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14 June
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शिमला मिर्च: प्रमुख रोग, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Capsicum: Major Diseases, Symptoms, Prevention and Control

विटामिन सी एवं अन्य कई तरह के पोषक तत्वों से भरपूर शिमला मिर्च भारत में उगाई जाने वाली एक लोकप्रिय सब्जियों वाली फसल है। इसकी खेती मिर्च की खेती की तरह की जाती है। इन दोनों फसलों में रोग भी लगभग एक जैसे ही होते हैं। अब सवाल यह उठता है कि फसल को रोगों से बचाने के लिए शिमला मिर्च के पौधे की देखभाल कैसे करें? अगर आप भी कर रहे हैं शिमला मिर्च की खेती तो इस पोस्ट के माध्यम से आप शिमला मिर्च के रोग के लक्षण एवं नियंत्रण की विस्तृत जानकरी प्राप्त कर सकते हैं।

शिमला मिर्च की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Major Diseases of Capsicum crop

चूर्णिल आसिता रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को पाउडरी मिल्ड्यू रोग के नाम से जाना जाता है। यह एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग से प्रभावित फसलों की पत्तियों एवं टहनियों पर सफेद रंग के पाउडर की तरह पदार्थ उभरने लगता है। इससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा आती है और पत्तियां धीरे-धीरे पीली होने लगती हैं। रोग बढ़ने के साथ पौधों का विकास रुक जाता है।

चूर्णिल आसिता रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिन्पैक्ट) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 500 मिलीलीटर टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% डब्लूजी (देहात डनफी) का प्रयोग करें।
  • एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 8.3% + मैनकोज़ेब 66.7% डब्ल्यूजी (यूपीएल अवेंसर ग्लो) 600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + साइपरोकोनाज़ोल 7.3% (सिंजेंटा एम्पेक्ट एक्स्ट्रा) 120 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।

मृदुरोमिल आसिता रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को डाउनी मिल्ड्यू एवं आर्द्र गलन रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के कारण मिर्च की उपज में 30 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। यह एक कवक जनित रोग है। इस रोग की शुरुआत में पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। इन धब्बों के ठीक नीचे पत्तियों पर पानी से भरे दाग या धूल की रंग की तरह फफूंद के जाल देखे जा सकते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां सूखने लगती हैं। रोग बढ़ने पर पौधों के विकास में बाधा आती है।

मृदुरोमिल आसिता रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पत्तियों को तोड़ कर अलग कर दें।
  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिन्पैक्ट) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम मैंकोजेब 75% डब्ल्यू.पी. (DeHaat DeM-45, इंडोफिल एम 45) का प्रयोग करें।
  • 200 लीटर पानी में 800 ग्राम आईप्रोवालिकार्ब + प्रोपीनेब 6675 डब्ल्यूपी - 5.5% + 61.25% ww (बायर मेलोडी डुओ) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 600 ग्राम एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 8.3%+ मैनकोज़ेब 66.7% डब्ल्यूजी (यूपीएल अवेंसर ग्लो) का प्रयोग करें।

एन्थ्रेक्नोज रोग से होने वाले नुकसान: एन्थ्रेक्नोज शिमल मिर्च के पौधों में होने वाला एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग पर नियंत्रण नहीं किया गया तो उपज में करीब 80 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। इस रोग की शुरुआत में पत्तियों पर अनियमित आकार के पीले या भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे गहरे रंग के और आकार में बड़े होने लगते हैं। नई पत्तियों पर संक्रमण होने से पत्तियां मुड़ी हुई और विकृत नजर आने लगती हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियां  समय से पहले गिरने लगती हैं। रोग बढ़ने के साथ संक्रमण बढ़ने लगता है और ये धब्बे शाखाओं पर भी उभरने लगता है और पौधे सूख जाते हैं।

एन्थ्रेक्नोज रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • शिमला मिर्च की फसल को इस रोग से बचाने के लिए प्रतिरोधी किस्मों की खेती करें।
  • केवल स्वस्थ पौधों से प्राप्त बीजों का ही प्रयोग करें।
  • फसल चक्र अपनाएं।
  • इस रोग से प्रभावित पौधों एवं फलों को नष्ट कर दें।
  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिन्पैक्ट) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम कैप्टन 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% डब्ल्यूपी (टाटा रैलिस ताकत) का प्रयोग करें।

फल सड़न रोग से होने वाले नुकसान: फल सड़न रोग 'कोलेटोट्रिकम' नामक कवक की वजह से होता है। यह कवक कोमल टहनियों के सिरे से पौधों की तरफ बढ़ते हैं और पत्तियों को सूखाने का काम करते हैं। करीब 28 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान, वातावरण में 92 प्रतिशत तक उमस होने पर यह रोग तेजी से फैलता है। वर्षा के बाद लम्बे समय तक जल जमाव की स्थिति भी इस रोग के फैलने के लिए अनुकूल है। शिमला मिर्च के पौधे में फूल आने के समय इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग से प्रभावित हिस्सों के परगलित सतह पर काले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। पौधों में फल आने पर फलों में भी सड़न की समस्या शुरू हो जाती है। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधे मुरझाकर पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं।

फल सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • बुवाई के लिए रोगमुक्त, स्वस्थ बीज का उपयोग करें।
  • बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50% (डाउ बेंगार्ड) डब्लूपी से उपचारित करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी (देहात एजीटॉप, अदामा कस्टोडिया, धानुका स्पेक्ट्रम) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 500 मिलीलीटर टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% डब्लूजी (देहात डनफी) का प्रयोग करें।
  • प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 23% एससी (अदामा मिराडोर) मिला कर छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम क्लोरोथालोनिल 75% डब्लूपी (कोरोमंडल जटायु, टाटा रैलिस ईशान) मिला कर छिड़काव करें।

डाई-बैक रोग से होने वाले नुकसान: इस फफूंद जनित रोग के लक्षण सबसे पहले पौधों के ऊपरी भागों में नजर आता है। रोग के शुरुआत में पत्तियों पर छोटे अनियमित आकार के भूरे-काले धब्बे उभरने लगते हैं। धब्बे बीच से उठे हुए होते हैं। गंभीर रूप से संक्रमित पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और अंत में झड़ जाती हैं। रोग बढ़ने पर शाखाओं पर धब्बे उभरने लगते हैं और शाखाएं गलने लगती हैं। पौधों में फल आने पर फलों पर भी धंसे हुए धब्बे होने लगते हैं। फलों के बढ़ने के साथ धब्बे भी आकार में बढ़ने लगते हैं। इससे शिमला मिर्च के फल इस्तेमाल के लायक नहीं रहता है।

डाई-बैक रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपीनेब 70% डब्लूपी (देहात ज़िनैक्टो) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी (देहात एजीटॉप, अदामा कस्टोडिया) का प्रयोग करें।

उकठा रोग से होने वाले नुकसान: शिमला मिर्च के पौधे उकठा रोग के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। इस रोग के फफूंद मिट्टी में करीब 3 वर्षों तक जीवित रहते हैं। इस रोग की शुरूआती अवस्था में पौधे के निचले पत्ते सूख कर मुरझाने लगते हैं। संक्रमण बढ़ने पर पूरा पौधा पूर्ण रूप से सूख कर मुरझा जाता है। यह संक्रमण तेजी से एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलता है। प्रभावित पौधों में लगे फल पूरी तरह से पकने से पहले ही सूख कर गिरने लगते हैं।

उकठा रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • फसल को इस घातक रोग से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
  • रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
  • संक्रमित पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
  • पौधों की रोपाई से पहले 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50% (धानुका धानुस्टीन) को प्रति लीटर पानी में मिला कर पौधों की जड़ों को उसमें डुबाकर उपचारित करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 450 मिलीलीटर कासुगामाइसिन 3% एसएल (धानुका कासु-बी) का प्रयोग करें।

क्या शिमला मिर्च के पौधों को रोगों से बचाने के लिए आपने देहात उत्पादों का इस्तेमाल किया है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: शिमला मिर्च में कौन कौन से रोग लगते हैं?

A: शिमला मिर्च के पौधे विभिन्न रोगों जैसे बैक्टीरियल स्पॉट, एन्थ्रेक्नोज, चूर्णिल आसिता रोग और जड़ गलन रोग से प्रभावित हो सकते हैं। इसके अलावा शिमला मिर्च के पौधे उकठा रोग, डाई-बैक रोग, फल सड़न रोग, मृदुरोमिल आसिता रोग, आदि से भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं।

Q: शिमला मिर्च कितने दिन में फल देता है?

A: शिमला मिर्च के पौधों की रोपाई के बाद फल आने में करीब 60-90 दिनों का समय लगता है। हालांकि, फलने में लगने वाला समय शिमला मिर्च की विविधता, बढ़ती परिस्थितियों और तापमान और धूप जैसे अन्य कारकों के आधार पर भिन्न हो सकता है।

Q: शिमला मिर्च के फूल क्यों गिरते हैं?

A: शिमला मिर्च के फूल विभिन्न कारणों से गिर सकते हैं जैसे अपर्याप्त परागण, अत्यधिक तापमान, पानी का तनाव, पोषक तत्वों की कमी, कीट या रोग संक्रमण या अनुचित परिस्थितियां। फूलों को गिरने से बचाने के लिए पौधों की उचित देखभाल करें। सही समय पर सिंचाई, उचित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग एवं रोगों पर नियंत्रण करके हम आसानी से फूलों को गिरने से बचा सकते हैं।

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