खजूर: प्रमुख कीट और रोग, कारण, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Date Palm: Major Pests and Disease, Symptoms Prevention and Treatment
कई पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण सदियों से खजूर के फलों का सेवन किया जाता रहा है। खजूर की खेती मुख्यतः शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में होती है। इसकी खेती में कुछ प्रमुख कीट और रोग होते हैं जो उपज और गुणवत्ता पर बुरा असर डाल सकते हैं। इस पोस्ट में हम खजूर की खेती में प्रमुख कीट और रोग, उनके कारण, लक्षण, बचाव और नियंत्रण के उपायों की जानकारी प्राप्त करेंगे।
खजूर में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases of date palm plant
फ्यूजेरियम विल्ट से होने वाले नुकसान: इस रोग के होने का मुख्य कारण कवक है, जो लम्बे समय तक मिट्टी में जीवित रह सकते हैं। इसके अलावा बुवाई के लिए संक्रमित बीज का इस्तेमाल करने पर यह रोग हो सकता है। इस रोग से प्रभावित पौधे मुरझाने लगते हैं। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है एवं पौधा सूखने लगता है। पौधों के तने पीले पड़ने लगते हैं और फटने लगते हैं। कुछ समय बाद पौधे गिर जाते हैं।
फ्यूजेरियम विल्ट पर नियंत्रण के तरीके:
- पौधों को इस रोग से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
- इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
- 10 किलोग्राम बीज को 250 ग्राम टेबुकोनाज़ोल 5.4% एफएस (अदामा ओरियस एफएस) से उपचारित करें।
- प्रति किलोग्राम बीज को 4 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% डब्ल्यूएस (धानुका विटावॅक्स पावर, स्वाल इमिवैक्स) से उपचारित करें।
ब्लैक स्कॉर्च रोग से होने वाले नुकसान: खजूर के पौधों में लगने वाला यह एक प्रमुख रोग है। विश्व में खजूर की खेती किए जाने वाले लगभग सभी क्षेत्रों में इस रोग का प्रकोप होता है। इस रोग के लक्षणों में पत्ती के सिरों और किनारों का काला पड़ना शामिल है, जो बाद में पूरी पत्ती में फैल जाता है। प्रभावित पत्तियां सूख क भंगुर हो जाती हैं। कुछ समय बाद पत्तियां नष्ट हो जाती हैं। रोग बढ़ने के साथ फलों के डंठल और तने पर काले धब्बे उभरने लगते हैं। गंभीर मामलों में, पूरा पौधा मर सकता है। यह रोग आमतौर पर संक्रमित पौधों की छंटाई किए जाने वाले उपकरण से या दूषित मिट्टी के माध्यम से फैलता है।
ब्लैक स्कॉर्च रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग को फैलने से रोकने के लिए बुरी तरह प्रभावित पौधों को खेत से बाहर निकालें और जला कर नष्ट कर दें।
- इस रोग को नियंत्रित करने के लिए कोई रासायनिक दवा उपलब्ध नहीं है। ऐसे में बोर्डो मिश्रण, चूना-सल्फर घोल, कॉपर सल्फेट चूना मिश्रण का उपयोग किया जा सकता है।
अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को लीफ स्पॉट रोग के नाम से भी जाना जाता है। कवक जनित रोग है। इस रोग के होने पर पौधों के पत्तों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। ये धब्बे आकार में गोल होते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों का आकार भी बढ़ने लगता है। ये धब्बे आपस में मिल जाते हैं, जिससे पत्ते सूखे हुए से नजर आते हैं। प्रभावित पत्ते झड़ने लगते हैं। जिससे पौधे भी धीरे-धीरे नष्ट होने होने लगते हैं।
अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट, गोदरेज बिलियर्ड्स, बीएसीएफ एड्रोन) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू.पी. (देहात जिनेक्टो, बायर एंट्राकोल) का प्रयोग करें।
ग्राफियोला लीफ स्पॉट रोग से होने वाले नुकसान: ग्राफियोला लीफ स्पॉट रोग एक कवक रोग है जो खजूर के पौधों को प्रभावित करता है। इस बीमारी के लक्षणों में पौधे की पत्तियों पर छोटे, काले धब्बों का दिखना शामिल है। ये धब्बे आमतौर पर गोलाकार होते हैं और व्यास में 2 मिलीमीटर तक हो सकते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बे आपस में मिल सकते हैं, जिससे पत्ती के प्रभावित क्षेत्र भूरे या काले हो जाते हैं। रोग के कारण पत्तियां विकृत और मुड़ भी सकती हैं। गंभीर मामलों में, पत्तियां सूख कर पौधे से गिर सकती हैं।
ग्राफियोला लीफ स्पॉट रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट, गोदरेज बिलियर्ड्स, बीएसीएफ एड्रोन) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू.पी. (देहात जिनेक्टो, बायर एंट्राकोल) का प्रयोग करें।
खजूर में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट | Some major pests of date palm plant
रेड पाम वीविल से होने वाले नुकसान: रेड पाम वीविल भारत में खजूर के पेड़ों का एक प्रमुख कीट है। इस कीट का लार्वा पेड़ के तने में छेद करता है और नरम ऊतकों को खाता है। प्रभावित पौधों से चिपचिपे पदार्थ निकलने लगते हैं। यह कीट तने में छेद करता है जिससे पेड़ कमजोर हो सकता है और तेज हवाओं या तूफान के दौरान टूटने की संभावना अधिक हो सकती है। इस कीट पर नियंत्रण नहीं किया गया तो पौधे/वृक्ष नष्ट भी हो सकते हैं।
रेड पाम वीविल पर नियंत्रण के तरीके:
- इस कीट पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 60-150 मिलीलीटर क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% एससी (देहात अटैक) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 13 किलोग्राम कार्बोफुरन 3.0% सीजी (नागार्जुन फ्यूरी, अदामा कार्बोमेन) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30% ईसी (टाटा रैलिस टैफगोर, एफएमसी रोगोर) का प्रयोग करें।
स्केल कीट से होने वाले नुकसान: स्केल कीट छोटे और अंडाकार होते हैं। ये कीट पेड़ की पत्तियों, तनों और फलों का रस चूसते हैं। स्केल कीटों के कारण होने वाली क्षति गंभीर हो सकती है और इससे फल की वृद्धि, उपज और गुणवत्ता कम हो सकती है।
स्केल कीट पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति एकड़ खेत में 1 लीटर डाइमेथोएट 30% ईसी (टाटा रैलिस टैफगोर, एफएमसी रोगोर) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एथिऑन 50% ईसी (पीआई इंडस्ट्रीज फॉस्माइट, बीएसीएफ एस्टोक) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 1.6 लीटर क्विनलफॉस 25 ईसी (धानुका धनुलक्स, सुमिटोमो कैमलॉक्स) का प्रयोग करें।
आपके खजूर की फसल में किस रोग एवं कीट का प्रकोप अधिक होता है? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: खजूर के पेड़ की देखभाल कैसे करें?
A: खजूर के पौधों/वृक्षों को विभिन्न रोगों एवं कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए लगातार निरीक्षण करते रहें। आवश्यकता होने पर कीटनाशक एवं फफूंद नाशक दवाओं का प्रयोग करें। आवश्यकता से अधिक मात्रा में सिंचाई करने से बचें। इससे खेत में जल जमाव हो सकता और पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं।
Q: खजूर का पेड़ कितने दिनों में फल देता है?
A: खजूर के पौधों में फल आना उसकी किस्मों पर निर्भर करता है। कुछ किस्म के पौधों की रोपाई के 3-4 वर्षों बाद फल आने शुरू हो जाते हैं। वहीं कुछ किस्म के पौधों की रोपाई के बाद फल आने में करीब 6 वर्षों का समय लग सकता है।
Q: खजूर में छोटे-छोटे धब्बे क्या होते हैं?
A: खजूर पर छोटे धब्बे आमतौर पर चीनी क्रिस्टल होते हैं जो फल की सतह पर बने होते हैं। ये क्रिस्टल एक प्राकृतिक घटना है और उपभोग करने के लिए हानिकारक नहीं हैं। वास्तव में, वे उच्च गुणवत्ता वाले खजूर का संकेत हैं जिन्हें क्रिस्टल गठन को रोकने के लिए रसायनों के साथ इलाज नहीं किया गया है।
जारी रखने के लिए कृपया लॉगिन करें
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ