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जीरा
कल्पना
कृषि विशेषयज्ञ
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झुलसा रोग: जीरे की फसल में 80% तक फसल नुकसान का कारण

जीरा भारत में एक प्रमुख मसाला है और लगभग हर प्रकार के खाने में तड़के के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। राजस्थान और गुजरात राज्य में प्रमुख रूप से रबी मौसम में इसकी खेती की जाती है। इतना ही नहीं बल्कि जीरे को कई स्थानों पर औषधीय फसल के रूप में भी देखा जाता है एवं घरेलू उपचार की विभिन्न विधियों में भी बड़ी मात्रा में इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा साबुन, बालो के तेल एवं शराब उद्योग में भी इसकी काफी मांग है।

जीरे की फसल में “अल्टरनेरिया ब्लाइट” नामक कवक के संक्रमण से फसल उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होती है। दुनिया में सबसे अधिक जीरा उगाने वाले क्षेत्रों में यह रोग हर साल विनाशकारी रूप में प्रकट होता है और उपज में 80% तक नुकसान कर सकता है। संक्रमण के प्रारंभ में ही झुलसा प्रभावित पौधों की ऊपरी एवं नई पत्तियों पर सूक्ष्म सफेद से लेकर काले गले हुए क्षेत्र दिखाई देते हैं, रोग का यह संक्रमण पौधों में मृत्यु का बड़ा कारण है। रोग का संक्रमण बीज को भी प्रभावित करता है। रोगग्रस्त बीज छोटे, विकृत आकार, सिकुड़े हुए, हल्के वजन और काले रंग के हो जाते हैं।

फसल में फूल और फल लगने के दौरान फसल में उच्च आर्द्रता बनी रहती है और यही समय “अल्टरनेरिया ब्लाइट” के विकास के लिए अनुकूल बताई गई है। यह समय फसल के विकास का सबसे कमजोर चरण माना जाता है, जिससे बचने के लिए जीरे की सही प्रजातियों की पहचान आवश्यक है। रोग के कवक लम्बे समय तक गर्म और शुष्क परिस्थितियों में जीवित रह सकते है।

रोग के लक्षण

झुलसा पत्तियों और तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होता है, जिससे तने के सिरे नीचे की ओर झुक जाते हैं। रोग धीरे-धीरे भूरे से काले रंग की फफूंद में बदल जाता है। अधिक संक्रमण के दौरान बीज सिकुड़ जाते हैं और हल्के होने के कारण आसानी से उड़ जाते हैं। चूंकि रोग का प्रसार बहुत तेजी से होता है, झुलसा रोग के खिलाफ प्रभावी रोकथाम के लिए विशेषज्ञों द्वारा केवल रोग प्रतिरोधी किस्मों की राय दी जाती है।

नियंत्रण के उपाय

  • रोग के संक्रमण के दौरान खेत में अधिक सिंचाई करने से बचें ।

  • बुवाई के लिए स्वस्थ एवं उपचारित बीजों का ही प्रयोग करें। बीज उपचार के लिए थायरम कवकनाशी का उपयोग 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करने के लिए करें।

  • मेड़ को जमीन से थोड़ा ऊंचा रखें।

  • बुवाई के 40 से 45 दिनों के बाद मैंकोजेब 75% डब्लू पी, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर फसल में छिड़काव रोग के प्रकोप को कम करने में मददगार है।

  • कार्बेन्डाजिम 50% डबल्यूपी का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर फसल पे छिड़काव करने पे भी रोग पर काबू पाया जा सकता है।

  • एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 23% एससी की 7 मिलीलीटर मात्रा का छिड़काव प्रति लीटर पानी के साथ करें।

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फसल में समय रहते रोग एवं कीटों की रोकथाम एवं प्रबंधन के लिए देहात के कृषि विशेषज्ञों से उचित सलाह लेने के लिए हमारे टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर संपर्क करें। इसके साथ ही आप अपने नजदीकी देहात केंद्र से जुड़कर हाइपरलोकल की सुविधा के द्वारा घर बैठे उर्वरक एवं कीटनाशक भी प्राप्त कर सकते हैं। जीरे की खेती से जुड़ी अपनी समस्याएं आप हमें कमेंट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं या देहात ऐप में जीरा नामक टैग को चुन कर पा सकते हैं। अन्य किसानों तक यह जानकारी पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करना न भूलें।


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