धान की फसल के मुख्य कीट एवं उनका प्रबंधन (Major pests of paddy and their management)

धान भारत में मुख्य खाद्य फसलों में से एक है और विभिन्न कीटों से नुकसान के लिए अतिसंवेदनशील है। कुछ सामान्य कीट जो धान की फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, उनमें स्टेम बोरर, लीफ फोल्डर, ब्राउन प्लांट हॉपर और चावल के कीड़े शामिल हैं। इन कीटों से फसल की रक्षा के लिए, किसान सांस्कृतिक प्रथाओं, जैविक नियंत्रण और रासायनिक नियंत्रण जैसे विभिन्न तरीकों का उपयोग कर सकते हैं।
धान में लगने वाले प्रमुख कीट? (Major pests of paddy?)
भूरा फुदका कीट/ब्राउन प्लांट हॉपर (बी.पी.एच):
- यह कीट हल्के भूरे रंग के होते हैं जो पौधों के निचले भाग या मिट्टी के आस-पास पाए जाते हैं।
- भूरा फुदका कीट पौधों के तने एवं पत्तियों का रस चूसते हैं।
- प्रभावित पौधों की पत्तियों की ऊपरी सतह पर काले रंग के फफूंद नजर आते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में बाधा आती है और पौधे सूखने लगते हैं।
- इस कीट का प्रकोप रोपाई के 80 से 90 दिनों बाद, बालियों में दाने भरने के समय दिखाई पड़ता है।
- इससे प्रभावित पौधे तेजी से सूखने लगते हैं, फलस्वरूप पैदावार में काफी कमी आती है।
नियंत्रण:
- नियमित अंतराल पर फसल का निरीक्षण करें और कीट की उपस्थिति को मापें।
- खेत को खरपतवारों से मुक्त रखने से कीट का प्रकोप कम होता है।
- अधिक मात्रा में यूरिया का प्रयोग न करें, क्योंकि इससे कीट की वृद्धि हो सकती है।
- कीटनाशक दवाओं को पौधों के निचले भाग में ही छिड़काव करें।
- इसके लिए एसिटामिप्रिड 20% SP: 20 से 40 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL: 40 से 50 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- बुप्रोफेजीन 23.10% + फिप्रोनिल 3.85 SC: 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
पत्ती लपेटक कीट/लीफ फोल्डर:
- यह कीट पीले से हरे रंग का होता है। समूह में धान की पत्तियों पर अंडे देते हैं, जिससे सुंडियां निकलती हैं।
- पत्तियों के मुलायम हिस्सों को खाकर पत्तियों को किनारे से मुड़ने लगती है।
- पत्तियों को अंदर से खुरच कर खाते हैं और उनका रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां सफेद हो जाती हैं।
- पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है।
- पौधे का विकास रुक जाता है और अंत में पौधा कमजोर होकर नष्ट हो जाता है।
नियंत्रण:
- यदि संभव हो तो कीट के अंडों के समूह को नष्ट कर दें।
- खेत में खरपतवारों का नियंत्रण रखें, जिससे कीट का प्रकोप कम हो।
- थियामेथोक्सम 25% W.G (देहात एसीयर): 40-80 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- क्लोरपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% E.C (देहात सी स्क्वायर): 250-400 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- लम्ब्डासाइलोथ्रिन 5% E.C (सिंजेंटा कराटे): 100 मिलीलीटर प्रति 200-250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
तना छेदक (राइस स्टेम बोरर):
- पत्तियों और तनों को खा कर उन्हें अंदर से खोखला बना देते हैं। जिससे पौधे पीले पड़ जाते हैं।
- कीट के प्रकोप से पौधों में बालियां नहीं निकलती हैं।
- तना छेदक की लार्वा धान के टिलर्स में खाते हैं, जिससे फसल में 'डेड हर्ट' या 'सूखने' जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
- धान में ज्यादा नाइट्रोजन उर्वरक और बुवाई में देरी के कारण तना छेदक कीट की संख्या बढ़ सकती है।
नियंत्रण:
- देहात मैक्सियन (थियामेथोक्सम 1% + क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.5% जीआर) दवा को प्रति एकड़ खेत में 2400 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें। इसको पानी में मिलाकर धान की फसल पर एक समान रूप से छिड़काव करें।
- देहात कारटैप एस.पी (कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50% SP) दवा को प्रति एकड़ धान के खेत में 7.5 से 10 किग्रा प्रति एकड़ इस्तेमाल करें।
- क्लोरपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% E.C (देहात सी स्क्वायर): 250-400 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- अलांटो (थियाक्लोप्रिड 21.7% SC ) दवा प्रति एकड़ धान के खेत में 200 मिली प्रति एकड़ घोलकर बराबर रूप से स्प्रे करें।
गंधी बग:
- खेत में दुर्गंध पैदा करता है।
- शिशु एवं वयस्क कीट दानों में दूधिया अवस्था में दूध चूसते हैं।
- बालियों में दाने नहीं बन पाते और वे पोचे रह जाते हैं।
- दानों पर किए गए छेदों के चारों ओर काले या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
- गंधी बग कीट से प्रभावित अनाज भुरभुरा हो जाता है।
- प्रभावित दानों में छेद के साथ काले रंग के धब्बे हो जाते हैं।
- गंधी बग के प्रकोप के लिए खरपतवार, गर्म मौसम, और लगातार बारिश अनुकूल रहते हैं।
- यह कीट आमतौर पर वर्षा आधारित और ऊपरी भूमि वाले धान में अधिक पाए जाते हैं।
नियंत्रण:
- एसीफेट 75 एस.पी दवा को 266 से 400 ग्राम प्रति एकड़ पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- नीम का तेल 10,000 पी.पी.एम 200 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
- थियामेथोक्सम 25% W.G (देहात एसीयर): 40-80 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- वोलियाम फ्लेक्सी (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 8.8% + थियामेथोक्सम 17.5% w/w एससी) दवा को 240 मिलीलीटर प्रति एकड़ खेत में अच्छी तरह मिला कर छिड़काव करें।
रस चूसक कीट:
- पौधों की कोमल पत्तियों का रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते हैं।
- पत्तियां ऊपर या नीचे की तरफ मुड़ने लगती है।
- पौधों के विकास में बाधा आती है।
नियंत्रण:
- थियामेथोक्सम 25% W.G (देहात एसियर): 200 लीटर पानी में 100 ग्राम दवा को मिलाकर छिड़काव करें।
- एसिटामिप्रिड 20% एसपी (टाटा माणिक): प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 80 ग्राम दवा को मिलाकर छिड़काव करें।
- थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC (देहात एंटोकिल): 80 मिलीलीटर को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- क्लोरपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% EC (देहात सी-स्क्वायर): 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
धान हिप्सा कीट:
- पौधों की पत्तियों को खाते हैं, जिससे पत्तियों पर सफेद रंग की धारियां बन जाती हैं और पत्तियां सूखने लगती हैं।
नियंत्रण:
- प्रभावित पत्तियों और तनों को नष्ट कर दें।
- मेढ़ों से खरपतवार निकाल कर नष्ट कर दें।
- नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का अधिक प्रयोग न करें।
- तफाबान (क्लोरोपाइरीफॉस 20% ईसी) दवा को धान में 600 से 750 मि.ली प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- कैल्डन 50 SP (कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50% SP) दवा को प्रति एकड़ धान के खेत में 7.5 से 10 किग्रा प्रति एकड़ इस्तेमाल करें।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: धान के प्रमुख कीट कौन कौन से हैं?
A: धान की फसलों को कई कीट नुकसान पहुंचाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं: स्टेम बोरर, जो तनों में छेद कर पौधों को मुरझाने और मरने पर मजबूर करते हैं; पत्ती फोल्डर, जो पत्तियों को मोड़कर अंदर के हरे ऊतक को खाते हैं, जिससे विकास रुक जाता है; ब्राउन प्लांट हॉपर, जो पौधों का रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं; और चावल के कीड़े, जो विकासशील दानों पर फ़ीड कर अनाज को सिकुड़ा और मलिन बना देते हैं। इन कीटों से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए प्रभावी कीट प्रबंधन रणनीतियाँ आवश्यक है।
Q: धान का मुख्य रोग क्या है?
A: ब्लास्ट रोग, धान का मुख्य रोग है। यह पत्तियों, तनों, पुष्पगुच्छों और अनाज को प्रभावित करता है, जिससे पत्तियों पर छोटे, गोलाकार घाव बनते हैं जो बाद में धूसर केंद्र और भूरे रंग की सीमाओं के साथ धुरी या हीरे के आकार के हो जाते हैं। गंभीर मामलों में, पूरी पत्ती, तना और पुष्पगुच्छ नष्ट हो सकते हैं। उच्च आर्द्रता और वर्षा वाले क्षेत्रों में यह रोग उपज में महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा सकता है। प्रबंधन के लिए प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग, फसल चक्र और कवकनाशी का प्रयोग आवश्यक है।
Q: धान की प्रमुख किस्में कौन कौन सी है?
A: धान की विभिन्न किस्मों में देहात डीपीएस समृद्धि, देहात डीपीएस विराट, देहात डीपीएस डबल गोल्ड, देहात डीपीएस डारा, देहात BB-11, देहात BPT-5204 ओपी धान, देहात डीपीएस-सरताज, देहात डीपीएस-धन्नो, देहात डीपीएस-4567, देहात पीबी-1718, देहात पीबी-1121, देहात पीबी-1509, देहात एमटीयू-1001, और देहात महामाया शामिल हैं। ये किस्में विभिन्न विशेषताओं और रोग प्रतिरोधी गुणों के साथ आती हैं, जो उन्हें खेती के लिए उपयुक्त बनाती हैं।
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