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कृषि ज्ञान
7 Aug
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इस मौसम करें पेठे की खेती, होगी अच्छी पैदावार | Ash Gourd Cultivation

पेठा कुम्हड़ा, सफेद कद्दू, व्हाइट पंपकिन, ऐश गॉर्ड, आदि कई नामों से प्रचलित है। पेठा कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाली सब्जियों में शामिल है। इसके कच्चे फलों से ज्यादातर सब्जी बनाई जाती है। वहीं पके फलों का उपयोग मिठाई बनाने में किया जाता है। यह एक ऐसी सब्जी है जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं। इस कारण इसकी बाजार मांग भी बनी रहती है। यदि आप पेठे की खेती करना चाहते हैं तो यहां से इसकी खेती के लिए उचित समय, उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु, खेत तैयार करने की विधि, सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण, आदि जानकारियां यहां से प्राप्त करें।

कैसे करें पेठे की खेती? | How to Cultivate Ash Gourd

  • पेठे की खेती के लिए उपयुक्त समय: पेठे की खेती गर्मी एवं वर्षा ऋतु दोनों में की जाती है। गर्मी की फसल के लिए बीजों की बुवाई फरवरी माह के अंत से मध्य मार्च तक करनी चाहिए। वर्षा ऋतु की फसल के लिए बीज की बुवाई जून के आखिरी सप्ताह से जुलाई के मध्य तक की जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च महीने के बाद इसकी बुवाई की जाती है।
  • उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु: अच्छी  पैदावार के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है। गर्मी में खेती की जाने वाली किस्मों के लिए भारी दोमट मिट्टी उपयुक्त है। वहीं जायद में खेती करने वाले किसानों के लिए रेतीली बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त है। मिट्टी का पी.एच. स्तर 6 से 8 होना चाहिए। इसकी खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है। बीज को अंकुरित होने के लिए करीब 15 डिग्री सेंटीग्रेड की तापमान की आवश्यकता होती है। पौधों के अच्छे विकास के लिए करीब 25 से 27 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान बेहतर है।
  • बीज की मात्रा एवं बीज उपचार: प्रति एकड़ खेत में 1.2 से 1.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज की बुवाई से पहले बीज को कीटनाशक या फफूंदनाशक दवाओं से उपचारित करना जरूरी है। इससे पौधों को कई तरह के घातक रोगों एवं कीटों से बचाया जा सकता है।
  • खेत तैयार करने की विधि: सबसे पहले मिट्टी पलटने वाली हल से एक बार गहरी जुताई करें। इससे खेत में पहले से मौजूद खरपतवार एवं फसल फसलों के अवशेष नष्ट हो जाएंगे। इसके बाद 2 से 3 बार हल्की जुताई करें। जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 16 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद, 8 किलोग्राम नीम की खली एवं 12 किलोग्राम अरंडी की खली मिलाएं। इसके साथ प्रति एकड़ खेत में 88 किलोग्राम यूरिया, 140 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 40 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का भी प्रयोग करें। गर्मी के मौसम में खेती के लिए जुताई के बाद खेत में पानी चला कर पलेवा करें। पलेवा के 3-4 दिनों बाद जब मिट्टी की ऊपरी परत हल्की सूखने लगे तब खेत में 1 बार जुताई कर के पाटा लगा दें। इसके बाद खेत में क्यारियां तैयार करें। सभी क्यारियों के बीच 3 से 4 मीटर की दूरी रखें।
  • बुवाई की विधि: बीज की बुवाई क्यारियों में करें। सभी पौधों के बीच करीब 31.5 इंच की दूरी होनी चाहिए। बीज की बुवाई 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में करें। यदि नर्सरी में पौधे तैयार कर रहे हैं तो बीज की बुवाई के करीब 15-20 दिनों बाद मुख्य खेत में पौधों की रोपाई करें। जड़ों को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए पौधों को नर्सरी से निकालते समय सावधानी बरतें।
  • सिंचाई प्रबंधन: फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। वर्षा होने पर सिंचाई न करें। गर्मी के मौसम में मिट्टी में पर्यप्र मात्रा में नमी नहीं होने पर आप हल्की सिंचाई कर सकते हैं। सिंचाई से पहले मिट्टी की नमी की मात्रा की जांच अवश्य करें।
  • खरपतवार नियंत्रण: पेठा की फसल में खरपतवार नियंत्रण महत्वपूर्ण है। प्रारंभिक अवस्था में खरपतवारों को हटाने के लिए 2-3 बार निराई-गुड़ाई करें। बीज की बुवाई के 20 से 25 दिनों के बाद पहली निराई-गुड़ाई करें। इसके बाद 15 दिनों के अंतराल पर या खरपतवार निकलने पर निराई-गुड़ाई करते रहें। खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए मल्चिंग का भी उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए काली प्लास्टिक शीट का उपयोग करें जिससे खरपतवारों का विकास रुक जाता है।
  • रोग एवं कीट प्रबंधन: पेठा की फसल में कई प्रकार के रोग और कीट लग सकते हैं। पेठे के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग जैसे पाउडरी मिल्ड्यू, डाउनी मिल्ड्यू और कुछ प्रमुख कीट जैसे रेड पंपकिन बीटल, माहु, आदि शामिल हैं। पौधों को इन रोगों एवं कीटों से बचाने के लिए रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें। फसल चक्र अपनाएं और खेत को स्वच्छ बनाए रखने के लिए फसल अवशेषों को खेत से बाहर निकालें। आवश्यकता होने पर जैविक या रासायनिक कीटनाशकों एवं फफूंद नाशकों का उपयोग करें। रासायनिक दवाओं का प्रयोग करते समय मात्रा का विशेष ध्यान रखें।
  • फलों की तुड़ाई एवं पैदावार: पेठा की फसल बुवाई के 90-120 दिनों बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। सब्जी बनाने के लिए जब फसलों के आकार में वृद्धि होने पर और फलों के पकने से पहले इसकी तुड़ाई करें। मिठाई बनाने के लिए फलों के पकने के बाद इसकी तुड़ाई करें। विभिन्न किस्मों के अनुसार प्रति एकड़ भूमि से 120 से 240 क्विंटल तक पैदावार होती है।

पेठे के अलावा आप अन्य किन सब्जियों की खेती करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। कृषि सम्बन्धी अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट लाइक और शेयर करना न भूलें। जिससे अन्य किसान मित्र भी इस जानकारी का उठाते हुए पेठे की बेहतर उपज प्राप्त कर सकें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: पेठा की खेती कब बोई जाती है?

A: पेठे की खेती आमतौर पर भारत में गर्मी के मौसम के दौरान मार्च और जून के महीनों के बीच की जाती है। फसल को ठीक से बढ़ने के लिए गर्म मौसम और बहुत अधिक धूप की आवश्यकता होती है।

Q: सफेद कद्दू की खेती कैसे करें?

A: सफेद कद्दू की खेती करने के लिए, कार्बनिक पदार्थ और अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद डालकर मिट्टी तैयार करें। बीज को सीधे मिट्टी में बोएं, उन्हें लगभग 2-3 फीट अलग रखें। नियमित रूप से पानी दें और लताओं को चढ़ने के लिए सहायता प्रदान करें। जब फल पूरी तरह से परिपक्व तब कटाई करें।

Q: सफेद कद्दू की कटाई कब करें?

A: सफेद कद्दू को तब काटा जाना चाहिए जब वे पूरी तरह से परिपक्व हो जाएं और त्वचा पूरी तरह से सफेद हो गई हो। तना कठोर और सूखा होना चाहिए, और टैप करने पर फल खोखला लगना चाहिए। पहली ठंढ से पहले कटाई करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह फल को नुकसान पहुंचा सकता है।

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