गन्ने में बेहतर फुटाव के लिए ऐसे करें पेड़ी प्रबंधन

गन्ने में फसल की पहली कटाई के बाद उसके बीज से होने वाली दूसरी फसल को पेड़ी कहते हैं। पेड़ी फसल की विशेषता यह है कि जब गन्ने की कटाई की जाती है तो बची हुई जड़ के बरकरार रहने से द्वितीय वर्ष टहनियों से नई शाखाएं निकलती हैं और अगले वर्ष इससे दूसरी फसल काटी जा सकती है। इस प्रकार, लगभग 2-3 फ़सलें गन्ने की एक फसल से ली जा सकती हैं। गन्ने की फसल में दूसरी फसल की पैदावार सामान्यतः पहली पैदावार से कम होती है। लेकिन पेड़ी की फसल में पैदावार कितनी कम हो सकती है यह पूरी तरह से फसल की देखरेख और उचित खाद प्रबंधन पर निर्भर करता है। गन्ना एक लंबी अवधि वाली फसल है जिसके कारण देखरेख एवं उर्वरक की आवश्यकता भी अधिक होती है। जहां पेड़ी की फसल में यह आवश्यकता और भी अधिक बढ़ जाती है।
गन्ना एक संपूर्ण फसल है और पहली फसल की कटाई के बाद मिट्टी में अधिकांश पोषक तत्व समाप्त हो जाते हैं। इसके अलावा, मिट्टी के भौतिक-रासायनिक गुणों में भी काफी हद तक परिवर्तन देखा जाता है। तो अगर आप भी गन्ने के पेढ़ी में अच्छी बढ़वार पाना चाहते हैं, तो पेड़ी की देखरेख और उचित खाद प्रबंधन से जुड़ी जानकारी यहां से देखें।
पेड़ी की फसल में ध्यान रखने योग्य बातें
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बेहतर फुटाव के लिए फसल की कटाई जमीन से करें।
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पहली फसल की कटाई के बाद खेत से पत्तियां हटा लें और तुरंत सिंचाई कर दें।
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यदि गन्ने के बीच 3 फीट से अधिक स्थान खाली हो तो, उसी किस्म के अंकुरित बीज लगाकर खाली जगह भर दें।
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यदि पहली फसल पर कीट और रोगों का प्रकोप रहा हो तो, बुवाई से पहले खेत में कीटनाशक का छिड़काव जरूर करें।
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मानसून से पहले खूड़ों पर मिट्टी चढ़ा लें।
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लाल सड़न, उकठा और कंड जैसे रोग लगे होने पर पेड़ी का प्रयोग न करें।
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खेत में नमी बनाए रखने और खरपतवार नियंत्रण के लिए सूखी पत्तियों को कतारों के बीच फैला दें।
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पत्तियों में रोग और कीट के लक्षण होने पर उन्हें जला दें।
पेड़ी में खाद प्रबंधन
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खेत साफ करने के बाद प्रति एकड़ 5 टन गोबरखाद डालें।
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एक एकड़ में 40-50 किलोग्राम यूरिया,70-80 किलोग्राम डीएपी और 50-60 किलोग्राम एमओपी का प्रयोग करें।
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नाइट्रोजन को तीन भागों में बाटें। पहला भाग कटाई के बाद एवं बाकी की मात्रा को 2 महीनों के अंतराल पर डालते रहें।
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मिट्टी में जिंक की कमी होने पर 10-15 किलोग्राम जिंक सल्फेट की मात्रा को एक एकड़ के अनुसार डालें।
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मिट्टी की जांच अवश्य करा लें और आवश्यकता के अनुसार ही खाद का प्रयोग करें।
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