धान की बुवाई की विभिन्न विधियां
हमारे देश में धान खरीफ मौसम में खेती की जाने वाली प्रमुख फसलों में से एक है। धान की खेती कई विधियों से की जाती है। आज इस पोस्ट के माध्यम से आप इसकी खेती की विभिन्न विधियों की जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।
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संडा विधि से धान की खेती : यह विधि किसानों के बीच बहुत तेजी से प्रचलित हो रही है। इस विधि से खेती करने पर धान की पैदावार में बढ़ोतरी होती है। इसके साथ ही कई रोग और पौधों के गलने की समस्या भी कम होती है। अगर आप एक बीघा खेत में संडा विधि से खेती करते है तो इसके लिए आपको केवल 2 से 3 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। वहीं अन्य विधि से खेती की जाए तो इतनी ही जमीन में करीब 15 से 20 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है।
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श्री विधि से धान की खेती : श्री विधि को सघन प्रणाली, एस.आर.आई और मेडागास्कर विधि भी कहते हैं। इस विधि से पानी के बहुत कम प्रयोग से भी धान का बहुत अच्छा उत्पादन होता है। आमतौर पर धान के खेत को पानी से भरा जाता है वहीं इस विधि में रोपाई के बाद खेत में पानी भरने की जरूरत नहीं होती। इस विधि से प्रति एकड़ जमीन की खेती के लिए 2 किलोग्राम बीजों आवश्यकता होती है। परंपरागत विधि की तुलना में श्री विधि से खेती करने पर धान की 2 से 3 गुणा ज्यादा उपज होती है।
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सीधी विधि से धान की खेती : सीधी बुवाई में किसान नर्सरी में होने वाले खर्च से बच जाते हैं। ऐसे में किसान कम लगत में बेहतर फसल प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही खेत की जुताई और रोपाई की लागत में भी कमी आती है। मोटे दानों वाले धन की खेती करना चाहते हैं तो प्रति एकड़ भूमि के लिए 12 से 14 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इतनी जमीन में माध्यम आकर के दानों की खेती करने के लिए करीब 10 से 12 किलोग्राम और महीन दानों वाली किस्मों की खेती के लिए 8 से 10 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है।
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पारंपरिक विधि से धान की खेती : पारंपरिक विधि से खेती करने पर लागत और मेहनत दोनों ज्यादा लगते हैं। पारंपरिक विधि से धान की रोपाई करने में पानी की भी अधिक आवश्यकता होती है। रोपाई के बाद भी खेत में पानी का जमाव होना जरूरी है। इससे पौधों के सड़ने एवं कई प्रकार के रोगों के होने का खतरा बढ़ जाता है।
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