जेरेनियम के प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन (Major diseases of geranium and their management)
जेरेनियम एक लोकप्रिय सजावटी पौधा है, जिसे बगीचों, घर के अंदर, और बालकनियों में लगाया जाता है। इसके फूल और पत्तियों की सुंदरता के कारण इसे काफी पसंद किया जाता है। हालांकि, कुछ प्रमुख बीमारियां इस पौधे को नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे उनकी सुंदरता और विकास प्रभावित होता है। इन बीमारियों की पहचान, कारण, और उनका नियंत्रण जानना बहुत जरूरी है। यहाँ प्रमुख बीमारियाँ और उनके नियंत्रण के विस्तृत उपाय दिए गए हैं।
जेरेनियम को प्रभावित करने वाले प्रमुख रोग (Major diseases affecting geraniums)
रूट रोट (जड़ गलन)
- जड़ों का काला पड़ना और सड़ना।
- पौधे की पत्तियां पीली हो जाती हैं और वह मुरझाने लगता है।
- गंभीर स्थिति में पूरा पौधा सूख जाता है।\
नियंत्रण:
- अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का उपयोग करें ताकि जड़ों के आसपास पानी जमा न हो।
- पानी देते समय ध्यान रखें कि मिट्टी केवल हल्की नम हो, अधिक गीली न हो।
- संक्रमित पौधों को जड़ सहित उखाड़कर तुरंत हटा दें और अन्य पौधों से दूर रखें।
- मेटालैक्सिल 8% + मैंकोज़ेब 64% WP (एक्सोटिक गोल्ड, मेटलमैन, टाटा मास्टर) दवा को 800 से 1250 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- मैंकोजेब 75% WP (धानुका M45, DeM-45): प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें। यह दवा व्यापक फफूंद रोगों के खिलाफ प्रभावी है।
- जेरेनियम में जड़ गलन रोग पर नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साबू, साफ़) दवा को 300 से 600 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- मेटलैक्सिल-एम 3.3% + क्लोरोथलोनिल 33.1% एससी (सिंजेन्टा फोलियो गोल्ड, डॉ ब्लाइट) दवा को 200 एम.एल. 100 लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में ड्रेंचिंग करें, यह जड़ों को फफूंद जनित रोगों से बचाता है।
- कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% WS (स्वाल इमिवैक्स, वीटा वैक्स) दवा को 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करें।
ब्लाइट (झुलसा रोग):
- पत्तियों और तनों पर भूरे और काले रंग के छोटे धब्बे बनते हैं।
- धीरे-धीरे ये धब्बे बड़े होकर पूरे पत्ते को ढक सकते हैं।
- पौधे के प्रभावित हिस्से सूखने लगते हैं और पौधा मुरझा जाता है।
- अगर नियंत्रण न किया जाए, तो यह पूरे पौधे को नष्ट कर सकता है।
नियंत्रण:
- जैसे ही रोग के लक्षण दिखें, संक्रमित पत्तियों और तनों को तुरंत हटा दें और उन्हें बगीचे से दूर फेंक दें।
- पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखें ताकि हवा का प्रवाह अच्छा हो और नमी का स्तर नियंत्रित रहे।
- पौधे को ऊपर से पानी देने के बजाय, जड़ों के पास पानी डालें ताकि पत्ते और तने गीले न हों।
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साफ, सिक्सर, साबू) दवा को 15 लीटर पानी में 30 ग्राम दवा मिलाकर छिड़काव करें।
- मैंकोजेब 75% WP (धानुका M45, DeM-45): प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें। यह दवा व्यापक फफूंद रोगों के खिलाफ प्रभावी है।
- एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% डब्ल्यू/डब्ल्यू एससी (अदामा कस्टोडिया, स्पेक्ट्रम) 300 एम.एल. प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।
- कैप्टन 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% WP (टाटा ताकत, किक) 200 से 400 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।
वर्टिसिलियम विल्ट (पीला मुरझाना रोग)
- पत्तियों के किनारों पर पीले धब्बे बनते हैं, जो बाद में पूरे पत्ते को प्रभावित करते हैं।
- तने में काले और भूरे रंग की धारियां दिखने लगती हैं।
- पौधे मुरझा जाते हैं और अंततः सूख जाते हैं।
नियंत्रण:
- संक्रमित और प्रभावित पौधों को जड़ सहित उखाड़कर हटा दें और नष्ट कर दें।
- अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी का प्रयोग करें और यह ध्यान रखें कि मिट्टी में पहले से फंगस न हो।
- कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% WS (स्वाल इमिवैक्स, वीटा वैक्स) दवा को 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करें।
- प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी (क्रिस्टल टिल्ट) दवा को 200 ग्राम प्रति एकड़ की दर छिड़काव करें।
- थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्लू / डब्लू (बायोस्टैड रोको) दवा को 250 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यू.पी. (कोनिका, रेफॉल) दवा को 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में छिड़काव करें।
- टेबुकोनाज़ोल 15% + जिनेब 57% डब्ल्यू.डी.जी. (गैंगो) दवा को 4 ग्राम एक किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें। इससे बीजों के सड़ने और अंकुरण के समय होने वाले फफूंद रोगों को रोकने में मदद करती है।
पाउडर फफूंदी (सफेद चूर्णिल आसिता):
- पत्तियों, तनों, और फूलों पर सफेद चूर्ण जैसा आवरण दिखाई देता है।
- प्रभावित पत्तियां मुरझाने लगती हैं और फूल झड़ने लगते हैं।
- पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
नियंत्रण:
- पौधों के बीच पर्याप्त दूरी बनाए रखें ताकि हवा का प्रवाह अच्छा रहे और पत्तियों के आसपास नमी जमा न हो, जिससे रोगों का खतरा कम हो।
- पत्तियों पर पानी न डालें, बल्कि पानी सीधे जड़ों में डालें ताकि पत्तियां सूखी रहें और फफूंदी जैसी बीमारियां न फैलाएं।
- ओवरहेड पानी देने से बचें, क्योंकि इससे पत्तियां और तने गीले हो सकते हैं, जिससे पाउडर फफूंदी जैसी समस्या बढ़ सकती हैं।
- सल्फर 85% DP को प्रति एकड़ 6-8 किलोग्राम की मात्रा में उपयोग करें। सल्फर पत्तियों और तनों पर जंग के धब्बों को नियंत्रित करता है और फसल की सुरक्षा में सहायक होता है।
- मैंकोजेब 75% WP (धानुका M45, DeM-45): प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें। यह दवा फफूंद रोगों के खिलाफ प्रभावी है।
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साफ, सिक्सर, साबू) दवा को 15 लीटर पानी में 30 ग्राम दवा मिलाकर छिड़काव करें।
- एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 8.3% + मैंकोजेब 66.7% WG (यूपीएल-अवांसर ग्लो, स्वाल डेल्मा) 600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
लीफ स्पॉट (पत्ती धब्बा रोग):
- पत्तियों पर छोटे-छोटे पीले धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में भूरे और काले रंग के हो जाते हैं।
- धब्बे आकार में बड़े होकर पत्तियों को सूखा और झुलसा देते हैं।
- पत्तियाँ धीरे-धीरे झड़ने लगती हैं।
नियंत्रण:
- संक्रमित पत्तियों को पौधे से अलग करें और उन्हें तुरंत जलाकर नष्ट करें ताकि रोग अन्य पौधों में न फैल सके।
- पानी देते समय ऊपर से देने के बजाय, सीधे जड़ के पास पानी डालें ताकि पत्तियां गीली न हों और बीमारियों का जोखिम कम हो सके।
- प्रभावित हिस्सों को समय पर हटाना और सही तरीके से पानी देना, पौधे की सेहत को बनाए रखने में मदद करता है।
- कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP (धानुका धनुकोप) दवा को 1 किग्रा प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें
- पाइराक्लोस्ट्रोबिन 20% डब्ल्यू.जी. (लाइन) 150-200 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से उपयोग करें।
क्या आप भी जेरेनियम की खेती करते हैं? और उनमें रोगों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions - FAQs)
Q: जेरेनियम को कौन-कौन से रोग होते हैं?
A: जेरेनियम में प्रमुख रूप से ब्लाइट (झुलसा रोग), रूट रोट (जड़ गलन), लीफ स्पॉट (पत्ती धब्बा रोग), वर्टिसिलियम विल्ट, और पाउडर फफूंदी जैसे रोग होते हैं। ये बीमारियां पत्तियों, तने और जड़ों को प्रभावित करती हैं, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और वह सूखने लगता है। इन रोगों से बचाव के लिए अच्छी देखभाल, जल निकासी, और उचित फफूंदनाशक का उपयोग जरूरी है।
Q: जेरेनियम को बढ़ने में कितना समय लगता है?
A: जेरेनियम के पौधे धीमी गति से बढ़ते हैं। बारिश के मौसम में फूल वाले पौधे पैदा करने के लिए जेरेनियम के बीज फरवरी की शुरुआत से मध्य फरवरी में बोए। इसके बीजों को अंकुरित होने में लगभग 4 से 6 सप्ताह लगते हैं और परिपक्वता तक पहुंचने और फूल शुरू करने के लिए 8 से 13 सप्ताह लगते हैं।
Q: जेरेनियम के लिए कौन सी मिट्टी सबसे अच्छी है?
A: जेरेनियम की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली मिट्टी जो कार्बनिक पदार्थों से भरपूर हो वह उपयुक्त मानी गयी है। जीरियम के लिए आदर्श मिट्टी दोमट मिट्टी है जिसका पीएच मान 6.0 से 6.5 के बीच हो और थोड़ी अम्लीय होती है। जेरेनियम ऐसी मिट्टी पसंद करते हैं जो नम हो लेकिन जलभराव न हो, इसलिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मिट्टी में अच्छी जल निकासी हो।
Q: जेरेनियम का तेल कैसे निकाला जाता है?
A: जेरेनियम तेल जेरेनियम पौधे की पत्तियों और तनों से भाप आसवन द्वारा निकाला जाता है। पौधे को पूरी तरह खिलने पर काटा जाता है, पत्तियों और तनों को सुखाया जाता है, और भाप आसवन से तेल निकाला जाता है। यह तेल सुगंध, अरोमाथेरेपी, और स्किनकेयर उत्पादों में इस्तेमाल होता है, इसकी मीठी खुशबू और विश्राम को बढ़ावा देने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध है।
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