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10 July
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जिमीकंद (ओल) की खेती (Jimikand cultivation)


जिमीकंद, जिसे ओल या सूरन भी कहते हैं, भारत में एक प्रमुख खाद्य और औषधीय पौधा है जिसकी परंपरागत खेती बहुत पुरानी है। इसका उपयोग व्यापक रूप से आयुर्वेदिक औषधियों में भी किया जाता है। ओल की खेती गर्मियों के मौसम में की जाती है और इसे सब्जियों, अचार और चटनी के रूप में उपयोग किया जाता है। ओल की बुवाई अप्रैल महीने से शुरू की जाती है और इसे गर्मियों में अच्छे फलों के लिए 8-10 महीने तक बढ़ाया जाता है। खेती के दौरान सिंचाई और उचित देखभाल का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है ताकि पौधे का बेहतर विकास हो सके।

कैसे करें जिमीकंद की खेती? How to cultivate Jimikand?

  • मिट्टी: जिमीकंद की खेती के लिए अच्छी उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी का चयन करें। इसकी खेती के लिए 6.0 से 7.5 pH मान वाली मिट्टी अच्छी मानी जाती है। जिमीकंद की खेती के लिए ऐसी मृदाओं का चुनाव करें जिनकी जल धारण क्षमता अच्छी हो।
  • जलवायु: जिमीकंद उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा होता है। गर्मी और ठंड के मौसम में जिमीकंद का विकास अच्छे से होता है। भारत में ओल (जिमीकंद) की खेती बारिश के मौसम से पहले और बाद में की जाती है। ओल (जिमीकंद) के पौधों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छे विकास के लिए अच्छा होता है।
  • बुवाई का समय: जिमीकंद की बुवाई अप्रैल से मई की जाती है। इसकी बुवाई के लिए पूरे पके फल के बीज का उपयोग किया जाता है। इसकी बुवाई वानस्पतिक विधि से की जाती है। बुवाई के लिए लगभग 750 ग्राम कंद की आवश्यकता होती है। कंद को काटते समय ध्यान रखें कि हर टुकड़े में कम से कम कलिका का कुछ हिस्सा जरूर रहे।
  • किस्में: जिमीकंद की खेती के लिए कई प्रकार की उन्नत किस्में उपलब्ध हैं जैसे कि गजेंद्र, संतरागाछी, श्री पद्मा, एम-15 और राजेंद्र। किस्म का चयन विशेष जलवायु और बुआई क्षमता के अनुसार करना चाहिए।
  • बीज की मात्रा: जिमीकंद की बुवाई के लिए लगभग 100 से 200 ग्राम बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है।

रोपण विधि:

  • खेत में बुवाई: खेत की गहरी जुताई करके उसमें गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट मिलाकर जुताई करें। कंदों को 75 से 90 सेंटीमीटर गहरी नाली में 20 से 30 सेंटीमीटर गहराई में बुवाई की जाती है। कंदों को मिट्टी से ढक दिया जाता है।
  • गड्ढों में बुवाई: गड्ढों में बुवाई: बुवाई के लिए गड्ढा खोदें, जिसका आकार 60 x 60 x 45 सेंटीमीटर या 1.0 x 1.0 मीटर x 30 सेंटीमीटर हो। रोपाई से पहले, गड्ढे में खाद और उर्वरक मिलाएं और कंद को मिट्टी में पिरामिड के आकार में लगाए। पौधों के बीच 90 x 90 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
  • रोपाई का तरीका: जिमीकंद के बीजों को तैयार टुकड़ों को उपचारित कर ही खेत में लगाया जाता है। बीज को नालियों या गड्ढों में दो से ढाई फीट की दूरी पर लगाया जाता है। बीज लगाने के बाद उन्हें मिट्टी से अच्छी तरह से ढक दिया जाता है।

उर्वरक प्रबंधन:

  • खेत की जुताई के समय, प्रति एकड़ लगभग 5 से 6 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद दें।
  • 34 किलोग्राम यूरिया, 52 किलोग्राम डीएपी और 33 किलोग्राम एम.ओ.पी खाद  प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • बुवाई से पहले, गोबर की सड़ी खाद को खेत में मिला दे। फास्फोरस को बेसल ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करें। नत्रजन और पोटाश की आधी मात्रा को बेसल ड्रेसिंग के रूप में और शेष भाग को कंद की गुड़ाई के समय बाँटें। कंद की रोपाई के बाद, 50-60 और 80-90 दिनों के बाद उचित मात्रा में यूरिया और पोटाश का उपयोग करें।

मल्चिंग (Mulching): बुआई के बाद तुरंत पुआल या शीशम की पत्तियों से खेत को ढक दें, जिससे जिमीकंद का जल्दी अंकुरण हो, मिट्टी में नमी बनी रहे, और खरपतवार कम हो।

सिंचाई (Irrigation): जिमीकंद की फसल को स्वस्थ शाकाहारी विकास के लिए नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। बरसात के मौसम में फसल की सिंचाई से बचें और अगर देर से बारिश हो तो शुरुआती अवस्था में हल्की सिंचाई करें। अंकुरण तक हर हफ्ते दो बार सिंचाई करें। गर्मियों में, बुआई के बाद पांच दिनों के अंतराल पर पानी दे। सर्दियों में, पाधा पर 15-20 दिनों के अंतराल पर पानी दें।

निराई-गुड़ाई और हलोईंग (Weeding and Hoeing): जिमीकंद के पौधे बुआई के 25-30 दिनों के बाद उग जाते हैं। पहली निराई-गुड़ाई 50-60 दिनों बाद और दूसरी निराई 80-90 दिनों बाद करें। निराई-गुड़ाई के दौरान सुनिश्चित करें कि पौधों के आसपास मिट्टी चढ़ाई गई हो।

फसल चक्र (Crop Rotation): जिमीकंद को गेहूं, मटर, अदरक और प्याज के साथ-साथ रोटेट किया जा सकता है ताकि उससे उत्पादकता और लाभ का माध्यम बन सके। इसके अतिरिक्त, मेहंदी, मूंग, मक्का, लौकी, कद्दू आदि की खेती के साथ-साथ इंटरक्रॉपिंग करने से उपलब्ध जगह का उपयोग करके आय की संभावना भी बढ़ सकती है।

रोग और कीट (Diseases and Pests):

  • भृंग (Beetle): यह रोग सूरन की शाखाओं और पत्तियों में पाया जाता है। यह कीट शाखा और पत्तियों को खाते हैं, जिसके कारण सूरन के पौधे खराब हो जाते हैं और इससे पैदावार पर भी असर पड़ता है।
  • तंबाकू सुंडी (Tobacco caterpillar): यह कीट जून-जुलाई महीने में आक्रमण करती है। इसके लक्षण हल्के भूरे रंग के होते हैं और इससे पौधों की पत्तियों को पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं।
  • झुलसा रोग (blight disease): यह जीवाणु जनित रोग होता है जो नवंबर-दिसंबर महीने में पत्तियों पर आक्रमण करता है। इसके लक्षण हल्के भूरे रंग की दिखाई देते हैं और पत्तियां गिरने लगती है, जिससे पौधों की वृद्धि पर असर पड़ता है।
  • तना गलन (stem rot): इस रोग का प्रकोप अगस्त-सितंबर माह में अधिक होता है। यह मृदा जनित रोग होता है और इसके लक्षण कालर भाग पर दिखाई पड़ते हैं, जिसके कारण पौधा पीला पड़ कर जमीन पर गिर जाता है।

खुदाई और भंडारण (Digging and storage): बुआई के सात-आठ महीने बाद, जब पत्तियाँ पीली पड़ कर सूखने लगती हैं, तब फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। खुदाई के बाद, कंदों को अच्छी तरह से साफ करें और धूप में रखकर सुखा लें। कटे या चोट ग्रस्त कंदों को स्वस्थ कंदों से अलग कर लें। इन कंदों को लकड़ी के मचान पर रखकर एक हवादार भण्डार गृह में भंडारित करें। इस प्रकार, ओल को पांच से छह महीने तक आसानी से भंडारित किया जा सकता है।

उपज (Yield): 1 एकड़ में सूरन की पैदावार लगभग 12 से 16 टन होती है।

क्या आप जिमीकंद की खेती करते हैं या फिर करना चाहते हैं? अपना जवाब हमें कमेंट करके जरूर बताएं। अपने मनपसंद फसल में बेहतरीन उपज पाने के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करें और अपने अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: जिमीकंद की खेती कब करें?

A: जिमीकंद की खेती अप्रैल से अगस्त के महीने में करते हैं। जब मिट्टी नम और तापमान गर्म होता है।

Q: जिमीकंद कितने महीने में तैयार हो जाता है?

A: जिमीकंद बुआई के सात से आठ महीने के बाद, जब पत्तियाँ पीली पड़ कर सूखने लगती हैं, तब फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है।

Q: जिमीकंद का दूसरा नाम क्या है?

A: जिमीकंद को आमतौर पर एलीफैंट याम, सूरन या जिमीकंद नाम से जाना जाता है।

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