ज्वार की फसल के कुछ प्रमुख रोग एवं कीट
ज्वार की फसल में कई तरह के कीट और रोगों के होने की संभावना रहती है। समय रहते अगर ध्यान नहीं दिया गया तो इनके प्रकोप से फसलों की पैदावार औसत से कम हो सकती है और किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ता है। ज्वार की फसल को हानि पहुंचाने वाले विभिन्न कीट और रोगों की जानकारी यहां से प्राप्त करें।
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तना छेदक मक्खी : इन मक्खियों का आकर घरेलू मक्खियों की तुलना में बड़ा होता है। यह पत्तियों के नीचे अंडा देती हैं। इन अंडों में से निकलने वाली इल्लियां तनों में छेद कर के उसे अंदर से खा कर खोखला बना देती हैं। इसे पौधे सूखने लगते हैं। इससे बचने के लिए बुवाई से पहले प्रति एकड़ जमीन में 4 से 6 किलोग्राम फोरेट 10 प्रतिशत कीट नाशक का इस्तेमाल करें।
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ज्वार का माइट : यह पत्तियों की निचली सतह पर जाल बनाते हैं और पत्तियों का रस चूस कर पौधों की क्षति पहुंचाते हैं। इससे ग्रसित पत्तियां लाल रंग की हो कर सूखने लगती हैं। इससे बचने के लिए प्रति एकड़ जमीन में 400 मिलीग्राम डाइमेथोएट 30 ई.सी. का छिड़काव करें।
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ज्वार का भूरा फफूंद : इसे ग्रे मोल्ड भी कहते हैं। यह रोग ज्वार की संकर किस्मों और जल्द पकने वाली किस्मों में अधिक पाई जाती है। इस रोग के शुरुआत में बालियों पर सफ़ेद रंग की फफूंद दिखने लगती है। इससे बचाव के लिए प्रति एकड़ जमीन में 800 ग्राम मैन्कोजेब का छिड़काव करें।
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सूत्रकृमि : इससे ग्रसित पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं। इसके साथ ही जड़ में गांठें बनती हैं और पौधों का विकास रुक जाता है। रोग बढ़ने पर पौधे सूखने लगते हैं। इस रोग से बचने के लिए गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करें। प्रति किलोग्राम बीज को 120 ग्राम कार्बोसल्फान 25 प्रतिशत से उपचारित करें।
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