सौंफ: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Fennel: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment
सौंफ की खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है, क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण मसाला और औषधीय पौधा है। इसके बीजों का उपयोग भोजन में स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ औषधियों में भी किया जाता है। हालांकि, सौंफ के पौधे विभिन्न प्रकार के रोगों की चपेट में आ सकते हैं, जो इसकी गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं। इन रोगों का समय पर उचित प्रबंधन न किया जाए तो फसल को भारी नुकसान हो सकता है। इस पोस्ट में, हम सौंफ के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों और उनके प्रभावी प्रबंधन के उपायों पर चर्चा करेंगे, जिससे किसानों को बेहतर उत्पादन और गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त हो सके।
सौंफ के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases affecting fennel plants
जड़ सड़न रोग से होने वाले नुकसान: यह एक फफूंद जनित रोग है। खेत में जल जमाव होने पर भी इस रोग के होने का खतरा बढ़ जाता है। इस रोग के होने पर पौधों की जड़ें धीरे-धीरे सड़ने लगती हैं। पौधे कमजोर होने लगते हैं और उन्हें उंखाड़ने पर आसानी से निकल जाए हैं। रोग बढ़ने के साथ जमीन की सतह के पास से सटे हुए तने भी सड़ने लगते हैं। प्रभावित पौधों के तने भूरे रंग के नजर आने लगते हैं। पौधों की पत्तियां भी पीली होने लगती हैं। कुछ समय बाद पौधा पूरी तरह सूख जाता है।
जड़ सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- फसल को इस रोग से बचाने के लिए खेत में जल जमाव न होने दें। जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
- प्रति किलोग्राम बीज को 1 मिलीलीटर फ़्लुक्सापायरोक्सैड 333 ग्राम/लीटर एफएस (बीएएसएफ सिस्टिवा) से उपचारित करें।
- प्रति किलोग्राम बीज को 3-3.5 ग्राम कार्बेंडाजिम 25% + मैंकोजेब 50% डब्ल्यूएस (इंडोफिल स्प्रिंट) से उपचारित करें।
- प्रति किलोग्राम बीज को 3.5 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% डब्ल्यूएस (स्वाल इमिवैक्स) से उपचारित करें।
चूर्णिल आसिता रोग से होने वाले नुकसान: चूर्णिल आसिता रोग यानी पाउडरी मिल्ड्यू रोग की शुरुआत में पौधों की पत्तियों के ऊपरी भाग पर सफेद रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। धीरे-धीरे इन धब्बों का आकार बढ़ने लगता है और पूरा पत्ता सफेद रंग के पाउडर की तरह नजर आने वाले पदार्थ से ढक जाता है। रोग बढ़ने के साथ पौधों की शाखाओं और फलों पर भी सफेद धब्बे नजर आ सकते हैं। इस रोग के कारण प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में बाधा आती है। जिससे प्रभावित पत्तियां धीरे-धीरे पीली होने लगती हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियां सूख कर गिरने लगती हैं। पौधों के विकास में बाधा आती है। इस रोग के कारण फसल की उपज और गुणवत्ता में भारी कमी देखी जा सकती है।
चूर्णिल आसिता रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग को फैलने से रोकने के लिए पौधों के प्रभावित हिस्सों को तोड़ कर नष्ट कर दें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 800 ग्राम एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 4.7% + मैन्कोज़ेब 59.7% + टेबुकोनाज़ोल 5.6% डब्ल्यूजी (स्वाल एरिन) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 1,200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 4.8% w/w + क्लोरोथालोनिल 40% w/w एससी (नोवा स्ट्राइक) का प्रयोग करें।
अल्टरनेरिया ब्लाइट रोग से होने वाले नुकसान: यह रोग कवक के प्रकोप के कारन होता है। इस रोग के होने पर पौधों के पत्तों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के गोल आकार के धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों का आकार भी बढ़ने लगता है। धीरे-धीरे ये धब्बे आपस में मिल जाते हैं, जिससे पत्ते सूखे हुए से नजर आते हैं। प्रभावित पत्ते झड़ने लगते हैं। जिससे पौधे नष्ट होने होने लगते हैं।
अल्टरनेरिया ब्लाइट रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट, गोदरेज बिलियर्ड्स, बीएसीएफ एड्रोन) का प्रयोग करें।
फ्यूजेरियम विल्ट रोग से होने वाले नुकसान: इसे उकठा रोग भी कहा जाता है। यह एक कवक जनित रोग है। नियंत्रण नहीं किया गया तो इस रोग के कवक मिट्टी में करीब 6 वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। इस रोग की शुरुआती अवस्था में पौधे के निचले पत्ते मुरझा कर सूखने लगते हैं। संक्रमण बढ़ने पर पूरा पौधा मुरझा कर सूख जाता है। इस रोग के कारण फसल की उपज में 50 प्रतिशत तक कमी हो सकती है।
फ्यूजेरियम विल्ट रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- फसलों को इस रोग से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं। संक्रमित पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- प्रति किलोग्राम बीज को 3.5-4 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% डब्ल्यूएस (स्वाल इमिवैक्स) से उपचारित करें।
- प्रति किलोग्राम बीज की ड्रेसिंग 4 ग्राम टेबुकोनाज़ोल 15% + ज़िनेब 57% डब्ल्यूडीजी (ग्लोबल क्रॉप केयर गैंगो) से करें।
सौंफ के पौधों को रोगों से बचाने के लिए आप किन दवाओं का उपयोग करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके अलावा, 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करके आप फसलों के सही देखभाल और सुरक्षा के लिए और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट में दी गई जानकारी को अधिक से अधिक व्यक्तियों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक एवं अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: सौंफ में पीलापन कैसे दूर करें?
A: सौंफ के पत्तों का पीलापन कई कारकों के कारण हो सकता है जैसे पोषक तत्वों की कमी, अधिक सिंचाई, कीट या रोगों का प्रकोप। पत्तों में पीलापन हटाने के लिए सबसे इसकी पीछे के कारण की पहचान करें। सही समय पर एवं उचित मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग करें। खेत में जल जमाव न होने दें। कीटों और रोगों को नियंत्रित करने के लिए आवश्यकता के अनुसार जैविक या रासायनिक कीटनाशकों और कवकनाशी का उपयोग करें।
Q: सौंफ कितने दिन में उगती है?
A: सौंफ एक बारहमासी जड़ी बूटी है जो 6 फीट तक लंबी हो सकती है। सौंफ को परिपक्वता तक पहुंचने और फसल के लिए तैयार होने में आमतौर पर लगभग 90-100 दिन लगते हैं।
Q: हम पौधों को रोगों से कैसे बचा सकते हैं?
A: पौधों को बीमारियों से बचाने के कई तरीके हैं। कुछ सामान्य तरीकों में फसल चक्र अपनाना, रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करना, खरपतवारों पर नियंत्रण करना, खेत में स्वच्छता को बनाए रखना, अच्छी सिंचाई प्रथाओं का अभ्यास करना और आवश्यकता के अनुसार जैविक या रासायनिक कीटनाशकों और फफूंद नाशक दवाओं का उपयोग करना शामिल है। फसल की नियमित निगरानी और शुरुआती अवस्था में रोगों की पहचान भी उनके प्रसार को रोकने में मदद कर सकती है।
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