कुलथी की खेती | Horse gram Cultivation
कुलथी एक प्रमुख दलहन फसल है जिसकी खेती भारत में प्राचीन समय से ही की जाती आ रही है। इसकी खेती खरीफ और रबी दोनों मौसम में की जा सकती है। भारतीय कृषि में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसकी खेती से न केवल किसानों को लाभ होता है, बल्कि यह पूरे क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। प्रोटीन, आयरन और कैल्शियम का अच्छा स्रोत होने के कारण कुलथी के दानों का उपयोग विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों में किया जाता है। इसके अलावा कुलथी का उपयोग पशु आहार के रूप में भी किया जाता है। कुलथी की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प हो सकता है। यह फसल कम सिंचाई में भी अच्छी उपज देती है। सही तकनीकों और समय पर देखभाल से कुलथी की खेती से अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। इसकी खेती की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
कुलथी की खेती कैसे करें? | How to cultivate horse gram
- कुलथी की खेती के लिए जलवायु: पौधों के विकास के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए 20 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान आदर्श माना जाता है। पौधों के विकास के लिए प्रति दिन 6-8 घंटे धूप की आवश्यकता होती है। इसके पौधे पाले के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- उपयुक्त मिट्टी: इसकी खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों से समृद्ध अच्छी जल-धारण क्षमता वाली मिट्टी में इसकी खेती करें। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। कुलथी की फसल थोड़ी अम्लीय से थोड़ी क्षारीय मिट्टी को सहन कर सकती है, लेकिन अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी में पौधों का उचित विकास नहीं हो पाता है। जल जमाव वाले क्षेत्र में इसकी खेती न करें।
- बुवाई का उपयुक्त समय: उत्तर भारत में कुलथी की बुवाई मार्च-अप्रैल महीने में की जाती है। दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में इसकी बुवाई मई-जून के महीने में की जाती है। मौसम के अनुसार बुवाई के समय में थोड़ी भिन्नता हो सकती है।
- बीज की मात्रा एवं बीज उपचार: सामान्यतः प्रति एकड़ खेत में 8 से 10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज की मात्रा कुलथी की किस्में, मिट्टी, वातावरण, आदि के अनुसार थोड़ी कम या अधिक हो सकती है। बुवाई से पहले कवक नाशक दवा से बीज उपचार करें। इससे फसल को कई रोगों से बचाया जा सकता है।
- खेत की तैयारी: खेत तैयार करते समय सबसे पहले एक बार 15-20 सेंटीमीटर गहरी जुताई करें। इसके बाद भूमि को समतल करें। अन्य दलहन फसलों की तरह कुलथी की फसल को भी नाइट्रोजन युक्त उर्वरक की आवश्यकता कम होती है। खेत में उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले मिट्टी की जांच करना आवश्यक है। इससे मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों की सटीक जानकारी मिलती है और इस जानकारी के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग कर के हम बेहतर फसल प्राप्त कर सकते हैं। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। जल जमाव होने पर जड़ गलन की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- बुवाई की विधि: बीज की बुवाई पक्तियों में करें। सभी पक्तियों के बीच 30-45 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए। पौधों से पौधों के बीच की दूरी 10-15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। बीज की बुवाई 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में करें। इससे अधिक गहराई में बुवाई करने पर बीज को अंकुरित होने में कठिनाई होती है।
- सिंचाई प्रबंधन: कुलथी की खेती में सिंचाई की आवृत्ति और मात्रा मिट्टी के प्रकार, जलवायु और फसल के विकास के चरण पर निर्भर करती है। सामान्यतः पौधों के विकास के चरण में हर 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। पौधों में फूल आने और फलियों के बनने के समय हर 15-20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। फसल की कटाई से 2-3 सप्ताह पहले सिंचाई का कार्य बंद कर दें, इससे फलियां अच्छी तरह सूख जाती हैं।
- खरपतवार नियंत्रण: कुलथी की फसल में खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई करें। मल्चिंग भी खरपतवार नियंत्रण का एक प्रभावी तरीका है। इसके लिए पौधों के चारों ओर की मिट्टी को कार्बनिक पदार्थों जैसे पुआल, पत्तियों या घास की कतरनों की एक परत से ढकें। खरपतवारों की समस्या अधिक होने पर रासायनिक खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं।
- रोग एवं कीट नियंत्रण: कुलथी की फसल चूर्णिल आसिता रोग, पत्ती धब्बा रोग, जड़ गलन रोग, फली छेदक कीट, तना छेदक कीट, माहु, जैसे रोगों एवं कीटों के प्रति अधिक संवेदनशील होती है। फसल को सुरक्षित रखने के लिए लगातार निरीक्षण करते रहें और किसी भी रोग या कीट के प्रकोप का लक्षण नजर आते ही तुरंत उपयुक्त दवाओं का प्रयोग करें। रासायनिक दवाओं के प्रयोग से पहले कृषि विशेषज्ञों से अवश्य परामर्श करें।
- फसल की कटाई: बुवाई के करीब 90-120 दिनों में फसल पक कर तैयार हो जाती है। सामान्य तौर पर फसल की कटाई अगस्त से अक्टूबर महीने के बीच की जाती है। जब पौधों में लगी हुई फलियां भूरी हो कर सूख जाएं और बीज परिपक्व एवं सख्त हो जाएं, तब फसल की कटाई कर लेनी चाहिए।
दलहन फसलों में क्या आपने कभी कुल्थी की खेती की है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की जानकारियों के लिए ‘कृषि ज्ञान’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस जानकारी को अधिक से अधिक व्यक्तियों तक पहुंचने के लिए इस पोस्ट को अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: कुलथी कब बोई जाती है?
A: कुलथी, जिसे हॉर्स ग्राम के रूप में भी जाना जाता है, आमतौर पर भारत में खरीफ के मौसम के दौरान बोया जाता है, जो जून से जुलाई तक होता है। फसल को परिपक्व होने में लगभग 90-120 दिन लगते हैं और अक्टूबर-नवंबर में काटा जाता है।
Q: कुलथी की खेती कैसे की जाती है?
A: कुलथी की खेती आमतौर पर भारत में वर्षा आधारित फसल के रूप में की जाती है। बीजों को सीधे खेत में 3-4 सेंटीमीटर की गहराई और पंक्तियों के बीच 30-45 सेंटीमीटर की दूरी पर बोया जाता है। फसल को न्यूनतम सिंचाई की आवश्यकता होती है। भूमि उपयोग और उपज को अधिकतम करने के लिए इसकी बुवाई अक्सर मक्का या ज्वार जैसी अन्य फसलों के साथ की जाती है।
Q: कुल्थी का पौधा कैसे होता है?
A: कुल्थी एक फली वाली दलहन फसल है। इसके पौधे भूमि की सतह से करीब 60-70 सेंटीमीटर ऊंचाई तक बढ़ सकते हैं। पौधों में पीले रंग के छोटे फूल खिलते हैं। फलियों के अंदर छोटे एवं अंडाकार दाने होते हैं।
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