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जीरा
कृषि ज्ञान
22 Nov
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जीरा की खेती (Cultivation of Cumin)


जीरा एक महत्वपूर्ण मसाला है, जिसकी खेती मुख्यतः रबी मौसम में की जाती है। सौंफ जैसा दिखने वाला इसका पौधा भारतीय व्यंजनों और औषधीय उपयोगों के लिए बेहद खास है। भारत में 80% उत्पादन गुजरात और राजस्थान से होता है, जबकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के किसान भी इसकी खेती कर लाभ कमा रहे हैं। उन्नत किस्मों और वैज्ञानिक तरीकों के उपयोग से जीरे की बेहतर पैदावार संभव है।

कैसे करें जीरे की खेती? How to cultivate cumin?

  • मिट्टी (Soil): जीरा की खेती के लिए जल निकासी वाली भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है। दोमट मिट्टी जीरे के लिए आदर्श है, क्योंकि यह मिट्टी पोषक तत्वों को ग्रहण करने में सक्षम होती है और जल निकासी भी सही रहती है, जिससे पौधों की जड़ें स्वस्थ रहती हैं।
  • जलवायु (Climate): जीरे की खेती के लिए शुष्क और गर्म जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। जीरा अधिक तापमान में अच्छी तरह बढ़ता है और इसके लिए बारिश की कम आवश्यकता होती है, जिससे शुष्क मौसम इसकी खेती के लिए आदर्श है।
  • बुवाई का समय (Sowing Time): जीरा की बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है। बुवाई के लिए क्यारियों का निर्माण किया जाता है, और प्रत्येक क्यारी के बीच 11 इंच की दूरी रखी जाती है। पौधों के बीच 4-5 इंच की दूरी रखनी चाहिए, और बीज को 1 से 1.5 इंच गहराई में बोना चाहिए।
  • बीज का चयन (Seed Selection): जीरा की खेती के लिए गुणवत्ता वाले बीज का चयन करना आवश्यक है। प्रति एकड़ में 5-6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों का उपचार बुवाई से पहले करना चाहिए, और यदि बीज पहले से उपचारित नहीं हैं तो 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज पर छिड़काव करना चाहिए।
  • विभिन्न किस्में (Varieties): जीरे की किस्मों का चयन क्षेत्र के अनुसार किया जाना चाहिए। प्रमुख उन्नत किस्मों में अवनि 2 नंबर, दिनकर रिसर्च पोखराज, वेस्टर्न C-60, और गोल्ड किंग 4 शामिल हैं। यह किस्में बेहतर पैदावार और गुणवत्ता प्रदान करती हैं।
  • खेत की तैयारी (Field Preparation): जीरा की खेती के लिए खेत की तैयारी बेहद महत्वपूर्ण है। सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से जुताई करें ताकि खरपतवार और पिछले फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाएं। इस प्रक्रिया से मिट्टी को हवा मिलती है और पानी का अवशोषण बेहतर होता है। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था सुनिश्चित करें, ताकि बारिश या सिंचाई के दौरान पानी खेत में जमा न हो और जड़ें आसानी से ऑक्सीजन प्राप्त कर सकें। जल निकासी की सही व्यवस्था से जीरे की फसल बेहतर तरीके से विकसित होती है।
  • उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer Management): जीरे की फसल के लिए उर्वरक का सही प्रबंधन आवश्यक है। आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ 10 टन गोबर की खाद डालने से मिट्टी में ऑर्गेनिक सामग्री बढ़ती है, जो पौधों की वृद्धि में मदद करती है। इसके अलावा, प्रति एकड़ 65 किलोग्राम डीएपी, 9 किलोग्राम यूरिया और 4 किलोग्राम सल्फर का उपयोग करना चाहिए, जिससे जीरे के पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं। उर्वरकों का सही अनुपात और समय पर उपयोग फसल की स्वस्थ वृद्धि और बेहतर उत्पादन में सहायक होता है।
  • सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management): जीरा की बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। अंकुरण में मदद के लिए बुवाई के 8-10 दिनों के बाद दूसरी सिंचाई करें। इसके बाद हर 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। दाने पकने के समय सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। फव्वारा विधि से सिंचाई करना सबसे अच्छा होता है, क्योंकि इससे पानी की अधिकता से बचा जा सकता है।
  • खरपतवार प्रबंधन (Weed Management): जीरे की फसल में खरपतवारों का प्रकोप बढ़ सकता है, क्योंकि वे पोषक तत्वों को सोख लेते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई करें और 48 घंटों के भीतर पेन्डीमिथालीन 38.7% सीएस का छिड़काव करें। 25-30 दिनों के बाद निराई-गुड़ाई करें।
  • रोग एवं कीट प्रबंधन (Pest and Disease Management): जीरे की फसल में पाउडरी मिल्ड्यू, उकठा रोग और पछेती झुलसा रोग के होने का खतरा रहता है। इन रोगों के लक्षण दिखने पर उचित कीटनाशक और फफूंद नाशक का उपयोग करें। नियमित निरीक्षण और प्रबंधन से फसल को बचाया जा सकता है।
  • फसल की कटाई (Harvesting): जीरे की फसल 100-120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। जब पौधों और बीजों का रंग भूरे रंग में बदल जाए, तब फसल की कटाई करनी चाहिए। कटाई के बाद पौधों को अच्छी तरह से सुखा कर, थ्रेसर से दाने अलग करें और फिर दानों को सूखा कर भंडारण करें।
  • उत्पादन (Yield): जीरे की उपज किस्म और कृषि प्रबंधन पर निर्भर करती है। सामान्यतः प्रति एकड़ 2.8 से 3.2 क्विंटल तक उपज प्राप्त होती है, और यदि उचित देखभाल और उन्नत तकनीकों का उपयोग किया जाए, तो उपज में वृद्धि हो सकती है।

क्या आप जीरा की खेती करते हैं या करना चाहते हैं? करते अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'कृषि ज्ञान’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked question)

Q: जीरा कितने दिनों में उगता है?
A: जीरा की फसल लगभग 120 दिनों में तैयार हो जाती है। बीज अंकुरण के लिए सही तापमान और नमी की आवश्यकता होती है। सही देखभाल और समय पर सिंचाई से फसल समय पर पककर तैयार होती है।

Q: जीरे में पहला पानी कब देना चाहिए?
A: जीरे की बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना अनिवार्य है। पानी देते समय ध्यान रखें कि बहाव तेज न हो, क्योंकि तेज पानी बीजों को अपनी जगह से हटा सकता है, जिससे अंकुरण प्रभावित हो सकता है। इसके बाद, मिट्टी की नमी के अनुसार नियमित सिंचाई करें।

Q: भारत में जीरा कहां लगाया जाता है?
A: भारत में जीरा मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इसके अलावा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भी रबी मौसम में इसकी खेती की जाती है। इन राज्यों की जलवायु और मिट्टी जीरे की खेती के लिए उपयुक्त होती है।

Q: जीरे की कटाई कैसे की जाती है?
A: जब जीरे के बीज भूरे रंग के हो जाएं और सूखने लगें, तो फसल कटाई के लिए तैयार होती है। कटाई तनों के साथ सावधानीपूर्वक करें और उन्हें बाँधकर बैग में रखें। बीज निकालने के लिए पौधों को बैग के अंदर हिलाएं। ध्यान रखें, अधिक देर करने से बीज झड़कर जमीन पर गिर सकते हैं, जिससे नुकसान हो सकता है।

Q: जीरा 1 एकड़ में कितना निकलता है?

A: जीरे की उपज कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि मिट्टी की गुणवत्ता, जलवायु, फसल प्रबंधन और उन्नत किस्मों का उपयोग। सामान्यतः प्रति एकड़ 2.8 से 3.2 क्विंटल जीरा प्राप्त होता है। यदि उन्नत तकनीकों और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग किया जाए, तो उपज को बढ़ाकर 6 क्विंटल तक भी किया जा सकता है। बेहतर उत्पादन के लिए सही समय पर सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण और रोग प्रबंधन आवश्यक है।

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