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कृषि ज्ञान
20 Nov
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चारे वाले मक्का की खेती (fodder maize farming)


चारे वाले मक्का, जिसे वैज्ञानिक नाम जीया मेज (Zea mays) से जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण फसल है जो विशेष रूप से चारे के लिए उगाई जाती है। इसका चारा मुलायम और पौष्टिक होता है, जो सभी प्रकार के पशुओं के लिए पसंदीदा आहार है। मक्का को मुख्यतः खरीफ मौसम में लगाया जाता है, जब वर्षा होती है और मिट्टी में नमी बनी रहती है। इस तरह, चारे वाले मक्का की खेती एक लाभकारी व्यवसाय है, जो किसानों को अच्छे उत्पादन और आर्थिक लाभ मिल सकता है। उचित प्रबंधन और तकनीकी ज्ञान के साथ, किसान इसे सफलतापूर्वक कर सकते हैं।

कैसे करें चारे वाले मक्के की खेती? (How to grow fodder maize?)

  • मिट्टी: मक्का की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, क्योंकि यह अच्छी जल निकासी और नमी बनाए रखने में सहायक है। मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई और फिर हल्की जुताई करके खेत को भुरभुरी बनाने से मिट्टी की संरचना सुधरती है और पौधों की बेहतर वृद्धि होती है।
  • जलवायु : मक्का के लिए उष्ण और आर्द्र जलवायु सबसे अच्छी होती है। गर्मी के प्रति संवेदनशील यह फसल सही तापमान में बेहतर बढ़ती है। सिंचाई के अच्छे प्रबंध हो तो इसकी खेती रबी में भी की जा सकती है।
  • बुवाई का समय: मक्का की बुवाई पहली वर्षा होने पर करनी चाहिए। आमतौर पर, जून-जुलाई का महीना बुवाई के लिए सर्वोत्तम होता है। सही समय पर बुवाई करने से फसल की प्रारंभिक वृद्धि अच्छी होती है और इससे उत्पादन में भी वृद्धि होती है।
  • बीज की मात्रा और बुवाई: चारे वाले मक्का उगाने के लिए प्रति एकड़ खेत में 16 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों की बुवाई सीड ड्रिल के द्वारा की जाती है। पंक्ति से पंक्ति के बीच दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर होनी चाहिए, जबकि पौधे से पौधे के बीच की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखी जानी चाहिए। बीजों को 5 से 7 सेंटीमीटर गहराई पर बोना चाहिए।
  • उन्नत किस्में: चारे वाले मक्का के लिए विभिन्न उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, जैसे: प्रताप मक्का-6, अफ्रीकन टाल, गंगा-2, गंगा-5, जे-1006, गंगा-6 और गंगा-7 इन किस्मों का चयन करते समय क्षेत्र के अनुसार उपयुक्तता और स्थानीय जलवायु का ध्यान रखें।
  • खेत की तैयारी: खेत तैयार करते समय सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से 1 से 2 बार गहरी जुताई करें। इसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर से 2 बार हल्की जुताई करें।
  • खाद एवं उर्वरक प्रबंधन: मक्का की फसल के लिए विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जो फसल की हर अवस्था में महत्वपूर्ण होते हैं। सही समय पर उनका प्रबंधन करने से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि होती है। बुवाई से 10-15 दिन पहले प्रति एकड़ 10 टन एफवाईएम (FYM) या अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं। इसके साथ ही, 1-2 किलो एजोस्पिरिलम का उपयोग करें। बुवाई के समय, प्रति एकड़ 26 किलो यूरिया, 35 किलो डीएपी, 14 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) और 4 किलो देहात स्टार्टर डालें। इसके बाद, 30 दिन बाद 26 किलो यूरिया की टॉप ड्रेसिंग करें।
  • सिंचाई प्रबंधन: चारे वाले मक्के में अगर बारिश नहीं होती है, तो फसल को आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।
  • खरपतवार नियंत्रण: मक्के की फसल में खरपतवार की अधिकता से उत्पादन में काफी हद तक कमी आती है। मक्के में मुख्य रूप से चौड़ी पत्ती और सकरी पत्ती वाले खरपतवार पाए जाते हैं। इन खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए खेत में कम से कम 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करें। 4-5 सेंटीमीटर से अधिक गहराई में निराई-गुड़ाई न करें ताकि मक्के की जड़ों को नुकसान न पहुंचे। खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग करें।
  • रोग एवं कीट प्रबंधन: मक्के की फसल में प्रमुख कीटों और रोगों में तना छेदक, फॉल आर्मीवर्म, और जड़ कीड़े प्रमुख कीट है। तना छेदक पौधे के तने को नुकसान पहुंचाता है, जबकि फॉल आर्मीवर्म पत्तियों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा, मक्के की फसल में पत्ती धब्बा रोग, जंग (रस्ट), और उकठा रोग (विल्ट) जैसे प्रमुख रोग होते हैं, जो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं। उचित कीट और रोग प्रबंधन से मक्का की फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • कटाई: मक्का की फसल की कटाई तब करनी चाहिए जब कर्न (कांदला) मिल्की स्टेज (दूधिया अवस्था) में हो। इस अवस्था में दाने पूरी तरह से विकसित नहीं होते, लेकिन इनमें नमी भरपूर होती है, जो उच्च गुणवत्ता का चारा प्राप्त करने के लिए अच्छा है।
  • उत्पादन: एक एकड़ खेत में 250 से 400 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता है, जो पशुओं के लिए पौष्टिक होता है। चारे वाले मक्का की खेती न केवल फसलों के विविधीकरण में सहायक होती है, बल्कि यह पशुपालन के लिए भी एक महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करती है।

क्या आप भी हरे चारे के लिए मक्का की खेती करना चाहते हैं? अपने अनुभव और विचार हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आई हो तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: 1 एकड़ में कितना मक्का बीज लगता है?

A: भारत में एक एकड़ भूमि के लिए आवश्यक मक्का के बीज की मात्रा विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि मक्का की किस्म, पौधों के बीच की दूरी, और बुवाई की विधि। औसत, 60 से मी x 20 सेमी की दूरी के लिए, एक एकड़ भूमि के लिए लगभग 20-25 किलोग्राम मक्का के बीज की आवश्यकता होती है।

Q: मक्के की उन्नत किस्म कौन सी है?

A: भारत में, मक्का की कई उन्नत किस्में हैं जिन्हें विभिन्न कृषि अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित किया गया है। इनमें से कुछ प्रमुख किस्में हैं - एचएम-4, गंगा -5, शक्तिमान -1, किसान, एन के 7720 (सिंजेंटा), कॉर्नेटो 7332, विजय (सिगनेट 22), प्रो 311 इत्यादि। ये किस्में उच्च उपज, रोग प्रतिरोधक क्षमता और बेहतर गुणवत्ता प्रदान करती हैं।

Q: मक्के की खेती कितने दिन में होती है?

A: मक्के की फसल की अवधि किस्म और स्थान पर निर्भर करती है। सामान्यतः: मक्के की बुवाई से परिपक्व होने में मध्यम अवधि वाली किस्मों को लगभग 90 से 120 दिन, जल्दी पकने वाली किस्मों को 70 से 80 दिन और देर से पकने वाली किस्मों को 150 दिन लगते हैं।

Q: मक्का बोने का सही समय क्या है?

A: खरीफ मौसम में मक्का बोने का आदर्श समय जून के पहले सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह के बीच होता है। यह क्षेत्र और मौजूदा मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है। मक्का एक गर्म मौसम की फसल है और अंकुरण और विकास के लिए गर्म मिट्टी के तापमान की आवश्यकता होती है।

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