कैसे करें आलू की वैज्ञानिक खेती | Potato Cultivation

आलू उन प्रमुख सब्जियों में से एक है जिसे भारत के लगभग सभी राज्यों में व्यापक रूप से उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, पंजाब, कर्नाटक, असम एवं मध्य प्रदेश कुछ प्रमुख आलू उत्पादक राज्यों में शामिल हैं। इसकी खेती ठंड यानी रबी मौसम में की जाती है। आलू की भंडारण की क्षमता अच्छी होती है। आलू की खेती करने के लिए सही समय, उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, खेत तैयार करने की विधि, बुवाई, सिंचाई, खरपतवार, रोग एवं कीट नियंत्रण, और फसल की कटाई जैसे पहलुओं का ध्यान रखना आवश्यक है। इस पोस्ट के माध्यम से आप आलू की वैज्ञानिक खेती की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
कैसे करें आलू की खेती? | How to cultivate Potato
- आलू की खेती के लिए उपयुक्त समय: सही समय पर आलू की बुवाई करना बहुत जरूरी है। भारत में आलू की बुवाई के लिए सितंबर से दिसंबर महीने के बीच की जाती है। हालांकि, पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती गर्मी के मौसम में की जाती है। बुवाई का सही समय आलू की पैदावार और गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव डालता है, इसलिए किसानों को अपने क्षेत्र के अनुसार सही समय का चयन करना चाहिए।
- उपयुक्त जलवायु: आलू की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। आलू का पौधा 20-22 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छी तरह से बढ़ता है। बहुत अधिक गर्मी और आवश्यकता से अधिक ठंड दोनों ही आलू की खेती के लिए हानिकारक होते हैं। 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में कंदों का विकास रुक जाता है। वहीं तापमान बहुत कम होने पर भी फसल प्रभावित होती है। इसकी खेती के शीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। कंद के निर्माण के समय 18 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होना चाहिए।
- उपयुक्त मिट्टी: आलू की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इस तरह की मिट्टी में जल निकासी की क्षमता अच्छी होती है, जिससे आलू के कंद जलभराव के कारण होने वाली सड़न से बच सकते हैं। मिट्टी का पीएच स्तर 5 से 6.5 के बीच होना चाहिए। भारी मिट्टी में इसकी खेती करने से बचें।
- बेहतर किस्में: आलू की मुख्य किस्मों में के. बहार, के. आनंद, के. बादशाह, के. सिंदुरी, के. सतलज, के. लालिमा, के. अरुण, के. सदाबहार, के. पुखराज, आदि किस्मों की खेती प्रमुखता से की जाती हैं। वहीं इसकी हाइब्रिड किस्मों में बी 420(2), एचटी/92-621, एचटी/93-707, जे/93-81, जे/93-86, जे/93-87, J/93-139, आदि किस्मों की खेती कर सकते हैं।
- बीज की मात्रा एवं बीज का चयन: प्रति एकड़ खेत में बुवाई के लिए 10 से 12 क्विंटल कंदों की आवश्यकता होती है। करीब 30 से 50 ग्राम वजन वाले कंदों की बुवाई करनी चाहिए। बुवाई के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कंदों का व्यास 3-4 सेंटीमीटर होना चाहिए। सभी टुकड़ों में 2-3 आंखें होनी चाहिए। पौधों को कई घातक रोगों से बचाने के लिए बुवाई से करीब 24 घंटे पहले बीज को उपचारित करें।
- खेत की तैयारी एवं उर्वरक प्रबंधन: सबसे पहले 1 बार गहरी जुताई करें। इसके बाद कल्टीवेटर के द्वारा 3 से 4 बार हल्की जुताई करें। बेहतर पैदावार के लिए आखिरी जुताई से पहले प्रति एकड़ खेत में 8 से 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं। इसके अलावा प्रति एकड़ खेत में 90 किलोग्राम यूरिया, 52 किलोग्राम डीएपी एवं 52 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश मिलाएं। उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ खेत में 8 किलोग्राम ‘देहात स्टार्टर’ मिलाएं। कंदों के बेहतर विकास के लिए जुताई के बाद पाटा लगा कर मिट्टी को भुरभुरी बना लें। बुवाई से पहले खेत में पलेवा करें।
- कंदों की बुवाई की विधि: आलू की बुवाई पंक्तियों में करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 24 इंच होनी चाहिए। कंदों की रोपाई 10 इंच की दूरी पर करें। कंद की बुवाई इस प्रकार करें कि उसकी अंकुरित आंखें ऊपर की तरफ हो। इससे अंकुरण की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
- सिंचाई प्रबंधन: आलू की बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। इसके बाद आवश्यकता के अनुसार 7 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। फसल को पाला से बचाने के लिए भी सिंचाई करना लाभदायक होता है। सिंचाई के समय खेत में जल जमाव न होने दें। खुदाई से 2 सप्ताह पहले से खेत में सिंचाई का कार्य बंद कर दें।
- रोग एवं कीट प्रबंधन: आलू की फसल में अगेती झुलसा रोग, पछेती झुलसा रोग, कंद गलन रोग, ब्लैक हार्ट रोग, कट वर्म, रस चूसक कीट, आदि की समस्या अधिक होती है। इन रोगों पर नियंत्रण के लिए उचित कीटनाशक एवं फफूंद नाशक दवाओं का प्रयोग करें। रासायनिक दवाओं का प्रयोग संतुलित मात्रा में और कृषि विशेषज्ञों की परामर्श के अनुसार ही करें।
- खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार आलू की खेती में फसल के पोषक तत्वों को की कमी, पौधों के विकास में रुकावट और उत्पादन एवं गुणवत्ता की कमी का कारण बनते हैं। इसलिए खेत से समय-समय पर खरपतवारों को निकालते रहना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथों से निराई-गुड़ाई की जा सकती है। खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए उचित मात्रा में रासायनिक खरपतवार नाशक दवाओं का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा प्लास्टिक मल्चिंग भी एक बेहतर विकल्प है। इससे खेत में खरपतवारों की वृद्धि रुकती है और मिट्टी में नमी भी बनी रहती है।
- फसल की कटाई एवं खुदाई: फरवरी से मार्च के दूसरे सप्ताह तक का समय आलू की खुदाई के लिए सर्वोत्तम है। बुवाई के करीब 90 से 120 दिनों के बाद आलू खुदाई की जा सकती है। उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए पौधों की पीली होने के बाद ही खुदाई का कार्य शुरू करें। खुदाई के बाद आलू के कंदों को कुछ दिनों तक खुली हवा में रखना चाहिए। इससे कंदों के छिलके कड़े हो जाएंगे।
आलू की फसल में आप कितनी मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए ‘कृषि ज्ञान’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं कमेंट करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: आलू की खेती कितने दिन की होती है?
A: आलू की फसल को तैयार होने में लगने वाला समय आलू की किस्में, तापमान, पौधों की देखभाल जैसी परिस्थितियों पर निर्भर करता है। कंदों की बुवाई के बाद खुदाई के लिए तैयार होने आमतौर पर लगभग 90-120 दिनों का समय लगता है।
Q: आलू बोने का सही समय क्या है?
A: मैदानी क्षेत्रों में आलू की बुवाई ठंड के मौसम में की जाती है। इसकी बुवाई के लिए सितंबर-अक्टूबर का महीना सबसे अच्छा माना जाता है। कुछ क्षेत्रों में पछेती फसल की तरह इसकी दिसंबर महीने की शुरुआत तक की जा सकती है।
Q: आलू में कितने दिन में पानी देना चाहिए?
A: आलू की फसल में सिंचाई की मात्रा एवं आवृत्ति मिट्टी के प्रकार, मौसम की स्थिति और पौधों के विकास के चरण पर निर्भर करती है। सामान्यतः 7 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जाती है।
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