धान की फसल में जीवाणु झुलसा रोग
जीवाणु झुलसा रोग को जीवाणु पत्ती अंगमारी रोग और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग भी कहते हैं। पंजाब, हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तरांचल, कर्नाटक और तमिलनाडु में इस रोग का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है। इन राज्यों के अलावा इस रोग से कई अन्य क्षेत्रों में भी धान की फसलें प्रभावित होती हैं।
रोग का लक्षण
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जीवाणु के द्वारा होने वाला यह रोग मुख्यतः पत्तियों का रोग है।
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इस रोग में सबसे पहले पत्तियों के ऊपरी भाग में हरे, पीले एवं भूरे रंग के धब्बे बनेने लगते हैं।
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धीरे-धीरे यह धब्बे धारियों में बदल जाते हैं।
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रोग बढ़ने पर धारियों का रंग पीला या कत्थई हो जाता है।
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प्रभावित पत्तियां सूखने व मुरझाने लगती हैं।
बचाव के उपाय
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बुवाई के लिए जीवाणु झुलसा रोग से ग्रस्त बीज का प्रयोग ना करें, केवल प्रमाणित बीज का ही उपयोग करें।
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संक्रमण से बचने के लिए खेत में अच्छी जल निकासी की सुविधा सुनिश्चित करें।
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नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का आवश्यकता से अधिक प्रयोग ना करें।
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उचित मात्रा में पोटाश का प्रयोग करें। इससे पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
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रोग के लक्षण दिखने पर खेत से पानी निकाल दें।
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प्रति एकड़ खेत में 10 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करें।
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पोटाश के छिड़काव के 3-4 दिनों बाद तक खेत में पानी नहीं भरना चाहिए।
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बुवाई से पहले बीज को उपचारित करें।
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रोपाई से पहले खेत में पहले से मौजूद फसल के अवशेषों को बाहर निकाल दें।
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धान के पौधों में यह रोग होने पर प्रति एकड़ जमीन में 20 ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लिन (स्ट्रेप्टोमिल गोल्ड /प्लांटोंमाइसिन) और 600 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (ब्लू कॉपर/ब्लाइटोक्स )को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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इसके अतिरिक्त आप 120 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फ़ेट 90% +टेट्रासाइक्लीन हाइड्रोक्लोराइड 10% जो की बाज़ार मे आईआईएल कंपनी की स्ट्रेप्टोमिल गोल्ड , एरीज एग्रो कंपनी की प्लांटोंमाइसिन के नाम से उपलब्ध है को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ जमीन में छिड़काव कर सकते हैं।
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