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आंवला
कृषि ज्ञान
4 July
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आंवले की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Complete information on Amla cultivation)


आंवला एक कठोर और लाभकारी फलदार पौधा है, जो सूखे और असिंचित क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है। इसके फल, फूल, पत्ते, छाल और जड़ का औषधीय महत्व है, और इसे भारतीय गूजबेरी के नाम से भी जाना जाता है। आंवला से बनी दवाइयों का उपयोग एनीमिया, डायरिया, दांतों में दर्द, बुखार और जख्मों के इलाज में किया जाता है। आंवला से शैंपू, बालों का तेल, डाई, दांतों का पाउडर और क्रीम जैसी उत्पाद भी तैयार होते हैं। यह पौधा 8-18 मीटर ऊंचा होता है और इसके फूल हरे-पीले रंग के होते हैं। भारत में उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश आंवला के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

कैसे करें आंवले की खेती? (How to cultivate Amla?)

  • मिट्टी: आंवले के पौधे सबसे अच्छी रेतीली दोमट मिट्टी में उगाई जाती है, जिसका pH रेंज 6.0 से 7.5 होता है। इस मिट्टी में अच्छी जल धारण क्षमता होती है और यह कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होती है। मिट्टी को कीटों और बीमारियों से मुक्त रखने के लिए उचित तैयारी और नियमित मिट्टी परीक्षण जरूरी है।
  • जलवायु: आंवले की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मौसम का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। यह पौधा 46-48°C तक की गर्मी को सहन कर सकता है। खेती के लिए 630-800 मि.मी वार्षिक वर्षा उपयुक्त मानी जाती है। आंवले की बुवाई के लिए आदर्श तापमान 22-30°C के बीच होता है, जबकि फसल की कटाई के समय का तापमान 8-15°C के बीच होना चाहिए। सही जलवायु और मौसम की स्थितियों का पालन करने से आंवले की खेती में अधिक उत्पादन और गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकती है।
  • बुवाई का समय: आंवले की बुवाई जुलाई से सितंबर के बीच करनी चाहिए, क्योंकि इस समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है। कुछ क्षेत्रों में इसे जनवरी से फरवरी में भी बोया जा सकता है। सही समय पर बुवाई से पौधों की बेहतर वृद्धि और फलन सुनिश्चित होती है।
  • किस्में: आंवले आंवला की खेती में उन्नत किस्मों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है ताकि फलों का आकार बड़ा हो और उपज अधिक हो। कुछ प्रमुख उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं: बनारसी, चकईया, फ्रान्सिस, कृष्णा (एन ए- 5), नरेन्द्र- 9 (एन ए- 9), कंचन (एन ए- 4), नरेन्द्र- 7 (एन ए- 7), नरेन्द्र- 10 (एन ए- 10) क्षेत्र जलवायु के हिसाब से किस्म का चयन करें।
  • बीज की मात्रा: आंवले की खेती के लिए एक एकड़ में लगभग 2000-2500 बीजों की आवश्यकता होती है। एक पौधे के लिए 4 से 5 बीजों की जरूरत होती है, जिससे प्रति एकड़ लगभग 400-500 पौधे लगाए जा सकते हैं। आंवले की किस्मों और पौधों के बीच की दूरी के आधार पर बीज दर में अंतर हो सकता है।
  • खेत की तैयारी:
    • अच्छी तरह से जुताई करें, इसके बाद मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए बिजाई से पहले खेत में पाटा चलाए। और आखिर में जैविक खाद / गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाएं।
    • 15×15 से.मी. आकार के 2.5 से.मी. गहरे नर्सरी बेड तैयार करें।
    • कलियों वाले पौधों को 6 X 6 मीटर के फासले पर लगाएं।
    • 1 मीटर गहरे वर्गाकार गड्ढे खोदें।
    • गड्ढों को सूरज की रोशनी में 15-20 दिनों के लिए खुला छोड़ दें।
    • नए पौधों को मुख्य खेत में लगाने के लिए कलियों वाले पौधे अच्छे रहते हैं।
    • गड्ढों की खुदाई को 10 फीट x 10 फीट या 10 फीट x 15 फीट के विस्तार में करें।
    • 1 घन मीटर आकार के गड्ढे खोदने और 15 से 20 दिन खुला छोड़ दें ताकि धूप लग सके और हानिकारक जीवाणु नष्ट हो सके। प्रत्येक गड्ढे में नीम की खली और ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाएं और आखिर में मई में इन गड्ढों में पानी भर दें। 15 से 20 दिन बाद गड्ढों में पौधे का रोपण करें।
  • उर्वरक प्रबंधन: खेत की तैयारी के समय मिट्टी में रूड़ी की खाद 10 किलो और रोपण के पहले वर्ष में प्रति पौधा 20 किलोग्राम गोबर की खाद और प्रति पौधा 65 ग्राम यूरिया का प्रयोग करें। इस खाद को जनवरी-फरवरी में शुरुआती खुराक के रूप में डालें और अगस्त में शेष मात्रा को डालें। बोरॉन और जिंक सल्फेट को पौधे की आयु और स्वास्थ्य के अनुसार मिट्टी में मिलाएं।
  • सिंचाई: आंवले के पौधे को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। आंवले के पौधों को गर्मियों में सिंचाई 15 दिनों के अंतर पर करना चाहिए और सर्दियों में अक्टूबर-दिसंबर के महीने में मौसम के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। मानसून के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। ध्यान रखें: फूल निकलने के समय सिंचाई न करें। सिंचाई के लिए खारे पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • खरपतवार प्रबंधन:
    • नियमित निराई-गुड़ाई: खेत को नियमित रूप से निराई-गुड़ाई करें ताकि खरपतवारों से फ्री बने और पौधों को पर्याप्त स्थान और पोषक तत्व प्राप्त हो सके।
    • कटाई और छंटाई: समय-समय पर खेत में कटाई और छंटाई करें। अनावश्यक टेढ़ी-मेढ़ी शाखाएँ काटें और सिर्फ 4-5 सीधी टहनियाँ ही ज्यादा विकास के लिए बचाएं।
    • मल्चिंग: खरपतवारों की रोकथाम के लिए मल्चिंग बहुत प्रभावशाली होती है। गर्मियों में, पौधे के शिखर से 10-15 सेमी तक मल्चिंग करें ताकि मृदा की नमी बनी रहे और खरपतवारों की रोकथाम हो सके।
  • रोग एवं कीट: आंवले की खेती में कई प्रकार के रोग और कीट पाए जाते हैं, जो फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। सुंडी तने और छाल खाने वाली सुंडी तने फसल को नुकसान पहुंचाती हैं, जबकि पित्त वाली सुंडी तने में सुरंग बना देती है। कुंगी से पत्तों और फलों पर गोल लाल रंग के धब्बे पड़ सकते हैं। फल का गलना और बीमारी फलों पर सूजन और रंग का परिवर्तन का कारण बन सकता है। इन बीमारियों और कीटों से बचाव के लिए उचित प्रबंधन और उपचार अत्यंत आवश्यक हैं।
  • कटाई एवं भण्डारण: फलों की तुड़ाई के बाद, उन्हें छंटाई करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके बाद, फलों को बांस की टोकरी या लकड़ी के बक्सों में पैक करें। इस पैकिंग को अच्छी तरह से करें ताकि फलों को खराब होने से बचाया जा सके, और इन्हें जल्दी से जल्दी बिक्री के स्थानों पर पहुँचाएं। आंवले के फल से अनेक उत्पाद बनाए जाते हैं, जैसे कि आंवला पाउडर, चूर्ण, च्यवनप्राश, अरिष्ट, और मीठे उत्पाद।

आप आंवला की खेती कैसे करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इस लेख में आपको खाद एवं उर्वरक की सम्पूर्ण जानकारी दी गयी है और ऐसी ही अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर आपको ये पोस्ट पसंद आयी तो इसे अभी लाइक करें और अपने सभी किसान मित्रों के साथ साझा जरूर करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: आंवला का पौधा कितने साल में फल देता है?

A: आंवले की रोपाई के बाद उसका पौधा 4-5 साल में फल देने लगता है।

Q: आंवले का पौधा कब लगाना चाहिए?

A: आंवला की खेती जुलाई से सितंबर के महीने में की जाती है। उदयपुर में इसकी खेती जनवरी से फरवरी महीने में की जाती है।

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