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ग्रीनहाउस में कैसे करें स्ट्रॉबेरी की खेती? (How to cultivate strawberries in greenhouse?)
भारत में स्ट्राबेरी का उत्पादन पर्वतीय भागों में नैनीताल, देहरादून, हिमाचल प्रदेश, महाबलेश्वर, महाराष्ट्र, नीलगिरी, दार्जलिंग जैसी पहाड़ी क्षेत्रों में किया जाता है। वैसे स्ट्रॉबेरी की खेती अब मैदानी क्षेत्रों में भी होने लगी है जैसे - दिल्ली, बंगलौर, जालंधर, मेरठ, पंजाब, हरियाणा आदि।
ग्रीनहाउस में स्ट्रॉबेरी की खेती करते समय इन बातों का ध्यान रखें (Keep these things in mind while cultivating strawberries in greenhouse)
मिट्टी: स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली मिट्टी का चयन करें जिसमें कार्बनिक पदार्थों की भरपूर मात्रा उपलब्ध होती है। स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए मिटटी का पीएच मान 5.5-6.5 आदर्श होता है।
तापमान: स्ट्रॉबेरी के पौधों को दिन में 20-25 डिग्री सेल्सियस और रात के समय 15-18 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा माना जाता है। इससे ज्यादा तापमान स्ट्रॉबेरी की फसल के लिए नुकसान करता है और इससे फसल के विकास और उपज को प्रभावित करता है।
उन्नत एवं उचित किस्मों का चयन: स्ट्रॉबेरी की ऐसी किस्मों का चुनाव करें जो ग्रीनहाउस की खेती के लिए उपयुक्त हो। ग्रीनहाउस खेती के लिए स्ट्रॉबेरी की कुछ लोकप्रिय किस्मों में चैंडलर, स्वीट चार्ली और कैमरोसा शामिल हैं। इसके अलावा स्ट्रॉबेरी की कुछ अगेती उन्नत किस्में हैं- डगलस, गोरिल्ला, फर्न, अर्लिग्लो एवं तिओगा इसके अतिरिक्त स्ट्रॉबेरी की कुछ पछेती उन्नत किस्में हैं- चांडलर, डाना, सेल्भा एवं स्वीट चार्ली आदि।
प्रकाश: स्ट्रॉबेरी के पौधों को प्रति दिन कम से कम 12-16 घंटे प्रकाश की आवश्यकता होती है। यदि प्राकृतिक द्वारा प्रकाश पर्याप्त नहीं मिल पाता है, तो इसके लिए ग्रीनहाउस में ग्रो लाइट्स की व्यवस्था करनीं चाहिए।
सिंचाई : स्ट्रॉबेरी के पौधों को मिट्टी में नमी रखने के लिए खेत की मिटटी और फसल की जरूरत के अनुसार पानी देने की आवश्यकता होती है लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए की जलभराव न हो पाए। इसमें स्प्रिंक्लर विधि द्वारा पानी देने से बचें क्योंकि इससे फफूँदजनित बीमारी लगने की सम्भावना होती है। इसलिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का उपयोग करना चाहिए ताकि पानी की बचत के साथ रोगों से भी फसलों को सुरक्षित किया जा सके।
खाद : जल में घुलनशील उर्वरक, जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सूक्ष्म तत्वों को सप्ताह में एक दिन ड्रिप सिस्टम के द्वारा सिंचाई के पानी के साथ फसलों में दें।
खेत की तैयारी : स्ट्रॉबेरी के फल काफी नाजुक होते हैं। इसके लिए फल एवं पौधे के पत्ती और तनें को सीधे पानी देना अच्छा होता है। एक एकड़ खेत में ड्रिप विधि से सिंचाई करने पर लगभग 40-65 हजार तक का खर्च हो जाता है। स्ट्रॉबेरी की रोपाई करने से पहले खेत की अच्छे से जुताई करें और उसके बाद पाटा चला कर खेत को समतल कर लें। खेत तैयार करते समय 40 सें.मी. की दूरी पर 20-25 सें.मी. ऊँची और एक मीटर चौड़ी क्यारियाँ तैयार कर लें। इसके अलावा पीट मॉस, पेर्लाइट और वर्मीक्यूलाइट को बराबर भागों में मिलाकर मिट्टी तैयार करें। स्ट्रॉबेरी के पौधों को उठी हुई क्यारियों या कंटेनरों में ही लगाएं। ध्यान रखें मिट्टी में नमी समान होनी चाहिए और जलभराव नहीं होना चाहिए।
खरपतवार प्रबंधन : स्ट्रॉबेरी में मल्चिंग शीट का प्रयोग करें इसको लगाने से खेतों में खरपतवारों के उगने की समस्या नहीं आती इसके अलावा बुवाई से पहले खेतों में 25 दिन के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करते रहें। अगर फसल में खरपतवार न दिखें तो महीनें में एक बार निराई करें पर अगर खेत में खरपतवारों का प्रकोप दिखता है तो फिर कृषि वैज्ञानिक की सलाह से उचित खपतवारनाशी का प्रयोग करें।
कीट और रोग नियंत्रण: स्ट्रॉबेरी की फसल में कीटों और रोगों की जांच करते रहें और फसलों को इनसे सुरक्षित करने के लिए उचित दवाओं का उपयोग करें। इसमें एफिड्स, माइट्स और थ्रिप्स जैसे चूसक कीट आमतौर पर लगते हैं। और अगर रोगों की बात करें तो इसमें फफुन्जानित बीमारियां जैसे पाउडर फफूंदी और झुलसा जैसे रोग शामिल हैं।
ग्रीनहाउस में स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लाभ :
- तापमान नियंत्रण: ग्रीनहाउस में तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे स्ट्रॉबेरी की फसल को एक अनुकूल मौसम प्राप्त होता है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।
- कीटों और रोगों का नियंत्रण: ग्रीनहाउस में स्ट्रॉबेरी को सुरक्षित रखने के लिए कीट और रोग प्रतिरोधी उपाय किये जाते हैं ताकि कीट या रोग फसल तक न पँहुचे।
- समर्थ उत्पादन: ग्रीनहाउस में उत्पादित फसलों का उत्पादन साल भर में संभव होता है, जिससे उत्पादकता बढ़ती है और आय में वृद्धि होती है।
- पानी और ऊर्जा की बचत: ग्रीनहाउस में स्थानीय स्तर पर पानी और ऊर्जा की बचत होती है, जो पर्यावरण के प्रति उत्साहित करती है।
- उत्तम गुणवत्ता और उत्पाद: ग्रीनहाउस में खेती करने से फसलों की गुणवत्ता में सुधार होता है, जिससे वे बाजार में अधिक मूल्यवान होती हैं।
- आर्थिक लाभ: ग्रीनहाउस खेती से किसान अधिक आय कमा सकते हैं, क्योंकि उत्पादन में वृद्धि होती है और बाजार में अधिक लाभप्रद फसलें उत्पन्न होती हैं।
- पर्यावरण के प्रति उत्साह: ग्रीनहाउस खेती पर्यावरण को बचाने और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा देती है, क्योंकि यह प्रदूषण कम करती है और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कम करती है।
क्या आप भी ग्रीनहाउस में स्ट्रॉबेरी की खेती करना चाहते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs )
Q: स्ट्रॉबेरी का पौधा कितने दिन में फल देता है?
A: आप स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए 1 एकड़ में लगभग 22000 पौधे लगा सकते हैं। बुवाई से लगभग 40 से 50 दिनों में ही इसका पौधा फल देना प्रारम्भ कर देता है जो किस्मों के ऊपर भी निर्भर करता हैं।
Q: स्ट्रॉबेरी कौन से महीने में लगाई जाती है?
A: स्ट्रॉबेरी की रोपाई सितम्बर से नवम्बर के महीनें में की जा सकती है। अगर अगेती किस्मों की बुवाई करते हैं तो इनसे दाम तो अच्छा मिलता है पर सितम्बर के महीनें में तापमान ज्यादा होने के कारण लगभग 15 से 20 प्रतिशत तक पौध मर जाते है। इसलिए अगर आप ग्रीनहाउस में खेती करते हैं तो आपके लिए उचित हैं परन्तु अगर सीधे खेतों में करते हैं खेती तो आपके लिए बेहतर यह होगा कि अक्टूबर में ही फसल की रोपाई करें।
Q: स्ट्रॉबेरी की खेती कहाँ होती है
A: स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए ठंडी जलवायु वाले क्षेत्र उचित होते हैं। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ऊपरी हिस्सों में की जाती है। इसे पहाड़ी और ठंडे इलाकों में बोया जाता है इसके अलावा अभी महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों के किसान भी अब स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं।
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