भिंडी में येल्लो वेन मोजेक रोग से बचाव और उपाय

भिन्डी में लगने वाला पीला शिरा (यलो वेन मोजेक) रोग एक विषाणु जनित रोग है, जो फसल में उपस्थित रस-चूसक कीटों के द्वारा एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलता है। भारत के सभी भिंडी उगाने वाले क्षेत्रों में यह सबसे विनाशकारी बीमारी है। यह रोग इतना विनाशकारी है कि जो पौधा इस रोग से ग्रसित हो जाता है, वह स्वथ्य नहीं हो पाता है। इसलिए केवल रसचूसक कीटों पर नियंत्रण कर ही रोग के नियंत्रण को कम किया जा सकता है। यदि फसल प्रारंभिक अवस्था में संक्रमित हो जाती है तो 80% तक फसल के नुकसान की आशंका होती है।
रोग के लक्षण
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रोग के शुरुआती लक्षण पत्तियों की पीली पड़ी शिराओं पर देखे जा सकते हैं। अधिक संक्रमण होने पर पूरी पत्तियां पीली हो जाती है।
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पत्तियाँ पीली चितकबरी होकर मुड़ने और सिकुड़ने लगती हैं।
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इस रोग से प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते हैं। यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में हमला कर सकता है।
रोग से बचाव
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रोग से ग्रसित पौधों को नष्ट कर दें।
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फसल में रोग का संक्रमण मुख्यत: सफेद मक्खी से अधिक फैलता है। अतः इस कीट की रोकथाम के लिए डाइमेथोएट 30% इसी की 400 मिलीलीटर मात्रा या एसिटामिप्रिड 20% एस पी की 100 ग्राम मात्रा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से खेत में छिड़कें।
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सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 1 फेरामोन ट्रैप प्रति एकड़ का उपयोग कर सकते हैं।
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डायफैनथीयुरॉन 50% डब्ल्यू पी की 250 ग्राम मात्रा या पायरीप्रोक्सीफैन 10% के साथ बॉयफैनथ्रिन 10% इसी की 250 मिलीलीटर मात्रा का छिड़काव भी सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए जा सकता है।
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टोल्फेनपायरॅड 15% इसी की 200 मिलीलीटर मात्रा को प्रति एकड़ की दर से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें
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जैविक माध्यम से रोग के उपचार के लिए बवेरिया बेसियाना (मित्र फफूंदनाशी) की 250 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।
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