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होली के रंग किसानों के संग
होली के रंग किसानों के संग
होली वसंत ऋतू में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। हर तबके के लोग इस त्योहार को बड़े हर्षोल्लास से मानते हैं। होली मानाने के पीछे कई कारण एवं पौराणिक कथाएं हैं। जिनमे प्रहलाद और होलिका की कहानी सबसे अधिक प्रचलित है। लेकिन क्या आप जानते हैं होली मानाने का एक कारण फसलों और किसानों से भी जुड़ा है? इस समय वसंत की फसल पकने लगती है। खेतों में गेहूं की बालियां लहराने लगती हैं। बागों में रंग-बिरंगे फूल प्रकृति की सुंदरता को और बढ़ाते हैं। ऐसे में फसलों की अच्छी पैदावार होने की खुशी में होली का त्योहार मनाया जाता है। इसलिए होली को कई क्षेत्रों में वसंत उत्सव के नाम से भी जाना जाता है।
केवल इतना ही नहीं, रंगों को बनाने में भी विभिन्न फसलों एवं फूलों का विशेष महत्व है। पहले होली के लिए गुलाल टेसू और पलाश के फूलों से तैयार किए जाते थे। अलग-अलग रंगों को तैयार करने के लिए हल्दी, चुकंदर, चंदन, गेंदे के फूल एवं अड़हुल के फूलों का भी प्रयोग किया जाता था। लेकिन अब टेसू और पलाश के फूलों की जगह हानिकारक रसायनों ने ले ली है। हालांकि प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए रंग स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभदायक है।
इस खुशियों के त्योहार के साथ कोरोना एक बाद फिर दस्तक दे रही है। कई राज्यों में लॉकडाउन होने के कारण सार्वजनिक स्थानों पर होली मिलन समारोह के आयोजन में बाधा आ रही है। कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप को ध्यान में रखते हुए अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए सामाजिक दूरी का ध्यान रखें एवं डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी किए गए सभी नियमों का पालन भी करें।
आइए खुशियों से भरे इस त्योहार को हम सभी साथ मिल कर मनाएं। एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाएं। खेतों में लहराते फसलों की खुशियां मनाएं।
आपकी सुरक्षा की कामना करते हुए देहात की तरफ से आप सभी को होली के इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं!
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