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3 Feb
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ज्वार की उन्नत खेती (advanced cultivation of jowar)


ज्वार (सोरघम) चारे वाली फसलों में एक प्रमुख स्थान रखता है। खरीफ मौसम में ज्वार की खेती न केवल चारे के लिए बल्कि दानों के लिए भी की जाती है। भारत में इसकी खेती लगभग सवा चार करोड़ एकड़ भूमि में की जाती है। अगर आप भी ज्वार की खेती करना चाहते हैं, तो इस लेख में दी गई जानकारियों पर अमल करके आप अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

कैसे करें ज्वार की उन्नत खेती? (How to do advanced cultivation of jowar?)

मिट्टी : इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। यदि खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध किया जाए तो इसकी खेती भारी मिट्टी में भी की जा सकती है। ज्वार की खेती के लिए 6.5 से 7 पी.एच स्तर की मिट्टी सबसे उपयुक्त है।

जलवायु : ज्वार को गर्म परिस्थितियों की आवश्यकता होती है और यह 26-30°C तापमान में अच्छी वृद्धि करता है। इसे सम शीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 2300 मीटर तक की ऊंचाई पर लगाया जा सकता है। ज्वार उच्च तापमान को अन्य फसलों की तुलना में बेहतर ढंग से सहन कर सकता है।

उपयुक्त समय : ज्वार की खेती के लिए खरीफ मौसम सबसे उपयुक्त होता है। इसकी बुवाई अप्रैल से जुलाई के बीच की जाती है। सिंचित इलाकों में फसल की बुवाई 20 मार्च से 10 जुलाई तक करनी चाहिए, जबकि बिना सिंचाई वाले क्षेत्रों में मानसून की पहली बारिश के बाद बुवाई कर देनी चाहिए।

किस्में :

  • इन्फिनिटी: यह एक मल्टी-कट सूडान घास की किस्म है। इसमें अच्छे टिलर्स, पतले तने और संकरी पत्तियाँ होती हैं। यह धान की खेत के लिए और भारी बारिश वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह अत्यधिक रसीला, गहरे हरे रंग का और स्वादिष्ट चारा प्रदान करती है। इसका उपयोग स्वस्थ पशु और लाभकारी डेयरी फार्म के लिए होता है। इसका बीज दर 5 किलोग्राम/एकड़ है और यह केवल बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में उपलब्ध है।
  • बोल्ट एसएसजी व्हाइट: बोल्ट एक मल्टी-कट सफेद बीज वाली सुदान घास की किस्म है। यह तेज़ी से बढ़ती है और उत्कृष्ट पुनः वृद्धि प्रदान करती है। हरे चारे और सूखे कुट्टी के लिए उपयुक्त है। चारा रसीला और मुलायम होने के कारण पशु इसे पसंद करते हैं। स्वस्थ पशु और लाभकारी डेयरी फार्म के लिए आदर्श है। बीज दर: 20 किलोग्राम/एकड़। यह केवल बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में उपलब्ध है।
  • झूमर 17: यह एक मल्टी-कट सूडान घास की किस्म है। यह तेजी से बढ़ती है और उत्कृष्ट पुनः वृद्धि प्रदान करती है। हरे चारे और सूखे चारे के लिए उपयुक्त है। चारा रसीला और मुलायम होने के कारण पशु इसे पसंद करते हैं। स्वस्थ पशु और लाभकारी डेयरी फार्म के लिए आदर्श है। बीज दर: 10-15 किलोग्राम/एकड़ या 25-30 किलोग्राम/हेक्टेयर। यह केवल बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में उपलब्ध है।
  • डी.एस.एस-डब्ल्यू-20: इस किस्म के पौधे की ऊँचाई 210-240 सेंटीमीटर होती है। पहली कटाई 50-55 दिन में होने लगती है और इसमें 2 से 3 कटाई हो सकती है। इसके तने हरे, रसीले और मीठे होते हैं। इसके एक पौधे पर 3-4 टिलर्स बनते हैं और यह गैर-लॉजिंग है। HCN सामग्री: 56-58 पी पी एम। प्रोटीन सामग्री: 4.05%।
  • जी. ए. पी. एल हरि प्रिया: यह एक सिंगल-कट सूडान घास की किस्म है। बोने की अवधि: बसंत और खरीफ। पौधे की ऊँचाई: 12-13 फीट। कटाई की संख्या: एक कट (किसान इसे मल्टी-कट के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं)।

बीज दर और बीज उपचार: ज्वार की खेती के लिए प्रति एकड़ 6 से 8 किलो बीज की जरूरत होती है। इन बीजों को बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या बाविस्टीन फफूंदनाशक से उपचारित करें। इससे बीज फफूंद से सुरक्षित रहते हैं और उनकी वृद्धि अच्छी होती है।

खेत की तैयारी: पिछली फसल के बाद खेत में 15-20 सेंटीमीटर गहरी जुताई करें। फिर, देशी हल से 4-5 बार मिट्टी को भुरभुरा बना लें। खेत में 25-30 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियाँ बनाएं और बीज डालने की गहराई 1.5 से 2.0 सेंटीमीटर रखें। बुवाई से 10-15 दिन पहले 4-6 टन गोबर की खाद मिलाएं। साथ ही, बुवाई से पहले 4-6 टन हरी खाद या रूडी की खाद डालें। बुवाई के समय यूरिया (नाइट्रोजन), डी.ए.पी (फास्फोरस), और एम.ओ.पी (पोटाश) का उपयोग करें।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन : बुवाई से 15-20 दिन पहले प्रति एकड़ खेत में 4 से 6 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। बुवाई के समय 35 किलोग्राम डी.ए.पी. और 56 किलोग्राम यूरिया का आधा हिस्सा डालें, और बाकी आधा 30 दिन बाद डालें। प्रति एकड़ खेत में 16 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम नाइट्रोजन का प्रयोग करें।

खरपतवार नियंत्रण : खरपतवार पर नियंत्रण के लिए 400 लीटर पानी में 500 मिलीलीटर एट्राजिन मिला कर बुवाई के तुरंत बाद छिड़काव करें। बुवाई के 20 से 25 दिनों बाद खेत में निराई - गुड़ाई कर के भी खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

सिंचाई प्रबंधन : बारिश के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन यदि वर्षा नहीं हो रही है तो हल्की सिंचाई करें। गर्मी के मौसम में 7 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। विभिन्न किस्मों को तैयार होने का समय अलग होता है।

ज्वार के कुछ प्रमुख रोग एवं कीट : ज्वार की फसल में कई तरह के कीट और रोग लगते हैं। समय रहते अगर ध्यान नहीं दिया गया तो उसके प्रकोप से फसलों की पैदावार कम होती है और किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ता है।

  • तना छेदक मक्खी : तना छेदक मक्खी का आकार घरेलू मक्खियों से बड़ा होता है। यह पत्तियों के नीचे अंडा देती हैं। इन अंडों से निकलने वाली इल्लियां तनों में छेद करके उसे अंदर से खा कर खोखला बना देते हैं। इससे पौधे सूखने लगते हैं।
  • मकड़ी (माइट) : मकड़ी पत्तियों की निचली सतह पर जाल बनाते हैं और पत्तियों का रस चूस कर पौधों की क्षति पहुंचाते हैं। इससे ग्रसित पत्तियां लाल रंग की होकर सूखने लगती है।
  • भूरा फफूंद (ग्रे मोल्ड) : यह रोग ज्वार की संकर किस्मों और जल्द पकने वाली किस्मों में अधिक पाया जाता है। इस रोग के शुरुआत में बालियों पर सफेद रंग की फफूंद दिखने लगती है।
  • सूत्रकृमि : इससे ग्रसित पौधों की पत्तियां पीली होने लगती है। इसके साथ ही जड़ में गांठ बनती हैं और पौधों का विकास रुक जाता है। रोग बढ़ने पर पौधे सूखने लगते हैं।
  • एंथ्राक्नोस : पत्तों की दोनों तरफ छोटे लाल रंग के धब्बे जो बीच में सफेद रंग के होते हैं, पड़ जाते हैं। प्रभावित भाग पर सफेद सतह के ऊपर कई छोटे-छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं जो फंगस के जीवाणु होते हैं। तने के ऊपर गोलाकार कोढ़ विकसित हो जाता है। यह बीमारी बारिश, उच्च नमी और 28-30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर ज्यादा फैलती है।
  • पत्ती धब्बा : पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं। पत्ते हरे या पीले रंग के दिखाई देते हैं।
  • पत्ता झुलसा रोग : शुरुआती अवस्था में छोटे संकुचित लंबी धुरी के आकार के धब्बे पड़ जाते हैं। पुराने पौधों पर लंबे समय तक तूड़ी के आकार के धब्बे मध्य और किनारों पर देखे जा सकते हैं। यह पत्ते के बड़े भाग को नष्ट कर देता है और फल जली हुई दिखाई देती है। यह बीमारी उच्च नमी, अधिक बारिश के साथ ठंडे नमी वाले मौसम में ज्यादा फैलती है।

कटाई: बुवाई के 40-50 दिन बाद फसल की कटाई की जानी चाहिए। ज्वार के पौधों की कटाई करने के बाद उन्हें ढेर में एकत्रित कर लिया जाता है। फिर भुट्टों को पौधों से अलग कर लिया जाता है और पौधे के अवशेष को सुखाकर अलग ढेर में रखा जाता है, जिसे बाद में जानवरों को खिलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। दानों को सुखाकर, जब उनकी नमी 10-12 प्रतिशत हो जाए, तब उन्हें भंडारण के लिए रखा जाता है।

क्या आप ज्वार की खेती करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। बेहतर फसल प्राप्त करने के लिए इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और अन्य किसानों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: ज्वार 1 एकड़ में कितनी होती है?

A: ज्वार की उपज मिट्टी के प्रकार, जलवायु, सिंचाई और खेती के तरीकों जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर भिन्न होती है। भारत में ज्वार की उपज लगभग 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। हालांकि, अच्छी कृषि पद्धतियों और उचित प्रबंधन के साथ, उपज प्रति एकड़ 25 से 30 क्विंटल तक बढ़ाई जा सकती है।

Q: ज्वार कौन से महीने में बोई जाती है?

A: ज्वार आमतौर पर मानसून के मौसम में बोया जाता है, जो जून से जुलाई तक होता है। यह क्षेत्र और मौसम के आधार पर समय भिन्न होता है।

Q: भारत में ज्वार की सबसे अधिक खेती कहाँ होती है?

A: ज्वार की खेती भारत के कई राज्यों में उगाई जाती है। महाराष्ट्र भारत में ज्वार का प्रमुख उत्पादक है, इसके बाद कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और मध्य प्रदेश का स्थान है। इसका उपयोग मानव उपभोग और पशु आहार दोनों के लिए किया जाता है।

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