भिंडी मे लगने वाले प्रमुख रोग व उनकी रोकथाम
कई प्रकार के रोगों के कारण भिंडी की फसल बरबाद हो जाती है। जिस कारण किसानों को उचित लाभ नहीं मिल पाता है। अच्छी पैदावार के लिए पौधों को रोग रहित रखना आवश्यक है। सही प्रबंधन कर के आप भिंडी को रोगों से बचा सकते हैं।
भिंडी में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग
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पीत शीरा मोजेक वायरस : इस रोग को यलो वेन मोजेक वायरस भी कहते हैं। यह रोग सफेद मक्खियों के द्वारा फैलता है। इस रोग में पत्तियों पर पीले धब्बे होने लगते हैं। रोग बढ़ने पर फल भी पीले होने लगते हैं। इस रोग से ग्रस्त पौधों का विकास रुक जाता है। वर्षा ऋतू में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इससे बचने के लिए पौधों में फूल आने से पहले एवं बाद में प्रति एकड़ खेत में 60 ग्राम एसितामाइप्रिड 20 एसपी का छिड़काव करें। अवश्यकतानुसार 10 दिन पर दोबारा छिड़काव करें। बुवाई से पूर्व इमिडाक्लोरपिड 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचरित करके बुवाई करने से भी इस रोग को कम किया जा सकता है।
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पाउडरी मिल्ड्यू : इस रोग के होने पर पौधों की पत्तियों और तनों पर सफेद रंग के चूर्णी धब्बे बनने लगते हैं। रोग बढ़ने पर पत्तियां पीली हो कर झड़ने लगती हैं। इस रोग से बचने के लिए प्रति लीटर पानी में 2 मिलीलीटर हेक्साकोनाजोल 5% ई.सी या 3 ग्राम सल्फर 80% डबल्यूपी या 2 मिलिलीटर डीनोकैप मिला कर छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 10 से 12 दिनों के अंतराल पर फिर छिड़काव कर सकते हैं।
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आर्द्रगलन रोग : इस रोग से पौधों का तना काला होने लगता है। इससे पौधे कमजोर हो जाते हैं या सूखने लगते हैं। फलस्वरूप पैदावार कम हो जाती है। वातावरण में अधिक आद्रता होने पर यह रोग बढ़ने लगता है। इस रोग से बचने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम से उपचारित करें। पौधों को उचित दूरी पर लगाएं। जिससे खेत में हवा का आवागमन बना रहे। प्रभावित पौधों को खेत से बाहर निकाल दें।
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जड़ गलन : इस रोग से प्रभावित पौधों की जड़ें सड़ने लगती हैं। धीरे - धीरे पौधे पीले होने लगते हैं। इस रोग से पौधों को बचाने के लिए बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम बाविस्टीन से उपचारित करें। खेत में खरपतवार का उचित प्रबंधन रखें। खेत में जल निकास का प्रबंध रखें तथा अधिक सिंचाई से बचें।
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