गोभी: उकठा रोग का करें प्रबंधन

गोभी की फसल में फफूंद जनित रोगों का प्रकोप अधिक होता है। इन रोगों में उकठा रोग भी शामिल है। इस रोग के फफूंद मिट्टी में कई सालों तक जीवित रहते हैं। ये फफूंद बहुत तेजी से फैलते हुए फसल को कम समय में अधिक प्रभावित करते हैं। गोभी की फसल किसी भी अवस्था में इस रोग से प्रभावित हो सकती है। इस रोग के कारण गोभी की उपज में 10 से 15 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। गोभी की बुवाई के 30 दिनों से ले कर पशुओं में फल आने तक उकठा रोग का प्रकोप अधिक होता है। मिट्टी में नमी बढ़ने पर और 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होने पर यह रोग तीव्र गति से फैलता है। गोभी के अलावा टमाटर, चना, मटर, मिर्च, बैंगन, आदि कई फसलों को प्रभावित करता है।
उकठा रोग से होने वाले नुकसान
- इस रोग की शुरुआती अवस्था में पौधे के निचले पत्ते सूख कर मुरझाने लगते हैं।
- संक्रमण बढ़ने पर पूरा पौधा पूर्ण रूप से सुख कर मुरझा जाता है।
- पौधों में यदि फल आ गए हैं तो फलों पर भी इस रोग के लक्षण नजर आ सकते हैं।
- गोभी के फलों पर भूरे-काले धब्बे नजर आ सकते हैं।
उकठा रोग पर कैसे करें नियंत्रण?
- फसल को इस रोग से बचाने के लिए रोग रहित बीज का चयन करें।
- फसल चक्र अपनाएं।
- इस रोग से प्रभावित खेत में गोभी की खेती करने से बचें।
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प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) से उपचारित
करें। - बुवाई से पहले प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50% मिला कर प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करें।
- इसके अलावा 3 लीटर पानी में 1 ग्राम कासुगामाइसिन मिला कर प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करें।
उकठा रोग पर नियंत्रण के लिए आप क्या तरीका अपनाते हैं? अपने जवाब एवं अन्यभाव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं कमेंट करना न भूलें।
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