धान: पौधों की सड़ती जड़ोंं के पीछे हो सकते हैं कई कारण

धान भारत की एक मुख्य फसल है। भारत विश्व स्तर पर चावल के सबसे बड़े उत्पादकों और उपभोक्ताओं में से एक है। भारत में चावल की खेती का हजारों साल पुराना एक लंबा इतिहास है और आज भी यह फसल देश भर के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। भारत के प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, ओडिशा, तमिलनाडु, बिहार और छत्तीसगढ़ शामिल हैं। जिसमें अकेले केवल पश्चिम बंगाल में सालाना लगभग 1,53,10,000 टन चावल का उत्पादन होता है।
किसान साथियों धान में पानी की आवश्यकता एक बड़े पैमाने पर होती है, जिसके कारण खेतों में एक निश्चित मात्रा में हमेशा ही पानी भरा हुआ देखा जा सकता है। धान की फसल में पानी एक प्राथमिक आवश्यकता है, लेकिन जरूरत से अधिक पानी भी फसल में नुकसान का एक बहुत बड़ा कारण हो सकता है। फसल में पानी की अधिकता के कारण फसल में जड़ सड़न होने का खतरा बढ़ जाता है। वहीं अन्य रोगजनकों की उपस्थिति में यह संक्रमण एक गंभीर बीमारी का रूप ले लेता है, जो फसल में 20 से 30 प्रतिशत नुकसान का बड़ा कारण है।
फसल में जड़ गलन संक्रमण के विभिन्न कारण
जल भराव या खराब जल निकासी व्यव्स्था: धान के पौधों को विकास के लिए पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन अत्यधिक पानी या खराब जल निकासी से जड़ों में ऑक्सीजन अवशोषण की क्षमता कम हो जाती है। और पौधेपीले होकर मुरझाने लगते हैं। धान में इस अवस्था से बचने के लिए अल्टरनेट वेटिंग एंड ड्राईंग तकनीक का प्रयोग कर सकते हैं।
कवक रोग: कवक की कई प्रजातियां चावल की जड़ों को संक्रमित कर जड़ सड़न का कारण बन सकती हैं। धान में जड़ सड़न पैदा करने वाले कुछ सामान्य कवकों में राइजोक्टोनिया सोलानी, पाइथियम एसपीपी और फ्यूसेरियम एसपीपी शामिल हैं। ये रोगज़नक़ जड़ ऊतक पर आक्रमण करते हैं और जड़ प्रणाली के कार्य को बाधित करते हैं, जिससे जड़ें सड़ने लगती है।
मृदाजनित रोग: धान में जड़ सड़न के लिए ज़िम्मेदार रोगज़नक़ अक्सर मिट्टी में मौजूद होते हैं और और अनुकूल परिस्थितियां मिलते ही फसल में प्रभाव डालना शुरू कर देते हैं। रोगज़नक़ अक्सर कार्बनिक मलबे पर अदिक देखने को मिलता हैं।
संक्रमित बीज या पौधे: पुरानी संक्रमित फसल के बीजों के प्रयोग से फसल में रोग के बढ़ने का खतरा अधिक होता है।
खराब मिट्टी का स्वास्थ्य: जिस मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती है या असंतुलित पीएच होता है, वह चावल के पौधों की जड़ प्रणाली को कमजोर कर सकता है, जिससे जड़ सड़न रोग का प्रभाव फसल में तेजी से फैलता है।
पर्यावरणीय तनाव: अत्यधिक तापमान, सूखा या भारी वर्षा जैसे तनाव कारक चावल के पौधों की सुरक्षा को कमजोर कर सकते हैं और उन्हें जड़ सड़न के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं।
धान में जड़ सड़न के नियंत्रण उपाय
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पौधों की बुवाई एवं रोपाई से पहले खेत में 1 बार गहरी जुताई अवश्य करें और बुवाई एवं रोपाई से पहले मिट्टी को कुछ दिनों के लिए धूप में छोड़ दें।
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खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्ता रखें।
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रोग के शुरूआती लक्षण दिखने पर संक्रमित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें।
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3 ग्राम बैविस्टिन की मात्रा प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करने के लिए प्रयोग करें। इससे पौधों को फफूंद जनित लड़ने की शक्ति मिलती है।
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रोग पर नियंत्रण के लिए 15 लीटर पानी में 40 मिलीलीटर वेरोनिल मिला कर प्रयोग करने पर रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है।
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इसके अलावा प्रति एकड़ भूमि में 15 लीटर पानी की दर से 25 ग्राम देहात फुल स्टॉप के प्रयोग से भी आप रोग पर नियंत्रण पा सकते हैं।
धान में जड़ सड़न के किसी भी लक्षण का शीघ्र पता लगाने के लिए नियमित रूप से खेतों की निगरानी और निरीक्षण करें। धान की खेती से जुड़ी अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 या कमेंट बॉक्स के माध्यम से अपने सवाल पूछ सकते हैं।
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