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21 Nov
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आलू में कटुआ कीट के लक्षण और बचाव (Symptoms and prevention of cutworm in potato)


आलू की खेती में कटुआ कीट (Cutworm) का प्रकोप एक गंभीर समस्या है, जो पौधों को बड़ी हानि पहुंचाता है। यह कीट फसल को शुरुआत से लेकर भंडारण को प्रभावित करता है। इस लेख में आपको आलू में कटुआ कीट के लक्षण, इस कीट से होने वाले नुकसान और प्रभावी नियंत्रण के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

कटुआ कीट के लक्षण (Symptoms of Cutworm)

कटुआ कीट (Cutworm): कटुआ कीट फसलों के लिए बेहद हानिकारक होता है। यह पौधों को जड़ से काटकर मुरझा देता है, जिससे उनकी बढ़त रुक जाती है। यह कीट पत्तियों को खाकर छलनी कर देता है और फूलों व पत्तियों का रस चूसकर पौधों को कमजोर बनाता है। विषाणु रोग फैलाने में भी इसकी बड़ी भूमिका होती है। आलू की फसल में यह भंडारण के दौरान आलू की आंखों के रास्ते अंदर घुसकर सुरंगें बनाता है, जिससे फसल खराब हो जाती है। यह कीट पौधों को कमजोर कर देता है, जिससे वे अन्य बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। फसल की पैदावार में भारी कमी लाने वाला यह कीट दिन में मिट्टी में छिपा रहता है और रात में फसलों को नुकसान पहुंचाता है।

कटुआ कीट का प्रबंधन (Management of Cutworm)

  • खेत की तैयारी (Field Preparation): बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी में छुपे कीट बाहर आ जाएं और तेज धूप से नष्ट हो जाएं। खेत को खरपतवार मुक्त रखें, क्योंकि कीट अक्सर खरपतवार में छुपे रहते हैं। फसल अवशेष और सूखी घास को खेत से हटा दें।
  • बीज उपचार (Seed Treatment): बीज को बुवाई से पहले ट्राइकोडर्मा या बीजामृत से उपचारित करें। केवल स्वस्थ और प्रमाणित आलू के बीज का उपयोग करें।
  • जैविक नियंत्रण (Organic Control): बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई करें। खेत में कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे पक्षियों और परजीवी ततैया का संरक्षण करें, जो गिडारों को खा जाते हैं। रात के समय खेत में प्रकाश प्रपंच (लाइट ट्रैप) लगाएं ताकि कीट प्रकाश की ओर आकर्षित हों और नष्ट किए जा सकें।

रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control)

  • क्लोरपायरीफॉस 20% ई.सी. ( धानुका धन्वन-20, टाटा रैलिस तफाबान) दवा को जब आलू की फसल में तना छेदक या मिट्टी के अंदर कीटों की समस्या दिखाई दे तब 1 लीटर दवा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। ध्यान रखें: पौधों की ऊंचाई 15-20 सेमी होने पर इसका पहली बार ड्रेंचिंग करें। यदि संक्रमण अधिक हो, तो 10-15 दिनों के अंतराल पर फिर (दोबारा) ड्रेंचिंग करें।
  • क्लोरपायरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% (देहात सी स्क्वायर, हाईफील्ड मेजर 555) दवा को जैसे ही कटवर्म (कटुआ कीट) की समस्या दिखाई देती है तभी 250-300 मिली दवा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ ड्रेंचिंग करें। इसका उपयोग फसल के 25-30 दिनों के अंदर करें और यदि जरूरत हो तो 15 दिनों के अंतराल पर ड्रेंचिंग दोहराएं।
  • क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.50% एससी (अटैक, कवर, कोराजिन) इस दवा को कंदों को ग्रब (मिट्टी में रहने वाले कीट) से बचाने के लिए 120 मिली दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। इसका पहला छिड़काव 30-35 दिनों पर करें और दूसरा 45-50 दिनों पर करें।
  • फिप्रोनिल 0.6% जी.आर. (स्लाइमाइट अल्ट्रा, बायर रीजेंट अल्ट्रा) दवा 4 किलो प्रति एकड़ खेत में बेसल डोज में देना चाहिए, ताकि फसल को शुरुआत से ही कीटों का नियंत्रण किया जा सकता है।
  • डेल्टामेथ्रिन 100 ई.सी. (बायर डेसिस) दवा को 100 मिली दवा को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसका पहला छिड़काव फसल के 20-25 दिन पर करें और दूसरा 10-12 दिनों के अंतराल पर दोहराएं।

पौधों की सुरक्षा के लिए अन्य सुझाव (Additional Tips for Plant Protection)

  • छिड़काव सुबह या शाम के समय करें, जब हवा शांत हो।
  • बारिश से पहले या उसके दौरान छिड़काव न करें।
  • पत्तों के ऊपर और नीचे दोनों तरफ दवा का छिड़काव करें।
  • रासायनिक दवाओं के बाद सुरक्षा अवधि का पालन करें।
  • प्रभावित पौधों की मिट्टी खोदकर कीटों को नष्ट करें।
  • खेत की नियमित निगरानी कर समय पर नियंत्रण करें।
  • आलुओं को मिट्टी चढ़ाकर जमीन के अंदर सुरक्षित रखें।
  • जैविक उपायों का उपयोग कर फसल की गुणवत्ता बढ़ाएं।
  • सही मात्रा और समय पर दवाओं का उपयोग करें।
  • फसल के विकास चरणों के अनुसार देखभाल करें।

क्या आप भी आलू में कटुआ कीट से परेशान हैं? इसके नियंत्रण के आप कौन सी दवाओं का इस्तेमाल करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: आलू का मुख्य रोग कौन सा है?

A: आलू का मुख्य रोग "आलू का झुलसा रोग" (Late blight) है, जो Phytophthora infestans नामक कवक के कारण होता है। यह रोग आलू की पत्तियों, तनों और कंदों को प्रभावित करता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता में कमी आती है।

Q: आलू में ऑक्सीजन की कमी से कौन सा रोग होता है?

A: आलू में ऑक्सीजन की कमी से "जड़ सड़न रोग" (Root rot) होता है। यह रोग मुख्य रूप से जलभराव वाले क्षेत्रों में देखा जाता है, जहाँ मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी के कारण आलू की जड़ें सड़ने लगती हैं और आलू की फसल प्रभावित होती है।

Q: आलू में कौन-कौन से कीट लगते हैं?

A: आलू में कई प्रकार के कीट लग सकते हैं, जैसे: आलू का टमाटर का कीट (Potato tuber moth), आलू की मक्खी (Potato aphid) कटुआ कीट (Cutworm) और सफेद सुंडी (White grub) कीट आलू की फसल को प्रभावित करता है।

Q: आलू की फसल में उर्वरकों का प्रयोग क्यों जरूरी है?

A: आलू की फसल के लिए उर्वरक अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि ये मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करते हैं और कंदों के विकास, वृद्धि और उत्पादन में मदद करते हैं। उचित उर्वरक प्रबंधन से आलू की फसल में बेहतर गुणवत्ता और उच्च पैदावार प्राप्त होती है। यह पौधों को आवश्यक नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे प्रमुख पोषक तत्व प्रदान करता है।

Q: आलू कब बोना चाहिए?

A: आलू में कंद विकास के लिए ठंडे तापमान की जरुरत होती है। भारत में आलू को सर्दियों के मौसम में अक्टूबर से दिसंबर के बीच लगाया जाता है। अगर बहुत जल्दी बुवाई की जाती है तो गर्मी के कारण पैदावार खराब हो सकती है, वहीं बहुत देर से बुवाई करने से कंद का आकार और गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। मैदानी क्षेत्रों में आलू की बुवाई ठंड के मौसम में की जाती है। आमतौर पर, सितंबर-अक्टूबर का महीना सबसे अच्छा समय माना जाता है, जबकि कुछ क्षेत्रों में पछेती फसल के लिए इसे दिसंबर तक बोया जा सकता है।

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