गेहूं में रतुआ रोग का प्रबंधन | Management of Rust Disease in Wheat

रतुआ रोग जिसे रस्ट डिजीज के नाम से भी जाना जाता है, गेहूं की फसल में होने वाली प्रमुख समस्याओं में से एक है। कुछ क्षेत्रों में इसे जंग रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह एक खतरनाक रोग है जो मुख्य रूप से फंगस (कवक) के कारण होता है। इस रोग के कारण पौधों की पत्तियों, तनों और बालियों पर पीले, नारंगी या भूरे-काले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। रतुआ रोग को समय पर नियंत्रित नहीं किया गया तो इसके कारण पूरी फसल नष्ट हो सकती है। गेहूं के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए एवं अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इस आर्टिकल के द्वारा आप रतुआ रोग के प्रकार, इसके लक्षण एवं नियंत्रण की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
रतुआ रोग के प्रकार | Types of Rust Disease
- रतुआ रोग मुख्य तौर पर 3 प्रकार के होते हैं। जिनमें पीला रतुआ रोग (येलो रस्ट), भूरा रतुआ रोग (ब्राउन रस्ट) और काला रतुआ रोग (ब्लैक रस्ट) शामिल है।
रतुआ रोग से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण की जानकारी | Damage Caused by Rust Disease and Its Control Measures
पीला रतुआ रोग से होने वाले नुकसान: पीला रतुआ रोग को कई क्षेत्रों में येलो रस्ट या धारीदार रतुआ रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग की शुरुआत में प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले रंग की धारियां उभरने लगती हैं। कुछ समय बाद पूरी पत्तियां पीले रंग की हो जाती हैं। इसके साथ ही मिट्टी में भी पीले रंग के पाउडर के समान पदार्थ गिरने लगते हैं। पौधों में कल्ले निकलने के समय पीला रतुआ रोग होने पर पौधों में बालियां नहीं बनती हैं।
पीला रतुआ रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- पीला रतुआ रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी (देहात एजीटॉप, जेयू ज़ोडिया, अदामा कस्टोडिया) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एससी (देहात सिनपैक्ट, सिंजेंटा एमिस्टार टॉप, बीएसीएफ एड्रोन, कात्यायनी एजोज़ोल) के प्रयोग से भी गेहूं की फसल में रतुआ रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी (ईबीएस प्रोपी 25, क्रिस्टल टिल्ट) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम पिकोक्सीस्ट्रोबिन 7.05%+ प्रोपिकोनाज़ोल 11.7% एससी (डॉव गैलीलियो वे) का प्रयोग करें।
नोट:
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भूरा रतुआ रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को ब्राउन रस्ट या पत्ती का रतुआ रोग भी कहते हैं। इस रोग का प्रकोप देश के लगभग सभी क्षेत्रों में होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों में शुरुआत में पत्तियों की ऊपरी सतह पर नारंगी रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। कुछ समय बाद यह धब्बे गहरे भूरे रंग में बदलने लगते हैं। इस रोग की चपेट में आने के कारण गेहूं की पैदावार में 30 प्रतिशत तक कमी हो सकती है।
भूरा रतुआ रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम मैंकोजेब 75% डब्ल्यू.पी. (देहात DeM 45, धानुका एम 45, डाईथेन एम 45) का प्रयोग करें।
- 200 मिलीलीटर प्रोपिकोनाजोल 25% ईसी (कात्यायनी बूस्ट, अदामा बम्पर) को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम मैंकोज़ेब 75 डब्ल्यूपी (कात्यायनी के ज़ेब, इंडोफिल एम 45) का प्रयोग करें।
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काला रतुआ रोग से होने वाले नुकसान: काला रतुआ रोग को ब्लैक रस्ट या तने का रतुआ रोग भी कहते हैं। इस रोग की शुरुआत में पौधों के तने एवं पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों का रंग काला होने लगता है। 20 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान होने पर यह रोग तेजी से फैलता है।
काला रतुआ रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- भूरा एवं काला रतुआ रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम मैंकोजेब 75% डब्ल्यू.पी. (देहात DeM-45, इंडोफिल एम- 45) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम मैंकोज़ेब 75 डब्ल्यूपी (कात्यायनी के ज़ेब, इंडोफिल एम 45) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 100 मिलीलीटर टेबुकोनाज़ोल 250 ईसी (बायर फोलिकुर) का प्रयोग काला रतुआ रोग पर नियंत्रण के लिए कारगर है।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम ट्रायडाइमेफॉन 25% डब्ल्यूपी (केआर क्रिलटन, ट्रॉपिकल टैगटन, एडवांस ट्राइगार्ड) का प्रयोग करें।
रतुआ रोग से प्रभावित होने वाली अन्य फसलें | Other Crops Affected by Rust Disease
- गेहूं के अलावा रतुआ रोग का प्रकोप कई अन्य फसलों में भी होता है। जिनमें जौ, सोयाबीन, कॉफी, चाय, गन्ना, मटर, बीन्स, मूंगफली और बाजरा शामिल है।
क्या आपकी गेहूं की फसल में कभी रतुआ रोग का प्रकोप हुआ है? इस पर नियंत्रण के लिए आपने किन दवाओं का प्रयोग किया? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा लिख कर भेजें। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' को फॉलो करना न भूलें। इसके साथ ही इस पोस्ट को अन्य किसानों के साथ लाइक और शेयर भी करें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: गेहूं का रतुआ रोग क्या है?
A: रतुआ रोग एक कवक रोग है जो गेहूं के पौधों को प्रभावित करता है और फसलों को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा सकता है। इस रोग को नियंत्रित नहीं करने पर यह तेजी से फैलते हुए अन्य पौधों को भी प्रभावित कर सकता है। इस रोग के कारण गेहूं की उपज और गुणवत्ता दोनों में कमी आती है।
Q: गेहूं के जंग का इलाज कैसे करें?
A: गेहूं की फसल में जंग रोग पर नियंत्रण के लिए उचित कवकनाशक दवाओं का प्रयोग करें। बुरी तरह प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें। आवश्यकता होने पर कृषि विशेषज्ञों से परामर्श करें।
Q: गेहूं के जंग के लिए कौन सा कवकनाशी सबसे अच्छा है?
A: कई कवकनाशी हैं जो गेहूं के जंग के खिलाफ प्रभावी हैं। बेहतर परिणाम के लिए कवकनाशी का प्रयोग रंग रोग के विभिन्न प्रकार एवं फसल की अवस्था के अनुसार करें। पीले, भूरे एवं काले जंग रोग पर नियंत्रण के लिए आप इस पोस्ट में बताई गई दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं।
Q: गेहूं की फसल खराब होने के क्या-क्या कारण होते हैं?
A: गेहूं की फसल खराब होने के कई कारण हो सकते हैं। जिनमें प्रतिकूल मौसम की स्थिति जैसे सूखा, अत्यधिक वर्षा, या अत्यधिक तापमान, कीट और रोग संक्रमण, खराब मिट्टी की गुणवत्ता, अनुचित सिंचाई और अपर्याप्त फसल प्रबंधन प्रथाएं शामिल हैं। इसके अलावा, कम गुणवत्ता वाले बीज का चयन या अनुचित बुवाई तकनीकों का उपयोग भी फसल के खराब होने का कारण बन सकता है।
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