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धान
विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
3 year
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खैरा रोग से नष्ट न हो जाए गरमा धान की फसल

धान की फसल में खैरा रोग का प्रकोप उत्तर भारत के तराई क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब एवं पश्चिम बंगाल में अधिक होता है। इस रोग के होने पर फसल की उपज में भारी कमी हो सकती है। अगर आप गरमा धान की खेती कर रहे हैं तो फसल को खैरा रोग से बचाने के लिए इस रोग का कारण, लक्षण एवं नियंत्रण के तरीके यहां से देखें।

खैरा रोग होने का कारण

  • मिट्टी में जस्ता यानी जिंक की कमी के कारण खैरा रोग उत्पन्न होता है।

खैरा रोग का लक्षण

  • रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं।

  • रोग बढ़ने के साथ धब्बों के रंग बदलने लगते हैं। पत्तियों पर उभरे हुए पीले धब्बे गहरे कत्थई रंग के हो जाते हैं।

  • प्रभावित पौधों की जड़ों का रंग भी कत्थई हो जाता है।

  • पौधों के विकास में बाधा आती है और पौधे बौने रह जाते हैं।

खैरा रोग पर कैसे करें नियंत्रण?

  • पौधों में जिंक की मात्रा की पूर्ति के लिए प्रति एकड़ खेत में 3 से 4 किलोग्राम देहात जैविक जिंक का प्रयोग करें।

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए 400 लीटर पानी में 2 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 1 किलोग्राम बुझा हुआ चूना मिला कर छिड़काव करें। यह मात्रा प्रति एकड़ जमीन के अनुसार दी गई है।

  • यदि बुझा हुआ चूना उपलब्ध न हो तो 2 प्रतिशत यूरिया का प्रयोग करें।

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हमें उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो हमारे पोस्ट को लाइक करें एवं इसे अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। जिससे अन्य किसान मित्र भी गरमा धान की फसल को खैरा रोग से बचा सकें। इससे जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें।

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