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कैसे करें केले में फ्यूजेरियम विल्ट (पनामा) के लक्षणों की पहचान और रोकथाम

केले का फ्यूजेरियम विल्ट, जिसे पनामा रोग के नाम से जाना जाता है, एक घातक कवक रोग है और मिट्टी में पैदा होने वाले कवक फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोरम एफ के कारण होता है। कवक फसल में जड़ों के माध्यम से आक्रमण करता है और तने से होते हुए जाइलम या जल-संवाहक ऊतकों में पहुंच जाता है। धीरे-धीरे ये बीजाणु पौधों के लगभग सभी भागों में पहुंच जाते हैं और पानी के प्रवाह को पूरी तरह से अवरुद्ध कर पौधों के मुरझाने का बड़ा कारण बनते हैं।

फसल में संक्रमण के शुरुआती लक्षण पुरानी पत्तियों पर दिखना प्रारंभ होते हैं। पत्तियों के किनारे पीले दिखने लगते हैं, जिसके बाद लक्षण मध्य शिरा की तरफ बढ़कर पत्तियों को भूरा कर सुखा देते हैं। इसके बाद रोग के लक्षण धीरे-धीरे पुरानी पत्तियों से नई पत्तियों की ओर बढ़ते हैं और अंत में सभी पत्तियां भूरी होकर गिर जाती हैं। फ्यूजेरियम विल्ट के कारण केले की कुछ किस्मों में तने फट जाने जैसे लक्षण भी देखने को मिल सकते हैं।

कई वर्षों तक मिट्टी में जीवित रहने के कारण फ्यूजेरियम विल्ट का प्रबंधन बेहद कठिन है। कोई कवकनाशी या इस रोग पर नियंत्रण के लिए अभी तक कोई कारगर उपचार उपलब्ध नहीं है। लेकिन कुछ तरीकों को अपना कर इस रोग से पौधों को कुछ हद तक बचाया जा सकता है। तो आइए केले की फसल को क्षति पहुंचाने वाले पनामा विल्ट रोग पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

पनामा विल्ट रोग होने का कारण

  • तापमान में बदलाव होना।

  • एक ही खेत में कई वर्षों तक केले की लगातार खेती करना।

  • अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग।

केले के पौधों को पनामा विल्ट रोग से बचाने के उपाय

  • रोग के प्रति अवरोधी फसलों का फसल चक्र अपनाएं।

  • इसके साथ ही प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम मैंकोजेब WP 75 प्रतिशत मिला कर छिड़काव करें। यह कवक रोगों को अधिक फैलने से रोकता है।

  • रोग बढ़ने पर मैंकोजेब WP 75 छिड़काव के 10 दिन बाद प्रति एकड़ की दर से साबू (कार्बेंडाजिम  12% + मैंकोजेब 63% WP ) 400-450 ग्राम इस्तेमाल करें।

यह भी देखें:

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