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लौकी: कीट, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Bottle Gourd: Pests, Symptoms, Prevention and Treatment
कई पोषक तत्वों से भरपूर लौकी स्वास्थ्य की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण सब्जी वाली फसल है। लौकी सामान्य तौर पर दो आकार की होती है, पहली गोल और दूसरी लम्बी। इसका इस्तेमाल सब्जी के अलावा रायता और हलवा जैसी चीजों को बनाने में भी किया जाता है। लौकी के फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज-लवण, खाद्य रेशा के अलावा प्रचुर मात्रा में अनेकों विटामिन पाए जाते हैं। बाजार मांग अधिक होने के कारण इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा होता है। लेकिन कई बार कुछ कीटों के प्रकोप के कारण फसल की उपज एवं गुणवत्ता कम हो जाती है और किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। ऐसे में लौकी की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीटों की जानकारी होना आवश्यक है।
लौकी की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट एवं नियंत्रण के तरीके | Major Pests in Bottle Gourd Crop and Their Control Methods
रेड पम्पकिन बिटिल से होने वाले नुकसान: इस कीट का प्रकोप लौकी की फसल में ज्यादा दिखने को मिलता है। लाल कद्दू भृंग कीट पौधों की पत्तियों और कोमल शाखाओं को खाते हैं। यह कीट अपनी हर अवस्था में पौधों को हानि पहुंचाता है, इस कीट का लार्वा पौधों के तनो और फलो को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। पहचान की बात करें तो यह कीट नारंगी रंग के होते हैं, जिन पर कई रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
रेड पम्पकिन बिटिल पर नियंत्रण के तरीके:
- 80-100 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC (देहात एंटोकिल) दवा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 300-400 ग्राम ऐसफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी (युपीएल लांसर गोल्ड) दवा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 300 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30% ईसी (टाटा टैफगोर) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
फल मक्खी से होने वाले नुकसान: इस कीट का सुंडी अधिक हानि पहुंचाती है, प्रौढ़ मक्खी गहरे भूरे रंग की होती है। यह कीट छोटे, मुलायम फल में छेद करके उसमें अंडे देती है। इसके अंडे से सुंडी निकलकर फलों के अंदर का भाग को खराब करती है। कीट फल के जिस भाग में अंडा देती है, वहां से टेढ़ा होकर सड़ जाता है।
फल मक्खी पर नियंत्रण के तरीके:
- इसके प्रबंधन के लिए हरे-पीले स्टिकी ट्रैप 10-12 प्रति एकड़ प्रयोग करें।
- 150 मिलीलीटर डेल्टामेथ्रिन 2.8% ईसी (बायर डेसीस 2.8) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- सायनट्रानिलिप्रोल 10.26% w/w ओडी (एफएमसी बेनेविया) की 300 मिलीलीटर मात्रा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
रस-चूसक कीट से होने वाले नुकसान: यह पौधों के पत्तियों से रस चूस कर पत्तियों को कमजोर कर देते हैं। जिससे पौधे प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कम हो जाती है एवं पौधे कमजोर हो जाते हैं । पौधों का विकास रुक जाता है।
रस-चूसक कीट पर नियंत्रण के तरीके:
- थियामेथोक्साम 25% डब्ल्यू जी (देहात एसीयर) की 100 ग्राम मात्रा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 100 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC (देहात एंटोकिल) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 300-350 मिलीलीटर क्लोरपायरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% (देहात सी स्क्वायर) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 300-400 ग्राम ऐसफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी (युपीएल लांसर गोल्ड) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
लीफ माइनर (पत्ती सुरंग कीट) से होने वाले नुकसान: यह कीट पत्तियों में मौजूद हरे पदार्थ को खुरच कर खाते हैं। जिससे पत्तियों के अंदर सुरंग बन जाती है। इससे पत्तियों पर सफेद टेढ़ी-मेढ़ी धारी जैसी लकीर दिखाई देती है। इस कीट के कारण पौधों के विकास में भी बाधा आती है।
लीफ माइनर पर नियंत्रण के तरीके:
- 300-350 मिलीलीटर नीम के तेल को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- स्पिनेटोरम 11.7% एस सी (कॉर्टेवा डॉव डेलीगेट) की 150 मिलीलीटर मात्रा 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- 300 मिलीलीटर सायनट्रानिलिप्रोल 10.26% w/w ओ डी (एफएमसी बेनेविया) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- 300 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30% ईसी (टाटा टैफगोर) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
एपीलेकना बीटिल
से होने वाले नुकसान:
इस कीट के प्रौढ़ अंडाकार, पीले-भूरे रंग के होते हैं। यह कीट पत्तियों को खाते हैं, जिससे पत्ती में सिर्फ शिराये रह जाती हैं। जिस कारण पौधे खाना नहीं बना पाते हैं और पौधे का विकास रुक जाता है।
एपीलेकना बीटिल
पर नियंत्रण के तरीके:
- 80-100 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC (देहात एंटोकिल) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें ।
- 300-400 ग्राम ऐसफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी (युपीएल लांसर गोल्ड) को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- डाइमेथोएट 30% ईसी (टाटा टैफगोर) दवा की 300 मिलीलीटर मात्रा 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
आपकी लौकी की फसल में किस कीट का प्रकोप अधिक होता है और इन पर नियंत्रण के लिए आप किन दवाओं का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए
'किसान डॉक्टर'
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question (FAQs)
Q: लौकी काली क्यों हो जाती है?
A:
लौकी के काले पड़ने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे फंगल या बैक्टीरियल संक्रमण, कीटों का प्रकोप, आदि। इसके अलावा खेत में जल जमाव की स्थिति या सूखा होने पर भी लौकी के फल काले हो सकते हैं। अत्यधिक तापमान भी लौकी के काले होने कारणों में से एक है।
Q: लौकी के कौन-कौन से रोग हैं?
A:
लौकी की फसल में कई तरह के रोग लगते हैं। जिनमें चूर्णिल आसिता रोग, मृदुरोमिल आसिता रोग, एन्थ्रेक्नोज, बैक्टीरियल विल्ट, खीरा मोजैक वायरस रोग, कुछ प्रमुख रोग हैं।
Q: लौकी में फल क्यों नहीं लग रहा है?
A: अपर्याप्त परागण या पोषक तत्वों की कमी लौकी में फल नहीं लगने के कारण हो सकते हैं। इस समस्या से बचने के लिए परागण सुनिश्चित करें और उचित मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग करें।
Q: लौकी का अधिक फल लेने के लिए क्या करना चाहिए?
A:
लौकी का अधिक फल एवं ज्यादा पैदावार के लिए 3जी कटिंग करें, इस तकनीक के माध्यम से ज्यादा फल मिलते हैं, एवं किसान भाई अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
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