बेमौसम वर्षा में फसलों को कीट एवं रोगों से बचाने के तरीके | Ways to protect crops from pests and diseases during unseasonal rains
बेमौसम बारिश से फसलों में कीटों और बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।बेमौसम बारिश होने पर कीटों को पनपने एवं वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण मिलता है। ऐसे में कीट बहुत कम समय में अधिक फसलों को क्षति पहुंचा सकते हैं। फसलों को बेमौसम वर्षा के कारण होने वाले कीटों और रोगों के प्रकोप से बचाने के लिए फसल की नियनित निगरानी करें, कीट एवं रोगों के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें, फसल चक्र अपनाएं, आवश्यकता होने पर जैविक रासायनिक विधि का प्रयोग करें। इस विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
बेमौसम वर्षा में फसलों में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट | Major pests affecting crops during unseasonal rains
सफेद लट कीट से होने वाले नुकसान: इस कीट को गिडार कीट के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट मटमैले सफेद रंग के होते हैं। इनका शरीर मोटा और मुंह गहरे भूरे रंग का होता है। इस कीट की लंबाई करीब 18 मिलीमीटर एवं चौड़ाई 7 मिलीमीटर तक होती है। मिट्टी में रहने वाले यह कीट सबसे पहले पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। कई बार ये कीट पौधों के तने के साथ कंदों को भी खाकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट से प्रभावित पौधे सूखने लगते हैं। कंद वाली फसलों में इस कीट का प्रकोप होने पर कंदों में सुराख देखे जा सकते हैं।
सफेद लट कीट पर नियंत्रण के तरीके:
- बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करें। इससे मिट्टी में पहले से मौजूद कीट ऊपर आ कर तेज धूप से नष्ट हो जाएंगे।
- खेत में कच्ची गोबर का प्रयोग करने से बचें। कच्चे गोबर में कीटों में पनपने की संभावना अधिक होती है। जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 6.67-13 किलोग्राम फिप्रोनिल 0.3 प्रतिशत जीआर (देहात सलेमाइट) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 175-200 ग्राम फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्लूजी (देहात डेमफिप) का प्रयोग करें।
दीमक से होने वाले नुकसान: समूह में रहने वाले यह कीट ज्यादातर समय मिट्टी के अंदर रहते हैं। दीमक आकार में छोटे और चमकीले होते हैं। हल्के पीले से भूरे रंग के ये कीट मिट्टी की सतह के पास से तने को काट कर फसल को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। यह कीट अंकुरित बीज के साथ पौधों की जड़ों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। यह जड़ों का रस चूस का फसल को कमजोर बना देते हैं। जिससे कुछ ही दिनों में पौधा सूखने लगता है।
दीमक पर नियंत्रण के तरीके:
- कच्ची गोबर में दीमक जल्दी पनपते हैं। इसलिए खेत में कच्ची गोबर का प्रयोग न करें।
- फसलों को दीमक के प्रकोप से बचाने के लिए खेत तैयार करते समय प्रति एकड़ भूमि में 200 किलोग्राम नीम की खली डाल कर खेत की अच्छी तरह जुताई करें।
- दीमक पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 6.67-13 किलोग्राम फिप्रोनिल 0.3 प्रतिशत जीआर (देहात सलेमाइट) का प्रयोग करें।
- प्रति किलोग्राम बीज को 1.32-4 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 30% एफ.एस. (देहात एसीयर एफएस, अदामा तलैया, यूपीएल रेनो) से उपचारित करें।
- प्रति किलोग्राम बीज को 1-3 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 48% एफएस (कात्यायनी आक्रोश, बायर गौचो) से उपचारित कर के भी दीमक के प्रकोप से बचा जा सकता है।
- खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप दिखने पर प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर क्लोरपायरीफॉस 20% ईसी (श्रीराम क्लोरो, सिल्वर क्रॉप क्लोरोसिल 20, हाईफील्ड दरबान) का प्रयोग करें।
बेमौसम वर्षा में फसलों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Major Disease affecting crops during unseasonal rains
जड़ गलन रोग से होने वाले नुकसान: यह एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग से प्रभावित पौधों की जड़ें गलने लगती हैं। जमीन की सतह के पास से तने भी सड़ने लगते हैं। तने का रंग भूरा होने लगता है। पौधों की पत्तियां पीले रंग की नजर आने लगती है। कुछ समय बाद पौधा सूखने लगता है।
जड़ गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- फसल को इस रोग से बचाने के लिए बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम कारबॉक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% डीएस (धानुका विटावाक्स पॉवर ) से उपचारित करें।
- खड़ी फसल में रोग का प्रकोप नजर आने के बाद प्रति एकड़ खेत में 300-600 ग्राम कार्बेंडाजिम 12% + मैंकोजेब 63% (देहात साबू) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम कॉपर ऑक्सिक्लोराईड 50% WP (यूपीएल ब्लाइटोक्स) की ड्रेंचिंग करें या सिंचाई के समय प्रयोग करें।
- इस रोग पर नियंत्रण के लिए 15 लीटर पानी में 30 ग्राम रिडोमिल गोल्ड मिला कर छिड़काव करें।
उकठा रोग से होने वाले नुकसान: उकठा रोग के होने का मुख्य कारण फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक कवक है। इस रोग के कारण फसल की उपज में10-12 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। रोग का प्रकोप बढ़ने पर उपज में 50-78 प्रतिशत तक कमी हो सकती है। उकठा रोग से अरहर, चना, मटर, गन्ना, धान, मसूर, टमाटर, बैंगन, लौकी, आम, अमरूद, आदि कई फसलें प्रभावित होती हैं। इस रोग के फफूंद बिना किसी पोषण या नियंत्रण के करीब 6 वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। इस रोग की शुरुआती अवस्था में पौधे के निचले पत्ते मुरझा कर सूखने लगते हैं। संक्रमण बढ़ने पर पूरा पौधा मुरझा कर सूख जाता है। पौधों में यदि फल आ गए हैं तो फलों पर भी इस रोग के लक्षण नजर आ सकते हैं। प्रभावित फलों पर भूरे-काले धब्बे उभरने लगते हैं।
उकठा रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- फसलों को इस रोग से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं। संक्रमित पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम ब्यूवेरिया बेसियाना से उपचारित करें।
- पौधों की रोपाई से पहले कार्बेन्डाजिम 50% (धानुका- धानुस्टीन) प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम मिला कर पौधों की जड़ों को उसमेन डुबाकर उपचारित करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्लू.पी. को 200 लीटर पानी में मिला कर ड्रेंचिंग करें। यह दवा बाजार में रोको के नाम से उपलब्ध है।
बेमौसम बारिश होने पर आपकी फसल में किस तरह की समस्याएं आती हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)
Q: फसलों में कौन कौन से रोग होते हैं?
ऐसी कई बीमारियां हैं जो फसलों को प्रभावित कर सकती हैं, इनमें मोजैक वायरस रोग, जड़ गलन रोग, झुलसा रोग, चूर्णिल आसिता, मृदुरोमिल आसिता, तना गलन रोग, आदि शामिल है। इन रोगों पर नियंत्रण के लिए उचित दवाओं का प्रयोग करें।
Q: पौधों में वायरल रोग कौन से हैं?
मोजैक वायरस रोग, कर्ल वायरस रोग, रिंगस्पॉट रोग, आदि कुछ प्रमुख वायरस जनित रोगों में शामिल हैं। इन रोगों के कारण फसल की उपज में भारी कमी देखी जा सकती है। फसलों को नुकसान से बचाने के लिए इन रोगों के लक्षण नजर आते ही तुरंत उचित दवाओं का प्रयोग करें।
Q: कृषि में कीट प्रबंधन क्या है?
कृषि में कीट प्रबंधन कीटों को नियंत्रित करने के लिए उपयोग की जाने वाली प्रथाओं और तकनीकों को संदर्भित करता है। ऐसे कीट फसलों, मिट्टी एवं पशुओं को नुकसान पंहुंचा सकते हैं। कीट प्रबंधन में विभिन्न कीटों को नष्ट करने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं। इनमें सांस्कृतिक, जैविक और रासायनिक तरीके शामिल हैं।
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