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हरी मटर : आर्द्रगलन रोग (रूट रॉट) से बचाव
हरी मटर : आर्द्रगलन रोग (रूट रॉट) से बचाव
रूट रॉट रोग को आर्द्र गलन रोग के नाम से भी जाना जाता है। मटर की फसल को इस रोग से काफी नुकसान होता है। लेकिन यदि इस रोग का सही तरह से प्रबंध किया जाए तो पौधों को इस रोग से बचाने के साथ हम अच्छी गुणवत्ता की फसल भी प्राप्त कर सकेंगे। अगर आप कर रहे हैं मटर की खेती और फसल में भी दिख रहे हैं इस रोग के लक्षण तो यहां से इसके बचाव के उपाय की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
रोग का लक्षण
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यह एक मृदा जनित रोग है।
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वातावरण में अधिक आर्द्रता होने पर यह रोग ज्यादा तेजी से फैलते हैं।
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आमतौर पर इस रोग का प्रकोप छोटे पौधों में अधिक देखने को मिलता है।
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इस रोग से प्रभावित पौधों की निचली पत्तियां हल्के पीले रंग की होने लगती हैं।
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कुछ समय बाद पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं।
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पौधों को उखाड़ कर देखा जाए तो उसके जड़ सड़े हुए दिखते हैं।
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रोग से प्रभावित पौधे सूखने लगते हैं। इससे उत्पादन में भारी कमी आती है।
बचाव के उपाय
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इस रोग से बचने के लिए बीज को उपचारित करना बहुत जरूरी है।
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बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम बाविस्टिन से उपचारित करें।
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इसके अलावा प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम कार्बेन्डाज़िम या थीरम से भी उपचारित कर सकते हैं।
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इस रोग पर नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाएं।
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खेत में जलजमाव की स्थिति न होने दें।
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