की खेती: पाएं सही समय और मिट्टी से जुड़ी जानकारी

बबूल वृक्ष का परिचय
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बबूल को साधारण भाषा में कीकर, बबूर, कारूबेल आदि नामों से जाना जाता है।
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बबूल का प्रयोग औषधीय गुणों के आधार पर भी किया जाता है।
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यह दस्त का इलाज, घावों को ठीक करने, बाल गिरने, दांत विकार और एक्जिमा जैसे रोगों के खिलाफ प्रभावी रूप से उपयोगी माना जाता है।
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इसके अलावा फर्नीचर, सौंदर्य उत्पादों और ईंधन के लिए भी यह वृक्ष प्रभावी रूप से उपयोगी है और किसान इसकी खेती कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
खेती का उपयुक्त समय
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बबूल की खेती के लिए फरवरी से मार्च महीने में बीजों की बुवाई की जाती है।
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बीजों को प्रसारण या डिबलिंग विधि से बोया जाता है।
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पौधे लगभग 5 महीने में रोपाई के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं।
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पौधों की रोपाई जुलाई से सितंबर तक पूरी हो जाती है।
खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
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बबूल की खेती के लिए अर्ध शुष्क, गर्म शीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है।
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वृक्षों के बेहतर बढ़वार के लिए सामान्य तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड से 45 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए।
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पेड़ अधिक वर्षा और अधिक ठंड वाले इलाकों में नहीं बढ़ पाते हैं।
खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
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वृक्षों के बेहतर विकास के लिए जलोढ़ दोमट और काली कपास मिट्टी बेहतर मानी जाती है।
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भूमि का पीएच मान 7.9 से कम होना चाहिए।
रोपाई की विधि
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पौधों की रोपाई के लिए 30 सेंटीमीटर ऊंचाई, लम्बाई और गहराई के गड्ढे तैयार किए जाते हैं।
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पंक्ति से पंक्ति की दूरी 4 मीटर होनी चाहिए।
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पौधे से पौधे की दूरी 4 मीटर रखें।
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प्रति एकड़ में पौधों की रोपाई के लिए 240 से 250 पौधे पर्याप्त होते हैं ।
यह भी देखें:
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