जेरेनियम की खेती | Geranium Farming
जेरेनियम एक महत्वपूर्ण औषधीय और सुगंधित पौधा है जिसका उपयोग विशेष रूप से सुगंधित तेल निकालने में किया जाता है। इस तेल का प्रयोग इत्र, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन, और औषधीय उत्पादों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसके अतिरिक्त, जेरेनियम के पत्तों और फूलों का भी उपयोग विभिन्न औषधीय गुणों के लिए किया जाता है। जेरेनियम की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय बन सकती है, क्योंकि इसके तेल की उच्च बाजार मांग है। भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार एवं उत्तर-पूर्वी राज्यों में की जाती है। इस आर्टिकल के माध्यम से हम जेरेनियम की खेती से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।
भारत में जेरेनियम की खेती | Geranium Farming in India
- जेरेनियम की खेती के लिए उपयुक्त समय: जेरेनियम के पौधों को पूरे साल उगाया जा सकता है, लेकिन जेरेनियम की रोपाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से फरवरी के बीच होता है। यह मौसम पौधे के विकास के लिए उपयुक्त होता है, क्योंकि इस दौरान तापमान न अधिक गर्म होता है और न ही अधिक ठंडा, जो पौधे की अच्छी वृद्धि और तेल उत्पादन के लिए अनुकूल है।
- उपयुक्त जलवायु: इसकी खेती समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। जेरेनियम का पौधा अधिक ठंड या गर्मी को सहन नहीं कर सकता। इसकी सबसे अच्छी वृद्धि के लिए 15-25 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान उपयुक्त होता है। तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव से फसल प्रभावित हो सकती है। जेरेनियम को अच्छी धूप की आवश्यकता होती है, लेकिन इसे अत्यधिक धूप और गर्मी से बचाना चाहिए। वातावरण में करीब 60% तक आर्द्रता होनी चाहिए।
- उपयुक्त मिट्टी: जेरेनियम की खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसके अलावा रेतीली दोमट मिट्टी भी अच्छी होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 और 7.5 के बीच होना चाहिए। अधिक उपज के लिए मिट्टी में पर्याप्त जैविक पदार्थ और पोषक तत्वों की मात्रा होनी चाहिए।
- बेहतरीन किस्में: इसकी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इसकी बेहतरीन किस्मों का चयन करना आवश्यक है। आप सिम-पवन, बोरबन, सिमैप बयों जी-17 जैसी किस्मों का चयन कर सकते हैं।
- खेत तैयार करने की विधि: इसकी खेती के लिए खेत की तैयारी का ध्यान रखना आवश्यक है। इसके लिए मिट्टी की कम से कम 2 बार गहरी जुताई करें। इससे मिट्टी का ढांचा ढीला हो जाएगा और पौधों की जड़ों का विकास भी बेहतर तरीके से होगा। खेत की आखिरी जुताई से पहले मिट्टी में गोबर की खाद मिलाएं। इसके बाद मिट्टी को समतल बनाएं। खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें। इससे जड़ों को सड़ने से बचाया जा सकता है।
- पौधों की मात्रा: जेरेनियम की खेती में बीज की जगह पौधों की कटिंग या कलम का उपयोग किया जाता है। इसका कारण यह है कि जेरेनियम के बीज से पौध तैयार करना मुश्किल होता है और इसमें समय भी अधिक लगता है। कटिंग की विधि से पौधे जल्दी और आसानी से तैयार होते हैं। एक एकड़ खेत के लिए लगभग 25,000-30,000 कटिंग की आवश्यकता होती है। कटिंग करीब 8-10 सेंटीमीटर लंबा होना चाहिए और इसमें कम से कम दो से तीन गांठ होनी चाहिए।
- रोपाई की विधि: पौधों की कटिंग को पहले नर्सरी में लगाया जाता है। रोपाई के 20-30 दिनों के बाद इसे मुख्य खेत में लगाया जा सकता है। मुख्य खेत में कतारों के बीच 24-28 इंच की दूरी होनी चाहिए। वहीं पौधों के बीच 16-20 इंच की दूरी रखें। यह दूरी पौधों को विकास के लिए पर्याप्त जगह देती है और उचित वायु परिसंचरण में मदद करती है। रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। इसके पौधे अधिक जलभराव को सहन नहीं कर सकते हैं। इसलिए खेत में जल निकासी की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए। रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें ताकि पौधे की जड़ें अच्छे से स्थापित हो सकें। इसके बाद, नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है, लेकिन ध्यान रहे कि पानी ज्यादा न हो। गर्मी के मौसम में 7-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना उचित होता है। ठंड के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता कम हो जाती है और इसे 15-20 दिन के अंतराल पर किया जा सकता है।
- खरपतवार नियंत्रण: खरपतवारों से बचाव के लिए खेत की समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें। खेत में खरपतवारों की अधिकता पौधों की वृद्धि को प्रभावित कर सकती है। ये मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्वों को ग्रहण कर लेते हैं और पौधों को कमजोर बना देते हैं। इन पर नियंत्रण के लिए रोपाई के 30-40 दिनों बाद निराई-गुड़ाई करें। इसके बाद आवश्यकता के अनुसार निराई-गुड़ाई करते रहें। खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए जैविक विधियों का उपयोग करना बेहतर होता है, लेकिन यदि समस्या बढ़ती है तो आप रासायनिक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं। रासायनिक दवाओं के प्रयोग से पहले कृषि विषेशज्ञों से सलाह जरूर लें।
- रोग एवं कीट नियंत्रण: जेरेनियम के पौधों में पत्ती धब्बा रोग, जड़ सड़न रोग, माइट्स, एफिड्स जैसे रस चूसक कीट, आदि का प्रकोप अधिक होता है। पत्तियों के पीले होने से और पौधों के मुरझाने से इन रोगों की पहचान की जा सकती है। जैविक नियंत्रण के लिए बुरी तरह प्रभावित हिस्सों को काट कर अलग करें। इसके अलावा नीम के तेल का प्रयोग भी कारगर साबित होता है। रासायनिक दवाओं का प्रयोग विशेषज्ञों की परामर्श के बिना न करें और दवाओं का प्रयोग उचित मात्रा में करें।
- फसल की कटाई: जेरेनियम के पौधों की पहली कटाई आमतौर पर पौधों की रोपाई के लगभग 3-4 महीने बाद की जाती है। इस समय पौधों में तेल की मात्रा सबसे अधिक होती है। इसके बाद हर 3-4 महीने के अंतराल पर कटाई की जा सकती है। कटाई के बाद पत्तियों और तनों से तेल निकालने के लिए डिस्टिलेशन प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। जेरेनियम के पौधों से 3-4 वर्षों तक लगातार उत्पादन लिया जा सकता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: जिरेनियम का तेल कैसे निकाला जाता है?
A: जिरेनियम का तेल पौधे की पत्तियों और तनों के भाप आसवन के माध्यम से निकाला जाता है। तेल निकालने के बाद इसे इकट्ठा करके पानी से अलग किया जाता है।
Q: जेरेनियम के लिए कौन सी मिट्टी सबसे अच्छी है?
A: जेरेनियम के पौधों के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का चयन करें। भारी मिट्टी में इसकी खेती करने से बचें। हल्की दोमट मिट्टी एवं रेतीली दोमट मिट्टी में इसकी खेती से अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
Q: जेरेनियम किस पीएच मिट्टी को पसंद करते हैं?
A: जेरेनियम के पौधों को 6.0 से 7.5 पीएच स्तर वाली मिट्टी में लगाएं। इस सीमा के बाहर मिट्टी के पीएच से पोषक तत्वों की कमी और खराब वृद्धि हो सकती है। जिरेनियम लगाने से पहले मिट्टी के पीएच की जांच करना महत्वपूर्ण है।
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