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30 Aug
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आड़ू की खेती (Cultivation of Peach)


आड़ू (Peach) एक फल देने वाला पेड़ है, जिसकी खेती भारत के पहाड़ी और आसपास के इलाकों में की जाती है। इसके ताजे फल खाए जाते हैं और इनसे जैम, जेली, और चटनी भी बनाई जाती है। आड़ू के फलों में अच्छी मात्रा में मिठास होती है, और इसके बीज से निकाले गए तेल का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों और दवाइयों में किया जाता है। यह फल पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जैसे लोहे, फ्लोराइड, और पोटेशियम। भारत में आड़ू की खेती मुख्य रूप से पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के ऊंचे क्षेत्रों और उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में की जाती है।

कैसे करें आड़ू की खेती? (How to cultivate peach?)

  • मिट्टी : हल्की दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है, 2.5-3 मीटर गहरी और जीवांश युक्त होनी चाहिए। पीएच मान: 5.5 से 6.8 के बीच। भूमि में उचित जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए।
  • जलवायु : आड़ू की खेती के लिए जलवायु ज्यादा ठंडी और ज्यादा गर्म नहीं होना चाहिए। और  इस फसल को कुछ कुछ निश्चित समय के लिए 7 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान की आवश्यकता होती है।
  • बुवाई का समय : आड़ू की बुवाई के लिए मूल वृन्त पर रिंग बडिंग अप्रैल या मई माह में किया जाता है। इस विधि से तैयार किया हुआ पौधा दिसंबर-जनवरी महीने तक मुख्य खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाता है।
  • किस्में: भारत में आड़ू की कई प्रमुख किस्मों की खेती की जाती है, जिनमें से कुछ हैं: शान-ए-पंजाब, प्रताप, खुर्मानी, फ्लोरिडा रेड, शर्बती, शान-ए-प्रिंस, फ्लोरिडा प्रिंस, प्रभात, और पंजाब नेक्टरिन। इसके अलावा, भारत में और भी कई उन्नत किस्में पाई जाती हैं जो किसानों के बीच लोकप्रिय हैं।
  • उचित दूरी: आड़ू के मूल वृक्ष पर तैयार किए गए पौधों के बीच 6 x 6 मीटर की दूरी रखी जाती है। वृक्ष लगाने के लिए आड़ू के बीज की गहराई 5 सेंटीमीटर होती है और पौधों के बीच 12-16 सेंटीमीटर का फासला रखा जाता है। बुवाई के लिए शुरुआत में कलम लगाने का प्रयोग किया जाता है और फिर मुख्य खेत में रोपाई की जाती है।
  • खेत की तैयारी : आड़ू की खेती या बागवानी के लिए खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2 से 3 जुताई आड़ी तिरछी देशी हल या अन्य यंत्र से करनी चाहिए, इसके बाद खेती को समतल बना लेना चाहिए। तथा रोपाई या बुआई से 15 से 20 दिन पहले 1 x 1 x 1 मीटर के गड्ढे खोद कर धूप में छोड़ दें। उसके बाद 4.5 x 4.5 दूरी पर पौधे लगाएं।
  • उर्वरक प्रबंधन : आड़ू के पौधे की अच्छी बढ़वार और विकास के लिए कार्बनिक खाद और गोबर की खाद की आवश्यकता होती है। आड़ू की खेती के लिए तैयार गड्ढों को 15 से 10 किलोग्राम गली सड़ी गोबर की खाद 120 ग्राम यूरिया, डी.ए.पी 75 ग्राम और एम.ओ.पी 165 ग्राम खाद दें। दो साल बाद FYM 20 किलोग्राम, यूरिया 360 ग्राम, डी.ए.पी 225 ग्राम और एम.ओ.पी 500 ग्राम प्रति पौधे को देना है। दिसंबर-जनवरी के दौरान एफवाईएम के साथ-साथ डी.ए.पी और एम.ओ.पी की पूरी खुराक डालें। यूरिया की आधी खुराक फूल आने से 20 दिन पहले और यूरिया की बची हुई आधी खुराक एक महीने बाद डालें।
  • खरपतवार प्रबंधन : खरपतवार की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
  • सिंचाई : सिंचाई प्रबंधन भारत में आड़ू की खेती के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आड़ू के पेड़ों की जड़ों तक सीधे पानी पहुंचाने वाली एक कुशल विधि। इससे पानी का नुकसान कम होता है और पेड़ों को आवश्यक मात्रा में पानी मिलता है। पेड़ों की मिट्टी को कार्बनिक पदार्थों से ढंकने से वाष्पीकरण की समस्याएं कम होती हैं और मिट्टी की नमी बनी रहती है। पेड़ों की पानी की आवश्यकता को विकास के चरण, मौसम और मिट्टी के प्रकार के आधार पर निर्धारित करना। उचित जल निकासी के लिए बाग में जल निकासी की व्यवस्था करना।
  • रोग एवं कीट : आड़ू की फसल में लगने वाले कई रोग और कीट हैं जो भारत में आड़ू की फसलों को प्रभावित करने वाले रोग: भूरा सड़न, बैक्टीरियल स्पॉट, ख़स्ता फफूंदी, लीफ कर्ल और शॉट होल रोग और कीटों में फल मक्खी, फल छेदक कीट, तना बोरर, एफिड्स और मकड़ी मुख्य हैं। इन रोगों और कीटों को नियंत्रित करने के लिए नियमित रूप से आड़ू फसलों की निगरानी करना और फसल को महत्वपूर्ण नुकसान को रोकने के लिए उन्हें प्रबंधित करने के लिए उचित उपाय करें।
  • फसल की तुड़ाई : आड़ू की फसल में तुड़ाई का मुख्य समय अप्रैल से मई महीनें का होता है। जब इसका रंग बढ़िया और नरम गुद्दा दिखाई देने लगता हैं। आड़ू की तुड़ाई वृक्ष को हिला कर की जाती है।
  • भंडारण : तुड़ाई के बाद इन्हें सामान्य तामपान पर स्टोर किया जाता है। इन्हें स्क्वैश, जैम आदि बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
  • उत्पादन : आड़ू की खेती के अनुसार सामान्य परिस्थितियों में 3 साल पुराने पेड़ों से 20 से 30 किलोग्राम फल प्रति पेड़ प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ ही आड़ू की फसल से जैम, जेली, चटनी आदि बनाई जाती है और उनका व्यापार भी होता है।

क्या आप आड़ू की खेती करना चाहते हैं? अपना जवाब और अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। ऐसी ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो, तो इसे लाइक करें और अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions)

Q: आड़ू का पेड़ कौन से महीने में लगाना चाहिए?
A: भारत में आड़ू का पेड़ लगाने का सबसे अच्छा समय सर्दियों के दौरान, नवंबर से फरवरी के बीच होता है। इस समय के दौरान रोपण से पेड़ को अपनी जड़ें स्थापित करने और अगले बढ़ते मौसम के लिए तैयार होने का समय मिलता है।

Q: आड़ू के फलों को पकने में कितना समय लगता है?
A: आड़ू के फलों को पकने में लगभग 3 से 4 महीने का समय लगता है। यह समय आड़ू की विविधता, मौसम की स्थिति और अन्य कारकों पर निर्भर करता है।

Q: भारत में आड़ू का पेड़ कहां उगाया जाता है?
A: भारत में आड़ू की खेती मुख्य रूप से पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर की ऊँची घाटियों और उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है।

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