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10 Oct
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ईसबगोल की खेती | Isabgol Cultivation

ईसबगोल यानी सिलीयम हस्क एक प्रमुख औषधीय फसल है, जिसका उपयोग कब्ज, पेट के रोगों और आंतों की सफाई के लिए किया जाता है। यह फसल मुख्यतः भारत में गुजरात, राजस्थान, और हरियाणा जैसे सूखे इलाकों में उगाई जाती है। ईसबगोल के बीजों से प्राप्त होने वाला छिलका अपने विशेष औषधीय गुणों के कारण काफी मूल्यवान होता है। इसकी खेती किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प बनती जा रही है, क्योंकि इसका बाजार मूल्य काफी अच्छा है। इस पोस्ट के माध्यम से ईसबगोल की खेती के लिए उपयुक्त समय, मिट्टी एवं जलवायु, बीज की मात्रा, सिंचाई प्रबंधन जैसी अन्य जानकारियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

ईसबगोल की खेती कैसे करें? | How to Cultivate Isabgol (Psyllium husk)

  • ईसबगोल की खेती के लिए उपयुक्त समय: इसकी बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से नवम्बर के बीच होता है। इस समय मौसम ठंडा होता है, जो इसकी बेहतर वृद्धि के लिए अनुकूल है।
  • उपयुक्त जलवायु: ईसबगोल की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इस फसल को न ज्यादा बारिश चाहिए होती है और न ही अधिक गर्मी। ईसबगोल के बीजों की अंकुरण के लिए 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। इसके बाद की वृद्धि के लिए 15-30 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान ठीक होता है। ज्यादा बारिश इसकी खेती के लिए नुकसानदायक हो सकती है।
  • उपयुक्त मिट्टी: इसकी खेती के लिए उचित जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त है। मिट्टी का पीएच स्तर 7 से 8 के बीच होना चाहिए। अगर मिट्टी ज्यादा अम्लीय या क्षारीय हो तो फसल की उपज कम हो सकती है।
  • बेहतरीन किस्में: इसकी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए गुजरात ईसबगोल 1 (GI 1), गुजरात ईसबगोल 2 (GI 2), जवाहर ईसबगोल 4 (MIB4), हरियाणा ईसबगोल (HI 5), निहारिका, आदि किस्मों का चयन कर सकते हैं।
  • बीज की मात्रा: बीज की मात्रा इसकी किस्मों, मिट्टी और जलवायु के अनुसार भिन्न हो सकती है। सामान्य तौर पर प्रति एकड़ खेत में करीब 1.2 से 1.6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • खेत तैयार करने की विधि: सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से 1 बार गहरी जुताई करें। इसके बाद 2-3 बार हल्की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाएं। इसके बाद खेत को रोटावेटर की सहायता से समतल करें। आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 4-6 टन गोबर की खाद का प्रयोग करें।
  • बुवाई की विधि: बीज की बुवाई कतारों में करें। सभी कतारों के बीच करीब 12 इंच की दूरी होनी चाहिए। वहीं पौधों से पौधों के बीच की दूरी करीब 2 इंच होनी चाहिए।
  • सिंचाई प्रबंधन: बलुई दोमट मिट्टी में सामान्यतौर पर 3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। बुवाई के 30 दिनों बाद दूसरी बार सिंचाई करें। बुवाई के 70 दिनों बाद फसल में तीसरी सिंचाई करें। बीज के अनुकरण दर में कमी होने पर बुवाई के 6-7 दिनों बाद दूसरी सिंचाई की जा सकती है। सूखे क्षेत्रों में पूरी फसल के दौरान 6-7 बार सिंचाई की जा सकती है।
  • खरपतवार प्रबंधन: ईसबगोल में खरपतवार नियंत्रण आमतौर पर हाथों से निराई करके किया जाता है। फसल की पूरी अवधि के दौरान 2-3 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। बुवाई के 20-25 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई करें। इसके अलावा खरपतवारों से छुटकारा पाने के लिए बुवाई से पहले खेत में सिंचाई करें। इससे खेत में पहले से मौजूद खरपतवारों के बीज अंकुरति हो जाते हैं। इसके बाद खेत में जुताई करें। इससे खरपतवार नष्ट हो जाएंगे। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि ते प्रक्रिया उन खेतों में प्रभावी हो सकती है जहां खरपतवारों की समस्या कम होती है। यदि खेत में खरपतवारों की समस्या अधिक होती है तो इसबगोल की बुवाई से पहले कृषि विशेषज्ञों की परामर्श के अनुसार उचित खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग करें।
  • रोग एवं कीट प्रबंधन: इस फसल में मृदुरोमिल आसिता रोग (डाउनी मिल्ड्यू) रोग का प्रकोप अधिक होता है। इसके अलावा माहु भी फसल को बुरी तरह नुकसान पहुंचाते हैं। इन रोग और कीट से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाएं। आवश्यकता होने पर उचित फफूंद नाशक दवाओं या कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करें।
  • फसल की कटाई: बुवाई के करीब 110-120 दिनों बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फसल तैयार होने के समय इसकी पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और बालियां भूरे रंग की हो जाती हैं। जब पौधा पूरी तरह सूख जाए और बीज गहरे भूरे रंग की हो जाएं तब फसल की कटाई करें। ठंड के मौसम में फसलों पर ओस (शीत) गिरती है। सुबह करीब 10 बजे के बाद ओस के सूखने के बाद इसकी कटाई करें। कटाई के बाद फसल को धूप में अच्छी तरह सूखाने के बाद थ्रेसिंग के लिए भेजें।

क्या आपके क्षेत्र में ईसबगोल की खेती की जाती है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: ईसबगोल की खेती कब और कैसे की जाती है?

A: इसबगोल की खेती मुख्य रूप से सर्दियों के मौसम के दौरान अक्टूबर से दिसंबर तक की जाती है। इसकी खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त है। फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। बुवाई के 100-120 दिनों के बाद फसल की कटाई की जा सकती है।

Q: इसबगोल को कितना पानी देना चाहिए?

A: सामान्य तौर पर इसबगोल की फसल को 3-4 सिंचाई की आवश्यकता होती है। लेकिन सूखे क्षेत्रों में 6-7 बार तक सिंचाई की जा सकती है।

Q: इसबगोल में कौन सा खाद डालना चाहिए?

A: इसबगोल की फसल में गोबर की खाद के साथ संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम का प्रयोग करना चाहिए। इससे पौधों का बेहतर विकास होता है और उपज भी अच्छी होती है।

Q: ईसबगोल की सबसे बढ़िया वैरायटी कौन सी है?

A: भारत में कई किस्मों के ईसबगोल की खेती की जाती है। जिनमें गुजरात ईसबगोल 1, निहारिका, हरियाणा ईसबगोल, जवाहर ईसबगोल 4, आदि कुछ प्रमुख किस्में हैं। इनकी खेती से आप बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं।

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