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गाजर : बेहतर पैदावार के लिए इस तरह तैयार करें खेत
गाजर : बेहतर पैदावार के लिए इस तरह तैयार करें खेत
जड़ वाली फसलों में गाजर की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। सलाद के अलावा गाजर से सब्जी, अंचार, जूस, हलवा, रायता, सूप, जैम, कैंडी, आदि तैयार किया जाता है। इसके साथ ही इससे कई तरह के सौंदर्य प्रसाधन भी तैयार किए जाते हैं। कई पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण हमारे स्वास्थ्य के लिए यह बहुत लाभदायक है। ठंड के मौसम में इसकी बढ़ने के कारण इसकी खेती करने वाले किसान कम समय में अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। आइए इस पोस्ट के माध्यम से हम गाजर की खेती के लिए उपयुक्त समय, बीज की मात्रा, खेत की तैयारी, आदि कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त करें।
बुवाई का उपयुक्त समय
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गाजर की देशी किस्मों की बुवाई के लिए अगस्त-सितंबर का महीना उपयुक्त है।
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गाजर की यूरोपियन एवं अन्य विदेशी किस्मों की बुवाई अक्तूबर-नवंबर महीने में की जाती है।
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बीज की मात्रा
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प्रति एकड़ भूमि में खेती करने के लिए 4 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु
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गाजर की बेहतर पैदावार के लिए हल्की दोमट मिट्टी एवं बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त है।
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भारी मिट्टी में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए।
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मिट्टी का एच स्तर 6.5 से 7 होना चाहिए।
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गाजर की फसल को ठंडे जलवायु की आवश्यकता होती है।
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बीज के जमाव के लिए 7 से 24 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होना आवश्यक है।
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जड़ों के विकास के लिए 16 से 21 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त है।
खेत तैयार करने की विधि
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गाजर जड़ वाली फसल है। जड़ों के बेहतर विकास के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है।
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इसके लिए सबसे पहले 1 बार गहरी जुताई करें।
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इसके बाद 3 से 4 बार देशी हल या कल्टीवेटर से हल्की जुताई करें।
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बेहतर पैदावार के लिए प्रति एकड़ भूमि में 10 से 12 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं।
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इसके अलावा प्रति एकड़ खेत में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 18 किलोग्राम फॉसफोरस एवं 20 किलोग्राम पोटाश मिलाएं।
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जुताई के बाद खेत की मिट्टी को भुरभुरी एवं समतल बनाने के लिए खेत में पाटा लगाएं।
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बीज की बुवाई के लिए खेत में क्यारियां तैयार करें।
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सभी क्यारियों के बीच 45 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
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बीज की बुवाई 7-8 सेंटीमीटर की दूरी पर करें।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
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बुवाई के तुरंत बाद हलकी सिंचाई करें। इससे अंकुरण में आसानी होती है।
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इसके बाद 15 से 20 दिन के अंतराल पर 5-6 बार सिंचाई करें।
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खरपतवार पर नियंत्रण के लिए आवश्यकता के अनुसार निराई-गुड़ाई करें।
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