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कपास के प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन | Major Diseases of Cotton and their Management
कपास भारत में सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है, और यह देश के विभिन्न हिस्सों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। कपास की फसलें विभिन्न बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील होती हैं जो महत्वपूर्ण उपज हानि का कारण बन सकती हैं। विभिन्न रोगों के कारण कपास की उपज में भारी कमी आ सकती है। उपज के साथ इसकी गुणवत्ता भी प्रभावित होती है, जो किसानों के लिए आर्थिक नुकसान का कारण बनती है। कपास की फसलों में बीमारियों के प्रकोप को रोकने के लिए, किसान विभिन्न उपायों को अपना सकते हैं। जिसमें फसल चक्र अपनाना, रोग प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करना, रासायनिक दवाओं का समय पर उपयोग आदि शामिल है। कपास की फसल में विभिन्न रोगों पर नियंत्रण की विस्तृत जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
कपास की फसल को क्षति पहुंचाने वाले कुछ प्रमुख रोग | Major Diseases affecting the Cotton Crop
जड़ गलन रोग से होने वाले नुकसान: यह एक फफूंद जनित रोग है। इसके अलावा खेतब में जल जमाव होने के कारण भी इस रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है। इस रोग के कवक मिट्टी में कई वर्षों तक जीवित रह सकते हैं और मिट्टी को लगभग 7 फीट की गहराई तक संक्रमित कर सकते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों के निचले तनों पर सफेद रंग के फफूंद नजर आने लगते हैं। पौधों की पत्तियां पीली से भूरी होने लगती हैं। कुछ समय बाद पत्तियां झड़ने लगती हैं। रोग बढ़ने पर पौधे पर अनियमित आकार में धब्बे उभरने लगते हैं। पौधे आसानी से उंखड़ जाते हैं और उसकी जड़ें गली हुई सी नजर आती हैं। इस रोग के कारण कपास की उपज में 20 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।
जड़ गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- बुवाई के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
- खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
- इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट करें।
- फसल को इस रोग से बचाने के लिए बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5% + थीरम 37.5% डब्लूएस (धानुका विटावॅक्स पॉवर, स्वाल इमिवैक्स) से उपचारित करें।
- प्रति किलोग्राम बीज को 6-10 मिलीलीटर ट्राइकोडर्मा विरडी (डॉ. बैक्टो डर्मस) से उपचारित करें।
लीफ स्पॉट रोग से होने वाले नुकसान: लीफ स्पॉट एक कवक रोग है जो कपास के पौधों की पत्तियों को प्रभावित करता है और पत्तियों के पीलेपन और परिगलन का कारण बनता है। यह पौधे की प्रकाश संश्लेषक क्षमता को कम कर सकता है और उपज के नुकसान का कारण बन सकता है।
लीफ स्पॉट रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट, गोदरेज बिलियर्ड्स, बीएसीएफ एड्रोन) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू.पी. (देहात जिनेक्टो, बायर एंट्राकोल) का प्रयोग करें।
उखेड़ा रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को पैरा विल्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह बहुत तेजी से फैलने वाला रोग है, जिससे देखते ही देखते पूरी फसल प्रभावित हो सकती है। इस रोग की शुरूआती अवस्था में पत्तियां पीली होने लगती हैं। कुछ समय बाद पूरी पत्तियों पर पीलापन फैल जाता है और पत्तियां मुरझा कर गिरने लगती हैं। प्रभावित पौधों की निचली पत्तियों पर यह लक्षण पहले नजर आते हैं। इसके बाद पीलापन पौधों की ऊपरी पत्तियों की तरफ बढ़ने लगता है।
उखेड़ा रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग से बचने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
- 200 लीटर पानी 6 से 8 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लीन हाइड्रोक्लोराइड 10% (हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड स्ट्रेप्टोसाइक्लीन) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने से भी उखेड़ा रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
- प्रति एकड़ खेत में लगी फसल के लिए 200 लीटर पानी में 2 ग्राम कोबाल्ट क्लोराइड नामक दवा मिला कर छिड़काव करें। विशेष ध्यान रखें कि दवाओं के छिड़काव में जितनी देर होगी, पौधों को बचाना उतना ही कठिन होगा। इसलिए पत्तियों के मुरझाने के लक्षण नजर आने के 48 घंटे के अंदर इस दवा का छिड़काव करें। इससे 75 से 80 प्रतिशत तक परिणाम मिलता है।
फ्यूजेरियम विल्ट से होने वाले नुकसान: यह रोग मिट्टी और बीज में पाए जाने वाला फफूंद मैक्रोफोमिना फैजियोलिना के कारण होता है। इस रोग से प्रभावित पौधे मुरझाने लगते हैं। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है एवं पौधा सूखने लगता है। जड़ों की छाल पीली पड़ने लगती है और फटने लगती है। कुछ समय बाद पौधे गिर जाते हैं।
फ्यूजेरियम विल्ट पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग से बचाव के लिए एक ही खेत में लगातार कपास की फसल की खेती करने से बचें और फसल चक्र अपनाएं।
- इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
- प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लूपी (क्रिस्टल ब्लू कॉपर, बीएसीएफ बीकॉपर) का प्रयोग करें।
कपास की फसल में रोगों पर नियंत्रण के लिए क्या आप लगातार खेत की निगरानी करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इस जानकारी को अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: कपास में कौन कौन से रोग होते हैं?
A: बीटी कपास बैक्टीरियल ब्लाइट, विल्ट, लीफ कर्ल और बॉलरॉट जैसे विभिन्न रोगों के लिए अतिसंवेदनशील है। ये रोग कपास की फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे उपज और गुणवत्ता कम हो सकती है। उचित प्रबंधन प्रथाएं जैसे फसल चक्रण, रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग और कवकनाशी का समय पर उपयोग इन रोगों को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
Q: कपास की अच्छी पैदावार के लिए क्या करें?
A: कपास की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए, किसानों को उचित मिट्टी की तैयारी, समय पर बुवाई और पर्याप्त सिंचाई सुनिश्चित करनी चाहिए। उन्हें उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का भी उपयोग करना चाहिए, संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए और कीटों और रोगों को नियंत्रित करने के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन प्रथाओं को अपनाना चाहिए। फसल की नियमित निगरानी और समय पर दवाओं के प्रयोग से स्वस्थ और उत्पादक कपास की फसल सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
Q: कपास में रोगों को कैसे नियंत्रित करें?
A: कपास में रोगों को नियंत्रित करने के लिए, किसानों को समेकित कीट प्रबंधन प्रथाओं को अपनाना चाहिए, जिसमें फसल चक्र अपनाना, प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग और कवकनाशी का समय पर उपयोग शामिल है। उन्हें खेत में उचित स्वच्छता और स्वच्छता सुनिश्चित करनी चाहिए, संक्रमित पौधों एवं उसके अवशेष को हटाना और नष्ट करना चाहिए और नाइट्रोजन उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से बचना चाहिए। फसल की नियमित निगरानी और बीमारियों का जल्दी पता लगाने से उनके प्रसार को रोकने और फसल के नुकसान को कम करने में मदद मिल सकती है।
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