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27 May
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जैविक उर्वरकों से बढ़ाएं मिट्टी की उर्वरक क्षमता | Improve Soil Fertility with Organic Fertilizers

आधुनिक कृषि में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग व्यापक हो गया है, लेकिन इससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को भी काफी नुकसान होता है। रासायनिक उर्वरक सिंथेटिक सामग्रियों से तैयार किए जाते हैं और पौधों को तत्काल प्रभाव से पोषण प्रदान करते हैं। लेकिन लम्बे समय तक लगातार रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरता धीरे-धीरे कम होने लगती है। इसके साथ ही पर्यावरण पर भी इसके दुष्प्रभाव कम नहीं हैं। ऐसे में जैविक उर्वरकों का इस्तेमाल करना एक बेहतर विकल्प है। जैविक उर्वरक प्राकृतिक पदार्थ हैं जिनका उपयोग मिट्टी की उर्वरता और पौधों के विकास में सुधार के लिए किया जाता है। प्राकृतिक स्रोतों से तैयार होने के कारण ये पर्यावरण के अनुकूल हैं। आइए इस पोस्ट के माध्यम से फसलों में जैविक उर्वरकों के इस्तेमाल पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं।

कृषि में जैविक उर्वरकों का महत्व | Importance of Organic Fertilizers in Agriculture

  • जैविक उर्वरक प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं और पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।
  • जैविक उर्वरकों में पोषक तत्वों की एक विस्तृत श्रृंखला होती है जो पौधों के विकास के लिए आवश्यक होती हैं, जिनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम और सल्फर शामिल हैं।
  • इसके इस्तेमाल से मिट्टी में के सूक्ष्मजीवों को बढ़ाया जा सकता है।
  • जैविक उर्वरक मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले रासायनिक प्रदूषण के जोखिम को कम करने में सहायक है।
  • इन्हें विभिन्न स्रोतों जैसे पशुओं, पौधों, और फसलों के अवशेषों से प्राप्त/तैयार किया जा सकता है।
  • रसायन युक्त उर्वरकों के इस्तेमाल में कमी आती है।

जैविक उर्वरकों एवं रासायनिक उर्वरकों में अंतर | Difference Between Organic Fertilizer and Chemical Fertilizer

  • जैविक उर्वरक प्राकृतिक स्रोतों जैसे पशु खाद, हड्डी के चूरे, सूखी पत्तियां, घास, फसलों, फल एवं सब्जियों के  छिलकों से तैयार किए जाते हैं। वहीं रासायनिक उर्वरक सिंथेटिक सामग्री से बने होते हैं।
  • जैविक उर्वरक पोषक तत्वों को धीरे-धीरे और लगातार छोड़ते हैं और ये पौधों को पोषण का दीर्घकालिक स्रोत प्रदान करते हैं। इसके विपरीत रासायनिक उर्वरक पोषक तत्वों को जल्दी से छोड़ते हैं, पौधों को पोषण का तत्काल स्रोत प्रदान करते हैं।
  • जैविक उर्वरक मिट्टी के स्वास्थ्य और संरचना में सुधार करते हैं, जिससे पानी और पोषक तत्वों को बनाए रखने की क्षमता बढ़ जाती है। रासायनिक उर्वरक मिट्टी के स्वास्थ्य और संरचना के लिए हानिकारक हो सकते हैं, क्योंकि लम्बे समय तक इसका इस्तेमाल मिट्टी के अम्लीकरण और पोषक तत्वों की कमी का कारण बन सकता है।
  • हानिकारक रसायन नहीं होने के कारण जैविक उर्वरकों के इस्तेमाल से पर्यावरण पर किसी तरह का दुष्प्रभाव नहीं होता है। वहीं रासायनिक उर्वरक पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसके इस्तेमाल से जल प्रदुषण, वायु प्रदुषण एवं मिट्टी प्रदुषण की संभावना बढ़ जाती है।
  • जैविक उर्वरकों को घर में आसानी से उपलब्ध होने वाले पदार्थों से तैयार किया जा सकता है। जिससे इसकी लागत बहुत कम होती है। बात करें रासायनिक उर्वरकों की तो यह अपेक्षाकृत महंगे होते हैं।

खेत में जैविक उर्वरकों के प्रयोग से होने वाले लाभ | Benefits of Using Organic Fertilizers in the Field

  • जैविक उर्वरक मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों को बढ़ाकर मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करते हैं, जो मिट्टी की संरचना, जल-धारण क्षमता और पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाता है।
  • फसलों में पोषक तत्वों की कमी दूर होती है।
  • लगातार जैविक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। जिससे किसान अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं।
  • कुछ जैविक उर्वरकों को बहुत कम खर्च में घर पर तैयार किया जा सकता है। जिससे कृषि इनपुट में होने वाली लागत में कमी आती है।
  • यह फसलों के स्वाद, सुगंध और पोषण मूल्य को बढ़ाकर फसल की गुणवत्ता में सुधार करने में सहायक है।
  • इसके इस्तेमाल से मिट्टी के कटाव को कम करते हुए मिट्टी की संरचना में सुधार होता है।
  • जैविक उर्वरकों के इस्तेमाल से मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है।

जैविक उर्वरकों का मुख्य स्रोत क्या है? | Main Sources of Organic Fertilizers

जैविक उर्वरकों के कुछ मुख्य स्रोत निम्न प्रकार हैं।

  • पशु खाद: पशु खाद नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत है। इसे गाय, भैंस, मुर्गी, मछली एवं अन्य पशुओं से प्राप्त किया जाता है। उदहारण के लिए, गाय का गोबर एवं बेहतरीन जैविक खाद है। यह आमतौर पर फसलों के लिए उर्वरक के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • खाद: खाद कार्बनिक पदार्थों जैसे खाद्य पदार्थ, सूखी पत्तियां और लकड़ियां, घास की कतरनों, फल एवं सब्जियों के छिलकों, आदि से बनाई जाती है। यह एक पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी संशोधन है जिसका उपयोग मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए किया जा सकता है।
  • हरी खाद: हरी खाद प्राप्त करने के लिए अल्फाल्फा, तिपतिया घास, फलियों वाली फसलें, राई, मक्का, जैसी फसलों को लगाया जाता है। परिपक्वता तक पहुंचने से पहले ही इन फसलों की जुताई करके मिट्टी में मिला दिया जाता है। यह मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्व को बढ़ने में सहायक है।
  • मछली पायस: मछली पायस मछली अपशिष्ट से बना है और नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्वों का एक अच्छा स्रोत है। यह आमतौर पर पौधों के लिए तरल उर्वरक के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • बोन मील: इसे पशुओं की हड्डियों से तैयार किया जाता है और यह फास्फोरस और कैल्शियम का एक अच्छा स्रोत है। यह आमतौर पर फूलों के पौधों और सब्जियों के लिए उर्वरक के रूप में उपयोग किया जाता है।

आप फसलों में जैविक उर्वरकों एवं रासायनिक उर्वरकों में से किसका प्रयोग करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और अधिक से अधिक किसानों के साथ शेयर भी करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: जैविक उर्वरक मिट्टी की उर्वरता कैसे बढ़ाते हैं?

A: जैविक उर्वरक धीमी गति से लगातार में मिट्टी को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करके मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं। यह मिट्टी की संरचना, जल-धारण क्षमता और पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार करते हैं। जैविक उर्वरक मिट्टी में लाभकारी सूक्ष्मजीवों के विकास को भी बढ़ावा देते हैं, जो कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने में मदद करते हैं।

Q: मिट्टी की उर्वरक क्षमता कैसे बढ़ाएं?

A: मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के कई तरीके हैं। जिसमें जैविक उर्वरकों का प्रयोग, फसल चक्र अपनाना, कवर फसलों की खेती, मल्चिंग, आदि शामिल है। इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल से बचें। जहां तक संभव हो खेत की अधिक जुताई करने से भी बचें।

Q: जैव उर्वरक बनाने की विधि क्या है?

A: सभी जैव उर्वरकों को बनाने की प्रक्रिया अलग होती है। इसे तैयार करने से पहले मिट्टी के प्रकार और फसलों के प्रकार पर ध्यान देना चाहिए और इसके अनुसार ही सामग्रियों एवं विधि का चयन करें।

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