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9 Aug
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ब्लूबेरी की खेती | Blueberry Cultivation

ब्लूबेरी एक महत्वपूर्ण फल है जो अपनी पौष्टिकता और स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इसे आमतौर पर ठंडे और समशीतोष्ण क्षेत्रों में उगाया जाता है। ब्लूबेरी में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन्स और फाइबर की उच्च मात्रा पाई जाती है, जिससे यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। इसके स्वाद और गुणों के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है। भारत में ब्लूबेरी की खेती हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर के कुछ क्षेत्रों में की जाती है। अगर आप भी करना चाहते हैं ब्लूबेरी की खेती तो इसकी खेती से जुड़ी बारीकियों की जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

ब्लूबेरी की खेती कैसे करें? How to cultivate Blueberry

  • ब्लूबेरी की खेती के लिए उपयुक्त समय: ब्लूबेरी की खेती के लिए उपयुक्त समय उस क्षेत्र की जलवायु और तापमान पर निर्भर करता है। सामान्यतः ब्लूबेरी के पौधे को लगाने का सबसे अच्छा समय वसंत ऋतु यानी मार्च से अप्रैल और शरद ऋतु यानी दिसंबर से मार्च होता है। इन समयों में पौधे तेजी से जड़ पकड़ते हैं और आने वाले मौसम में अच्छे से बढ़ते हैं। ठंडे क्षेत्रों में जहां ठंढ का प्रभाव होता है, वहां वसंत ऋतु में पौधे लगाने की सलाह दी जाती है ताकि पौधे ठंढ से प्रभावित न हों।
  • उपयुक्त जलवायु: ब्लूबेरी की खेती के लिए समशीतोष्ण और ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह फसल उन क्षेत्रों में बेहतर वृद्धि करती है जहां गर्मी का तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है और ठंड का तापमान 0 से 7 डिग्री सेल्सियस तक गिरता है। ब्लूबेरी के पौधों को ठंडा तापमान आवश्यक होता है जिससे उनमें फल अच्छी मात्रा में आ सकें। इसीलिए उच्च पहाड़ी क्षेत्रों और ठंडे प्रदेशों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
  • उपयुक्त मिट्टी: इसकी खेती के लिए अम्लीय मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसके अलावा जल निकासी की सुविधा युक्त हल्की रेतीली मिट्टी या दोमट मिट्टी में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। मिट्टी का पीएच स्तर 4.2 से 4.8 के बीच होना चाहिए। इसके पौधे जल भराव की स्थिति के प्रति सहनशील नहीं होते हैं। इसलिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि मिट्टी में पानी का निकास अच्छे से हो। मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की उच्च मात्रा पौधों के लिए फायदेमंद होती है, जिससे पौधे स्वस्थ रहते हैं और बेहतर फसल उत्पादन होता है।
  • बेहतरीन किस्में: इसकी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए किस्मों का चयन सावधानी पूर्वक करें। आप ब्लूबेरी की ऑरोरा, ऑस्टिन, ब्लूक्रॉप, ब्लूगोल्ड, ब्लूजे, ब्लूरे, ब्राइट ब्लू, चैंडलर, डारो, ड्रेपर, ड्यूक, अर्लीब्लू, इलियट, गल्फ कोस्ट, हार्डीब्लू, जर्सी, लिगेसी, लिबर्टी, नॉर्थलैंड, पैट्रियट, रेका, रूबेल, स्पार्टन और टोरो किस्मों की खेती कर सकते हैं।
  • खेत तैयार करने की विधि: खेत तैयार करते समय मिट्टी की बनावट में सुधारने और जल निकासी व्यवस्था बेहतर करने के लिए सबसे पहले 1 बार गहरी जुताई करें। उसके बाद, खेत में कार्बनिक खाद, जैसे गोबर की खाद या कम्पोस्ट, का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद मिट्टी को समतल करें और पौधों की रोपाई के लिए खेत में 8 से 12 इंच गहरे गड्ढे तैयार करें।
  • पौधों की मात्रा: ब्लूबेरी की खेती पौधों की कटिंग लगा कर की जाती है। प्रति एकड़ खेत में खेती करने के लिए 1,000 1,200 पौधों की आवश्यकता होती है।
  • पौधों की रोपाई की विधि: पौधों की रोपाई सुबह या शाम के समय करें। सभी पौधों के बीच 1मीटर की दूरी रखें। वहीं कतारों के बीच 3 मीटर की दूरी होनी चाहिए। खेत में पहले से तैयार गड्ढों में पौधों की रोपाई करें और गड्ढों को मिट्टी से भरें। पौधे की जड़ें नाजुक होती हैं, इसलिए रोपाई करते समय सावधानी बरतनी चाहिए जिससे जड़ों को नुकसान न पहुंचे।
  • सिंचाई प्रबंधन: ब्लूबेरी के पौधों को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है, विशेष तौर पर शुरुआती दिनों में जब पौधे नए होते हैं। सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है, जिससे पौधों को आवश्यक मात्रा में पानी प्राप्त होता है और पानी की बचत भी होती है। गर्मियों के मौसम में सिंचाई का विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि इस दौरान मिट्टी जल्दी सूखती है। अत्यधिक मात्रा में सिंचाई न करें। इससे जल भराव हो सकता है और पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं।
  • खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार ब्लूबेरी के पौधों के लिए हानिकारक हो सकते हैं, क्योंकि वे पौधों के साथ पोषक तत्वों और पानी के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसलिए, खरपतवार नियंत्रण आवश्यक होता है। खरपतवारों को हटाने के लिए हाथों से निराई या यांत्रिक विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, मल्चिंग का उपयोग करके भी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। मल्चिंग से न केवल खरपतवारों की वृद्धि कम होती है, बल्कि मिट्टी की नमी भी बनाए रखी जाती है।
  • रोग एवं कीट नियंत्रण: ब्लूबेरी की फसल पर कुछ प्रमुख रोग और कीटों का आक्रमण हो सकता है, जिनमें फंगल रोग, ब्लूबेरी गैल माइट और ब्लूबेरी एफिड शामिल हैं। इनसे बचाव के लिए नियमित रूप से पौधों का निरीक्षण करना आवश्यक है। रोग एवं कीटों से बचाव के लिए नीम के तेल या जैविक कीटनाशकों का छिड़काव किया जा सकता है। समस्या बढ़ने पर कृषि विशेषज्ञों की परामर्श के अनुसार उचित रासायनिक कीटनाशाओं या फफूंदनाशकों का प्रयोग करें।
  • फलों की तुड़ाई: नए पौधों की रोपाई के करीब 2 से 3 वर्ष बाद पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं। पौधों में फूल आने के करीब 45 से 60 दिनों के बाद फल पक कर तैयार हो जाते हैं। जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं और उनका रंग गहरा नीला या बैंगनी हो जाता है, तब फलों की तुड़ाई की जाती है। फलों को हाथों से सावधानीपूर्वक तोड़ा जाता है ताकि पौधे को नुकसान न पहुंचे।

क्या आपने कभी ब्लूबेरी की खेती की है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इसके साथ ही इस पोस्ट में दी गई जानकारी को अधिक से अधिक व्यक्तियों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें। कृषि संबंधी अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: ब्लूबेरी का पौधा कितना बड़ा होता है?

A: ब्लूबेरी के पौधे पौधे की विविधता और उम्र के आधार पर आकार में भिन्न हो सकते हैं। आम तौर पर, परिपक्व ब्लूबेरी झाड़ियाँ 6 फीट लंबी और 6 फीट चौड़ी हो सकती हैं। हालांकि, कुछ किस्में 12 फीट तक लंबी हो सकती हैं। इसके छींटे पौधे 1-2 फीट लंबे हो सकते हैं।

Q: भारत में ब्लूबेरी कहां उगती है?

A: देश की गर्म जलवायु के कारण भारत में आमतौर पर ब्लूबेरी की खेती नहीं की जाती है। हालांकि, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू और कश्मीर राज्यों में कुछ किसानों ने हाल के वर्षों में ब्लूबेरी की खेती शुरू कर दी है। इन राज्यों में ठंडी जलवायु ब्लूबेरी की खेती के लिए उपयुक्त है।

Q: क्या जामुन को ब्लूबेरी कहते हैं?

A: ब्लूबेरी एवं जामुन यानी इंडियन ब्लैकबेरी कुछ हद तक एक जैसे दीखते हैं। लेकिन दोनों फल अलग है और उनका स्वाद भी अलग है। भारत में ब्लूबेरी की खेती केवल ठंडे पर्वतीय क्षेत्रों में की जाती है, वहीं जामुन की खेती पूरे देश में व्यापक रूप से खेती की जाती है। यह महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब सहित भारत के लगभग सभी राज्यों में उगाया जाता है।

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